एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले का विपक्षी दलों ने किया स्वागत
वैभव माधव
- 08 Nov 2024, 09:32 PM
- Updated: 09:32 PM
नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) विपक्षी दलों ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि संवैधानिक बुद्धिमत्ता के लिए यह फैसला अत्यंत प्रशंसनीय है।
हालांकि, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय की नई पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी तो केंद्र सरकार विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के सवाल पर अपना रुख ‘दृढ़ता से’ रखेगी।
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले को नयी पीठ के पास भेजने का निर्णय लिया और 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई थी।
कांग्रेस सांसद सिंघवी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘बहुमत का निर्णय अपनी दृढ़ता, संवैधानिक बुद्धिमत्ता और ऐतिहासिक गहराई के कारण अत्यधिक सराहनीय है, जिसके साथ यह एएमयू की स्थापना के मूल उद्गम और उद्देश्य को मान्यता देता है।’’
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों पर विशेष ध्यान देने के साथ व्यापक, प्रगतिशील और आधुनिक शिक्षा का प्रावधान पूरे विचार का आधार था और केवल यह तथ्य कि बाद में इसे एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का अतिरिक्त दर्जा मिल गया, उस मूल मंशा को कभी भी कम नहीं कर सकता है और न ही करना चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘यह देखना अच्छा है कि बहुमत के फैसले ने स्थापित स्थिति को मान्यता दी है, उसे बहाल किया है और उसे जारी रखा है, जिसे दुर्भाग्य से सत्ताधारियों द्वारा जानबूझकर और शरारतपूर्ण तरीके से अस्थिर करने का प्रयास किया गया था।’’
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने फैसले की तारीफ करते हुए कहा कि यह भारत में मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण दिन है।
ओवैसी ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘वर्ष 1967 के फैसले में एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया गया था जबकि वास्तव में उसका यही दर्जा था। अनुच्छेद 30 में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थानों को उस तरीके से स्थापित करने का अधिकार है जिस तरह वे उचित समझते हैं।”
उन्होंने एएमयू के छात्रों और शिक्षकों को बधाई देते हुए कहा, ‘‘अल्पसंख्यकों के खुद को शिक्षित करने के अधिकार को बरकरार रखा गया है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एएमयू, जामिया मिलिया इस्लामिया और यहां तक कि मदरसों को निशाना बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया है और पार्टी को ‘‘अब आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि केंद्र को एएमयू की सहायता करनी चाहिए क्योंकि यह भी एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता हन्नान मुल्ला ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों से पता चलता है कि एएमयू की स्थापना अल्पसंख्यकों ने की थी।
उन्होंने कहा, ‘‘संसद बहुसंख्यकों, अल्पसंख्यकों, सभी वर्गों के लिए कानून बनाती है। संसद कमजोर वर्गों के अधिकार नहीं ले सकती।’’
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब्दुल हाफिज गांधी ने कहा, ‘‘हम इस फैसले का स्वागत करते हैं। इसने एक रूपरेखा प्रदान की है जिसमें एएमयू के लिए अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करना संभव होगा।’’
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘केंद्र सरकार, जो (याचिका में) एक पक्ष है, अपने मामले को बहुत मजबूती से रखेगी। उच्चतम न्यायालय का प्रारंभिक कर्तव्य संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करना है और वह ऐसा करेगा।’’
उन्होंने कहा कि भाजपा संविधान में भरोसा करती है।
भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने ‘एक्स’ पर कुछ प्रमुख राजनेताओं के बयान साझा किए जिन्होंने 1972 में संसद में चर्चा के दौरान एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का विरोध किया था।
उन्होंने पूर्व शिक्षा मंत्री एस नूरुल हसन, पूर्व द्रमुक सांसद सी टी ढांडापानी और बारामूला से पूर्व कांग्रेस सांसद सैयद अहमद आगा की टिप्पणियों को पोस्ट करते हुए कहा, ‘‘यहां देखिए कि कुछ दिग्गजों ने संसद में चर्चा के दौरान एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का विरोध करते हुए क्या कहा था।’’
भाषा वैभव