अमेरिका समेत जी20 देशों को जलवायु कार्रवाई तेज करने की जरूरत: ‘ग्लोबल साउथ’ का जलवायु सूचकांक
धीरज संतोष
- 12 Nov 2024, 06:10 PM
- Updated: 06:10 PM
(उज्मी अतहर)
बाकू(अजरबैजान), 12 नवंबर (भाषा) अजरबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन सीओपी29 में मंगलवार को जारी जलवायु जवाबदेही मैट्रिक्स के मुताबिक अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब और तुर्किये सहित अधिकांश जी20 सदस्यों को जलवायु कार्रवाई में अहम तेजी लाने की जरूरत है।
जलवायु जवाबदेही मैट्रिक्स (सीएएम) ‘ग्लोबल साउथ’ का अपनी तरह का पहला आकलन तंत्र है, जो अनुकूलन और कार्यान्वयन के साधनों सहित शमन से परे जलवायु पहलुओं में देशों के प्रदर्शन का विश्लेषण करता है।
सीएएम में कहा गया कि अमीर देशों के मुकाबले ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों जैसे भारत और दक्षिण अफ्रीका ने प्रमुख समझौतों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेकर, घरेलू स्तर पर उचित प्रयास करके और अपने दायित्वों का पालन करके जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए अहम प्रयास किए हैं।
यह रिपोर्ट नयी दिल्ली स्थित ‘थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईडब्ल्यू) ने स्वतंत्र रूप से तैयार की है।
सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट ‘क्या जी20 देश जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त कर रहे हैं?’ यहां सीओपी29 में जारी की गई है जिसमें पेरिस समझौते को मजबूत करने की प्रतिबद्धताओं पर प्रगति की निगरानी की गई और जलवायु प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए सीएएम को एक मानक के रूप में पेश किया गया है।
वार्षिक जलवायु वार्ता के 29वें दौर सीओपी29 में शामिल होने के लिए 190 से अधिक देशों के प्रतिनिधि अजरबैजान की राजधानी बाकू में एकत्र हुए हैं।
सीईईडब्ल्यू के सीईओ अरुणाभ घोष ने सीओपी28 के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के बावजूद, विकसित देशो के जवाबदेही के मामले में पीछे रहने के अहम पहलु पर प्रकाश डाला है।
उन्होंने सीओपी29 से देशों को जवाबदेह ठहराने को प्राथमिकता देने का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘सीओपी29 जवाबदेही के बारे में होना चाहिए। ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़े उत्सर्जक विकसित देशों को ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयास में तेजी लानी चाहिए, साथ ही गुणवत्ता और मात्रा दोनों के स्तर पर जलवायु वित्त जुटाना चाहिए।’’
घोष ने कहा, ‘‘बेहतर वित्तपोषण के बिना, सबसे गरीब लोगों को जलवायु प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा, जिससे सतत विकास कमजोर होगा।’’
सीईईडब्ल्यू ने अपने अध्ययन में जी-20 देशों को चार श्रेणियों नेता, उचित प्रयास, सीमित प्रयास, और सुधार की आवश्यकता के आधार पर बांटा है। उल्लेखनीय है कि जी20 देशों में से कोई भी देश जलवायु नेता के रूप में योग्य नहीं माना गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों ने मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग दर्शाया, जबकि भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों ने उल्लेखनीय घरेलू प्रयास किये।
इसमें कहा गया लेकिन अमेरिका और कनाडा सहित प्रमुख उत्सर्जक देश जलवायु समझौतों में पर्याप्त भागीदारी नहीं कर रहे हैं, जिससे उनकी प्रतिबद्धता पर संदेह उत्पन्न हो रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उचित प्रगति करने वाले देशों को भी क्षेत्रवार सुधार करना होगा तथा महत्वाकांक्षी जलवायु कार्यों के लिए सक्षम वातावरण बनाना होगा।
रिपोर्ट में रेखांकित किया गया कि महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के मामले में भारत नेतृत्व का प्रदर्शन कर रहा है।
इसमें कहा गया, ‘‘2020 से 2030 के बीच, बिजली, आवासीय और परिवहन क्षेत्रों के लिए भारतीय नीतियां जैसे कि राष्ट्रीय सौर मिशन, उजाला कार्यक्रम और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए एफएएमई योजना बिना किसी नीति के परिदृश्य की तुलना में लगभग चार अरब टन उत्सर्जन कम करेंगी। यह कमी 2023 में यूरोपीय संघ के कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 1.6 गुना के बराबर है।’’
रिपोर्ट के मुताबिक, इन नीतियों ने भारत को ऊर्जा स्रोतों के विविधिकरण के लिए नवीकरणीय ऊर्जा की अधिक हिस्सेदारी, इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में वृद्धि, तथा घरेलू वातानुकूलन और प्रकाश व्यवस्था में ऊर्जा दक्षता में सुधार की ओर अग्रसर किया है। हालांकि, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा को 1,500 गीगावाट से आगे बढ़ाने में भूमि, जल और जलवायु चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
सीएएम ने पांच मुख्य विषयों पर जी20 देशों के बीच अहम अंतर को रेखांकित किया है जिनमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग, क्षेत्रीय सुदृढ़ता और नवीकरणीय विकास, जलवायु वित्त की कमी, संवर्धित जलवायु अनुकूलन और हानि एवं क्षति वित्तपोषण, तथा हानि एवं क्षति संबंधी आंकड़ों में पारदर्शिता शामिल है।
रिपोर्ट में जलवायु वित्त में वृद्धि की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि सीओपी29 रियायती वित्त के लिए 1000 अरब अमेरिकी डॉलर का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करे। 2020 के लिए 100 अरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य के बावजूद, विकसित देश सामूहिक रूप से कम योगदान दे रहे हैं, जो कि वादे से कहीं कम है।
भाषा धीरज