पश्चिम एशियाई देशों के राजदूतों की संगोष्ठियां रद्द करने के लिए दबाव डाला गया: जेएनयू अधिकारी
सिम्मी अविनाश
- 07 Nov 2024, 09:58 PM
- Updated: 09:58 PM
नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) द्वारा पश्चिम एशियाई देशों के राजदूतों की संगोष्ठियां को कथित रूप से रद्द किए जाने को लेकर हुए विवाद के बीच, विश्वविद्यालय की एक पूर्व कार्यक्रम समन्वयक ने पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र अध्यक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि उन पर कार्यक्रम रद्द करने के लिए दबाव डाला गया था।
पूर्व कार्यक्रम समन्वयक सीमा बैद्य ने विश्वविद्यालय के एक अधिकारी द्वारा उनकी निजी जानकारी कथित तौर पर लीक किए जाने के बाद सुरक्षा संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए जेएनयू से सुरक्षा मुहैया कराने की भी मांग की।
ईरान, फलस्तीन और लेबनान के राजदूतों के तीन कार्यक्रमों को जेएनयू ने कोई कारण बताए बिना पिछले महीने कथित तौर पर रद्द कर दिया गया था। ये तीनों राजदूत पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष पर बोलने वाले थे।
पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र (जहां राजदूतों को बोलना था) जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान (एसआईएस) के अंतर्गत कार्य करता है। एसआईएस ने शिकायत मिलने के बाद मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की है। बैद्य को अध्ययन केंद्र के साथ संवादहीनता के लिए दोषी ठहराया गया था और उनकी जगह किसी अन्य की नियुक्ति की गई थी।
ईरान के राजदूत इराज इलाही को 24 अक्टूबर को, फलस्तीनी राजदूत को सात नवंबर को तथा लेबनान के राजदूत को 14 नवंबर को कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किए जाने की पुष्टि संबंधित दूतावासों ने की थी।
एसआईएस के डीन अमिताभ मट्टू से की गई शिकायत में बैद्य ने आरोप लगाया है कि केंद्र की अध्यक्ष समीना हमीद ने उन्हें निर्धारित कार्यक्रम रद्द करने के लिए मजबूर किया तथा इस कदम की आलोचना होने के बाद उनके स्थान पर एक कनिष्ठ सहयोगी को गलत तरीके से नियुक्त कर दिया गया।
उन्होंने कार्यक्रम रद्द होने के बाद अध्ययन केंद्र द्वारा दिए गए बयानों को खारिज कर दिया। अध्ययन केंद्र ने दावा किया है कि समन्वयक की ओर से संवादहीनता और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन न करने के कारण यह कदम उठाना पड़ा।
बैद्य ने कहा, ‘‘कार्यक्रम समन्वयक के रूप में मेरी ओर से कोई संवादहीनता नहीं हुई। अंतिम क्षण में कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इसके अलावा विदेशी/ईरानी राजदूत को आमंत्रित करने के लिए किसी विशेष व्यवस्था की आवश्यकता नहीं थी। समीना हमीद ने आपके सामने ऐसी विकृत तस्वीर पेश की और आप इसे रोकने की जल्दी में थे।’’
उन्होंने कहा कि पहले भी इन देशों के साथ-साथ अन्य देशों के राजदूतों ने जेएनयू में कार्यक्रमों को संबोधित किया है, जिसके लिए विश्वविद्यालय द्वारा कोई स्पष्ट सुरक्षा प्रोटोकॉल नहीं बनाया गया था।
मट्टू ने पिछले महीने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा था कि कार्यक्रम समन्वयक ने पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र से परामर्श किए बिना ही राजदूतों को निमंत्रण भेज दिया, जिसके कारण व्यवस्था संबंधी चुनौतियां उत्पन्न हो गयीं। उन्होंने कहा था कि दो अन्य कार्यक्रमों के निमंत्रण आधिकारिक माध्यमों से नहीं भेजे गए थे इसलिए उन्हें रद्द करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
बैद्य ने अपनी शिकायत में इस दावे का खंडन करते हुए कहा है, ‘‘मेरे पास दस्तावेजी सबूत हैं कि फलस्तीन और लेबनान के राजदूतों के अन्य दो कार्यक्रमों की पुष्टि की गई थी।’’
उन्होंने दावा किया है कि कार्यक्रम समन्वयक को केंद्र से परामर्श किए बिना स्वतंत्र रूप से लोगों को आमंत्रित करने और कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति है।
कुलपति और रजिस्ट्रार को दी गई एक अलग शिकायत में बैद्य ने आरोप लगाया कि कार्यक्रम रद्द होने के बाद हमीद द्वारा बुलाई गई आपातकालीन बैठक में अध्यक्ष ने उनके साथ हिंसक व्यवहार किया और बाद में केंद्र के साथ परामर्श किए बिना एक कनिष्ठ सहयोगी को गलत तरीके से उनकी जगह नियुक्त कर दिया गया।
बैद्य ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने उनके आवासीय पते को लीक कर दिया जिसके बाद मीडिया ने उन्हें ‘‘परेशान’’ किया।
उन्होंने कुलपति को लिखे पत्र में कहा, ‘‘मुझे मानसिक तनाव और यातना दी गई है। इसलिए मैं आपको पत्र लिख रही हूं कि मामले की जांच करें और आवश्यक कार्रवाई करें तथा मुझे सुरक्षा प्रदान करें।’’
जेएनयू की कुलपति शांतिश्री डी पंडित ने शिकायत पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘‘परिसर में किसी की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। शिकायतकर्ता ने एक अलग विषय पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए मंजूरी मांगी थी लेकिन बाद में पश्चिम एशियाई संघर्ष पर बोलने के लिए राजदूतों को आमंत्रित किया। केंद्र ने मामले की जांच के लिए पहले ही एक समिति गठित कर दी है।’’
इन आरोपों पर हमीद और मट्टू ने तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
भाषा सिम्मी