एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर आठ नवंबर को फैसला सुनाएगा न्यायालय
वैभव माधव
- 07 Nov 2024, 10:28 PM
- Updated: 10:28 PM
नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को इस विवादास्पद कानूनी सवाल पर अपना फैसला सुनाएगा कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार देता है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी।
पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं।
उन्होंने आठ दिन तक दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गत एक फरवरी को, एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के जटिल मुद्दे पर शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू अधिनियम में 1981 का संशोधन, जिसने प्रभावी रूप से इसे अल्पसंख्यक दर्जा दिया, ने केवल ‘आधे-अधूरे मन’ से काम किया और संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया।
एएमयू अधिनियम, 1920 अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की बात करता है, वहीं 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त करने का प्रावधान करता है।
इस संस्थान की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान के नेतृत्व में मुस्लिम समुदाय के सदस्यों द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज के रूप में की गई थी। वर्षों बाद 1920 में, यह ब्रिटिश राज के तहत एक विश्वविद्यालय में तब्दील हो गया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जैसे अन्य लोगों ने तर्क दिया कि केंद्र से भारी धनराशि प्राप्त करने वाला और राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित होने वाला विश्वविद्यालय किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय से संबंधित होने का दावा नहीं कर सकता।
उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि 1951 में एएमयू अधिनियम में संशोधन के बाद जब मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज को विश्वविद्यालय में बदला गया और उसने केंद्र सरकार से धन प्राप्त करना शुरू कर दिया, तो संस्थान ने अपना अल्पसंख्यक चरित्र त्याग दिया।
एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने का विरोध करने वाले एक वकील ने यहां तक दावा किया था कि 2019 से 2023 के बीच केंद्र सरकार से उसे 5,000 करोड़ रुपये से अधिक मिले हैं, जो केंद्रीय विश्वविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय को मिले धन से लगभग दोगुना है।
गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को खारिज कर दिया था जिसके तहत विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ एएमयू सहित अन्य पक्षों द्वारा शीर्ष अदालत में अपील दायर की गई थीं।
भाषा वैभव