बिन मांगे दहेज देने के लिए ससुराल वालों के खिलाफ प्राथमिकी की मांग, अदालत ने किया खारिज
सुभाष माधव
- 07 Nov 2024, 08:17 PM
- Updated: 08:17 PM
(मनीष राज)
नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) बिन मांगे कथित तौर पर दहेज देने को लेकर अपने ससुराल वालों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई का अनुरोध करने संबंधी याचिका खारिज किये जाने के आदेश को एक व्यक्ति ने चुनौती दी, लेकिन वह अदालत को आश्वस्त करने में नाकाम रहा।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नवजीत बुद्धिराजा एक मजिस्ट्रेट अदालत के जुलाई 2022 के आदेश के खिलाफ व्यक्ति की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
मजिस्ट्रेट अदालत ने दहेज देने को लेकर व्यक्ति के सास-ससुर और साले के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने संबंधी उसके (व्यक्ति के) अनुरोध को खारिज कर दिया था।
अदालत के संज्ञान में यह भी आया कि व्यक्ति अपनी पत्नी के परिवार द्वारा दर्ज कराये गए क्रूरता के एक मामले का सामना कर रहा है।
अदालत ने कहा, ‘‘सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों द्वारा साक्ष्य पेश किये जाने तक, दहेज की मांग की गई थी या नहीं, के संबंध में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता और इस समय, पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले का यह बयान कि उसने प्रतिवादियों से कभी दहेज नहीं मांगा और इसके बावजूद भी उसके बैंक खाते में 25,000 रुपये और 46,500 रुपये हस्तांतरित कर दिये गए, अपने हित को पूरा करने वाला बयान होगा।’’
पांच अक्टूबर को पारित आदेश में न्यायाधीश बुद्धिराजा ने कहा कि उसके ससुराल वालों ने पहले ही उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई है।
अदालत ने मजिस्ट्रेट की उस टिप्पणी को सही ठहराया, जिसमें व्यक्ति ने शिकायत की थी कि उसके ससुराल वालों ने प्राथमिकी दर्ज कराते समय स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि उन्होंने उसे (व्यक्ति को) दहेज दिया था और इसे स्वीकार करना दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत अपराध है।
अधिनियम की धारा 3 में दहेज देने या लेने के लिए दंड का प्रावधान है।
अदालत ने कहा कि व्यक्ति द्वारा उठाए गए मुद्दों को मजिस्ट्रेट द्वारा ‘‘उपयुक्त रूप से निस्तारित’’ किया गया था। मजिस्ट्रेट के आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई गई।
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