सैन्य संग्रहालयों को जल्द ही ‘ई-प्लेटफॉर्म’ से जोड़ दिया जाएगा: सीडीएस जनरल चौहान
सुभाष नरेश
- 08 Nov 2024, 03:22 PM
- Updated: 03:22 PM
नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने शुक्रवार को कहा कि विभिन्न सैन्य संग्रहालयों को एक परियोजना के तहत ‘ई-प्लेटफॉर्म’ से जोड़ने का कार्य जारी है।
इस परियोजना का लक्ष्य भारत की गौरवशाली सैन्य विरासत के बारे में जागरूकता फैलाना है।
भारतीय सैन्य विरासत महोत्सव के दूसरे संस्करण के उद्घाटन समारोह में अपने मुख्य भाषण में, सीडीएस ने सैन्य गाथा साहित्य लेखन पर भी जोर दिया ताकि अतीत की सैन्य घटनाओं का उल्लेख कर उन्हें आम लोगों तक पहुंचाया जा सके।
जनरल चौहान ने कहा, ‘‘हमने, सशस्त्र बलों में, अपने गौरवशाली इतिहास और विरासत के बारे में जागरूकता फैलाने के इरादे से सैन्य संग्रहालयों को ई-लिंक करने की एक परियोजना शुरू की है। हमने पहले ही इनमें से लगभग आठ-दस सैन्य संग्रहालयों को ई-लिंक कर दिया है, और जल्द ही हम सभी 47-48 सैन्य संग्रहालयों को ई-लिंक करने जा रहे हैं। इस तरह, वे एक ही स्थान पर उपलब्ध होंगे, आपको वहां जाने की आवश्यकता नहीं होगी।’’
सीडीएस ने कहा, ‘‘हम सभी युद्ध संग्रहालयों को’’ एक राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर ई-लिंक करने के बारे में भी सोच रहे हैं, ताकि यह उन लोगों के लिए उपलब्ध हो सके, जो इन्हें ऑनलाइन माध्यम से देखना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि इसी तरह, लोगों को सैन्य वीरता से अवगत कराने के लिए, "युद्धक्षेत्र पर्यटन" के वास्ते एक ‘‘हाइब्रिड मॉडल’’ अपनाया गया है।
सीडीएस ने कहा, ‘‘इसमें विभिन्न युद्धक्षेत्रों के ऑनलाइन लिंक शामिल हैं, जहां सशस्त्र बलों ने लड़ाई लड़ी है, और उन युद्धक्षेत्रों के दौरे भी कराये जाएंगे, जो युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों के अभियानों के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं।’’
इस कार्यक्रम में 'शौर्य गाथा' परियोजना की भी शुरूआत की गई जो सैन्य मामलों के विभाग और ‘थिंक टैंक’ यूएसआई की पहल है। परियोजना का उद्देश्य शिक्षा और पर्यटन के माध्यम से भारत की सैन्य विरासत को संरक्षित करना और बढ़ावा देना है।
इस महोत्सव का उद्देश्य वैश्विक और भारतीय थिंक-टैंक, निगमों, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उपक्रमों, गैर-लाभकारी संगठनों, शिक्षाविदों और शोध व अनुसंधान विद्वानों को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, सैन्य इतिहास और सैन्य विरासत पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शामिल करना है।
सीडीएस ने युद्ध में कला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि अंग्रेजों ने न केवल युद्ध कला का अभ्यास किया, बल्कि युद्ध से संबंधित कला कार्यों को संरक्षण भी दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘सर स्टेनली स्पेंसर ने प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध में आधिकारिक युद्ध कलाकार के रूप में सेवा दी। उनकी कलाकृतियों में सैनिकों के दैनिक जीवन और युद्ध की भावनात्मक पीड़ा को दर्शाया गया है।’’
भारत में ब्रिटिश शासन ने पेंटिंग का एक विद्यालय भी खोला था जिसने दैनिक और सैन्य जीवन का चित्रण किया था।
सीडीएस ने कर्नल अरुल राज के योगदान को भी याद किया, जिनकी पेंटिंग साउथ ब्लॉक से लेकर मानेकशॉ सेंटर तक सैन्य प्रतिष्ठानों की दीवारों की शोभा बढ़ा रही हैं।
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