प्रधानमंत्री मोदी, पर्यावरण मंत्री के बाकू में संरा जलवायु शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने की संभावना
सिम्मी माधव
- 07 Nov 2024, 08:22 PM
- Updated: 08:22 PM
नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव के अजरबैजान में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भाग लेने की संभावना नहीं है। आधिकारिक सूत्रों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह उच्च स्तरीय सम्मेलन में 19 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे तथा 18-19 नवंबर को भारत का राष्ट्रीय वक्तव्य देंगे।
भारत सीओपी29 में किसी मंडप की मेजबानी नहीं करेगा। ग्लासगो में 2021 में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के बाद से पहली बार ऐसा होगा कि भारत की इसमें मौजूदगी नहीं होगी।
एक आधिकारिक सूत्र ने ‘पीटीआई-भाषा’ से पुष्टि की कि मोदी 12-13 नवंबर को होने वाले सीओपी29 में विश्व के नेताओं के जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेंगे।
यादव के भी जलवायु सम्मेलन में शामिल नहीं होने की संभावना है, क्योंकि वह महाराष्ट्र में 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में व्यस्त रहेंगे, जहां वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभारी हैं।
सूत्रों के अनुसार, सीओपी29 के लिए भारत की प्रमुख प्राथमिकताओं में ऐसा महत्वाकांक्षी नया जलवायु वित्त लक्ष्य हासिल करना शामिल है जो सभी विकासशील देशों की जरूरतों को पूरा करे। उसकी प्राथमिकताओं में पेरिस समझौते के अनुच्छेद छह को लागू करना भी शामिल है।
इस वर्ष के सीओपी29 में देशों से नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) संबंधी समझौता करने की अपेक्षा की जा रही है जो वह नयी राशि है जिसे विकसित देशों को विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए 2025 से हर वर्ष जुटाना होगा।
अनुच्छेद छह देशों के लिए एक ढांचा स्थापित करता है जिसके तहत वे अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने से उत्पन्न ‘कार्बन क्रेडिट’ का व्यापार कर सकते हैं, जिससे अन्य देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
सूत्रों ने कहा कि भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वार्ता संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और पेरिस समझौते के ढांचे के भीतर रहे।
विकसित देश जलवायु वित्त में योगदान देने वालों की सूची का विस्तार करने पर जोर दे रहे हैं। स्विट्जरलैंड और कनाडा जैसे देश वित्त मुहैया कराने वाले देशों के आधार को व्यापक बनाने के लिए मानदंड प्रस्तावित कर रहे हैं।
विकासशील देशों के वार्ताकारों और नीति विशेषज्ञों का तर्क है कि ‘जलवायु वित्त योगदानकर्ता आधार’ का विस्तार करना एनसीक्यूजी आज्ञापत्र से परे है और इससे नए वित्त लक्ष्य संबंधी वार्ता बाधित हो सकती है।
विकासशील देशों ने यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) जैसे एकतरफा व्यापार उपायों का भी कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के जलवायु नियमों के तहत, किसी भी देश को दूसरों पर उत्सर्जन में कमी की रणनीति नहीं थोपनी चाहिए।
‘बेसिक’ देशों के समूह (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) का प्रतिनिधित्व करते हुए चीन ने यूएनएफसीसीसी (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन ‘फ्रेमवर्क’ सम्मलेन) को एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है, जिसमें अनुरोध किया गया है कि सीओपी29 में इस मुद्दे का समाधान निकाला जाए।
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