केंद्र ने महाराष्ट्र के चीनी उद्योग की उपेक्षा क्यों की? : कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा
प्रशांत संतोष
- 12 Nov 2024, 06:50 PM
- Updated: 06:50 PM
नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) कांग्रेस ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए उनसे पूछा कि महाराष्ट्र के चाकन औद्योगिक क्षेत्र से विनिर्माण इकाइयों का बड़े पैमाने पर पलायन क्यों हो रहा है और केंद्र ने राज्य के चीनी उद्योग की “उपेक्षा” क्यों की है?
मोदी की पुणे यात्रा से पहले कांग्रेस के महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री से तीन सवाल पूछे, जिनमें यह भी शामिल है कि भारतीय जनता पार्टी ने धनगर समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को क्यों नजरअंदाज किया है।
रमेश ने ‘एक्स’ पर अपनी पोस्ट में कहा, “पुणे के चाकन औद्योगिक क्षेत्र से वर्तमान में खराब बुनियादी ढांचे के कारण विनिर्माण इकाइयों का बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। वहां जारी सड़क कार्य के बावजूद, यातायात और गड्ढों वाली सड़कों की बुनियादी समस्याएं इस क्षेत्र में बनी हुई हैं।”
कांग्रेस नेता ने कहा कि इससे न केवल बार-बार यातायात जाम की समस्या पैदा हो रही है, बल्कि दुर्घटनाओं की संख्या में भी चिंताजनक वृद्धि हो रही है, तथा महत्वपूर्ण चौराहों पर यातायात पुलिस की अनुपस्थिति ने समस्या को और बढ़ा दिया है।
रमेश ने कहा कि इससे प्रोडक्शन शेड्यूल में व्यवधान उत्पन्न हुआ है क्योंकि कारखानों तक कच्चे माल की आवाजाही और तैयार माल के परिवहन में गंभीर बाधा उत्पन्न हुई है।
उन्होंने कहा, “पुणे पुलिस से बार-बार शिकायत करने और महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (एमआईडीसी) के अधिकारियों के साथ कई बैठकों के बाद भी कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है। अब, लगभग 50 विनिर्माण इकाइयां गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में स्थानांतरित हो गई हैं।” उन्होंने पूछा कि क्या महायुति सरकार पुणे से विनिर्माण इकाइयों के इस बड़े पैमाने पर पलायन को रोकने के लिए कुछ कर रही है।
कांग्रेस नेता ने कहा, “सरकार की नाकामी के कारण बड़े पैमाने पर जो नौकरियां गई हैं उसके बारे में ‘नॉन बायोलॉजिकल’ प्रधानमंत्री क्या कहेंगे?”
उन्होंने पूछा कि भाजपा ने धनगर समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को क्यों नजरअंदाज किया है।
रमेश ने कहा, “मानव विकास सूचकांक के संकेतकों पर धनगरों की स्थिति खराब रही है, लेकिन उन्हें महायुति सरकार से कोई समर्थन नहीं मिला है।”
उन्होंने कहा कि पिछले साल, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आरक्षण की मांग से जुड़े मुद्दे के समाधान के लिए अन्य राज्यों की कार्यप्रणाली का अध्ययन करने के बारे में अस्पष्ट प्रतिबद्धताएं व्यक्त की थीं, लेकिन कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी लगातार देशव्यापी जाति जनगणना के लिए प्रतिबद्धता जताती रही है ताकि भारत में हर पिछड़ा समुदाय उन अवसरों तक पहुंच सके जिसके वे हकदार हैं।
केंद्र पर महाराष्ट्र के चीनी उद्योग की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि इस वर्ष चीनी उत्पादन में कमी की आशंका के चलते केंद्र सरकार ने इथेनॉल के उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है, जिसके कारण महाराष्ट्र के मिल मालिक कम से कम 925 करोड़ रुपये का स्टॉक दबाए बैठे हैं।
रमेश ने दलील दी कि केंद्र की भविष्यवाणियां हालांकि सही नहीं हैं। गन्ने की प्रति एकड़ उपज वास्तव में 15 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है।
उन्होंने कहा, “अब, चीनी मिलें मुश्किल में हैं - इस प्रतिबंध से वित्तीय बोझ के अलावा, वे इथेनॉल और स्पिरिट के अपने मौजूदा स्टॉक से लगने वाले आग के खतरे को लेकर भी चिंतित हैं, जो कि ज्वलनशील सामग्री हैं।”
उन्होंने कहा कि न ही केंद्र की प्रतिक्रियावादी नीति ने किसानों की मदद की है - गन्ने की उम्मीद से अधिक आपूर्ति ने फसल की कीमतें कम कर दी हैं। विशेष रूप से ऐसा इथेनॉल प्रतिबंध के कारण मांग में गिरावट की वजह से हुआ है।
रमेश ने कहा, “क्या ‘नॉन-बायोलॉजिकल’ प्रधानमंत्री नीति में इस विनाशकारी बदलाव की ज़िम्मेदारी लेंगे? क्या भाजपा के पास चीनी उद्योग के लिए उनके ही द्वारा पैदा की गई इन समस्याओं का समाधान करने की कोई योजना है?”
इससे पहले दिन में रमेश ने चिमुर और सोलापुर में प्रधानमंत्री की रैलियों से पहले उनके सामने तीन अन्य सवाल रखे और पूछा कि भाजपा ने महाराष्ट्र में आदिवासियों के वन अधिकारों को ‘‘कमजोर’’ क्यों कर दिया है।
उन्होंने कहा कि 2006 में कांग्रेस ने क्रांतिकारी वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) पारित किया था जो आदिवासियों और वन में रहने वाले अन्य समुदायों को अपने खुद के जंगलों का प्रबंधन करने तथा उनसे प्राप्त उपज से आर्थिक लाभ उठाने का कानूनी अधिकार देता था।
रमेश ने कहा, ‘‘लेकिन भाजपा सरकार एफआरए के कार्यान्वयन में बाधा डालती रही है, जिससे लाखों आदिवासी इसके लाभों से वंचित हो रहे हैं। महाराष्ट्र में दाखिल किए गए 4,01,046 व्यक्तिगत दावों में से केवल 52 प्रतिशत (2,06,620 दावों) को मंजूरी दी गयी है और इसके तहत वितरित की गयी भूमि स्वामित्व सामुदायिक अधिकारों के लिए पात्र 50,045 वर्ग किलोमीटर का केवल 23.5 प्रतिशत (11,769 वर्ग किलोमीटर) है।’’
उन्होंने पूछा कि भाजपा सरकार महाराष्ट्र में आदिवासी समुदायों को उनके अधिकार दिलाने में नाकाम क्यों रही है। रमेश ने पूछा कि प्रधानमंत्री ने सतारा और सोलापुर में पानी की कमी को दूर करने के लिए क्या किया है?
उन्होंने भाजपा से पूछा कि वह किसानों की आत्महत्या को रोकने के लिए क्या कर रही है। रमेश ने कहा कि महाराष्ट्र में एक दिन में औसतन सात किसान अपनी जान दे रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की उदासीनता और लापरवाही के कारण कांग्रेस लगातार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), कर्ज माफी के लिए एक स्थायी ऋण आयोग की स्थापना की और 30 दिनों के भीतर सभी फसल बीमा दावों के निपटान की गारंटी की बात करती रही है।’’
रमेश ने पूछा कि महाराष्ट्र और भारत के किसानों की बेहतरी के लिए भाजपा के पास क्या योजना है।
उन्होंने महाराष्ट्र में 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जारी प्रचार अभियान के बीच ये टिप्पणियां की हैं।
मतगणना 23 नवंबर को होगी।
भाषा प्रशांत