उत्तर प्रदेश में पेड़ की शाखा पर लटके मिले नवजात शिशु ने मौत को दी मात
जोहेब
- 06 Nov 2024, 08:22 PM
- Updated: 08:22 PM
प्रयागराज/कानपुर (उत्तर प्रदेश), छह नवंबर (भाषा) उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में एक पेड़ की शाखा पर जिंदा मिले लावारिस बच्चे को मौत को मात देने के बाद नयी जिंदगी मिली है। यह बच्चा अगस्त में पेड़ की शाखा पर लटका हुआ मिला था और उसके शरीर पर पशु के नोचने के गहरे घावों समेत 50 घाव थे।
बच्चा जब लावारिस हालत में मिला था तब उसकी उम्र मुश्किल से दो दिन थी। उसने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए न सिर्फ नयी जिंदगी पाई है, बल्कि उसे नया नाम 'कृष्णा' भी मिला है। हाल ही में बच्चे को अस्थायी रूप से प्रयागराज के सरकारी बाल गृह में रखा गया है।
प्रयागराज के जिला प्रोबेशन अधिकारी सर्वजीत सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि फिलहाल 'पूरी तरह स्वस्थ' इस बच्चे की अब बाल गृह में उचित देखभाल की जा रही है और उसे हमीरपुर में बाल कल्याण समिति के आदेश के बाद वहां भेजा गया था।
गोद लिए जाने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने कहा, “ऐसे हर बच्चे के बारे में पूरी जानकारी केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण की वेबसाइट पर अपलोड की जाती है। जो कोई भी बच्चा गोद लेना चाहता है, वह वेबसाइट पर आवेदन कर सकता है। हालांकि, इस बच्चे की जानकारी अभी अपलोड होनी बाकी है।”
प्रयागराज पहुंचाए जाने से पहले, उसे कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी (जीएसवीएम) मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में रखा गया था, जिसने लगभग दो महीनों के दौरान चमत्कारिक रूप से उसके ठीक होने में मदद की।
मौत को मात देने वाले बच्चे को छुट्टी दिए जाने के समय अस्पताल के चिकित्सा कर्मचारी भावुक हो गए।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ. अरुण कुमार आर्य ने एक बयान में कहा, “लावारिस छोड़े जाने और पशु हमले के बाद जिंदगी-मौत के बीच जंग लड़ रहा यह बच्चा जब पूरी तरह से ठीक हो गया, तो हमें बेतहाशा खुशी हुई।’
डॉ. आर्य ने कहा, “ छोटे और मासूम बच्चे ने अकल्पनीय कष्ट सहे, उसके पूरे शरीर पर कुत्तों के काटने और नोचने के कई निशान थे, इसके बावजूद वह बच गया।”
उन्होंने कहा कि बच्चा हमीरपुर जिले में एक सुनसान खेत में मिला था और बाद में स्थानीय अधिकारियों द्वारा सूचित किए जाने के बाद पुलिस ने उसे बचाया। बच्चे को बचाए जाने के समय वह "गंभीर रूप से कुपोषित" था और उसे "चिकित्सा की सख्त जरूरत थी"।
डॉ. आर्य ने कहा कि भूखे बच्चे के शरीर पर कई संक्रमित घाव थे और उसकी चीखें दूर से सुनी जा सकती थीं।
उन्होंने कहा, “बच्चे को 31 अगस्त को नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में भर्ती कराया गया था। उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था और शिशु-आहार नली से दूध पिलाया गया था। चिकित्सकों और नर्सों की प्यार भरी देखभाल ने बच्चे को मौत के मुंह से निकाला और वह उनकी आंखों का तारा बन गया। ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब अस्पताल के कर्मचारी शिशु कृष्ण के साथ न खेले हों।”
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य संजय काला ने कहा, “डॉ. आर्य ने बच्चे का नाम 'कृष्णा' रखा क्योंकि वह जन्माष्टमी (26 अगस्त) के शुभ दिन लावारिस मिला था और इतनी कम उम्र में इतने कष्ट सहने के बाद भी वह जिंदगी की जंग जीत गया।”
हालांकि, प्रयागराज के बाल गृह में स्थानांतरित करते समय, बाल कल्याण समिति ने शिशु का नाम 'लव' दर्ज किया था क्योंकि उसका कोई नाम नहीं पता था।
शिशु को 25 अक्टूबर को बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया, जिसने उसे अगले कुछ दिन में प्रयागराज के बाल गृह भेज दिया।
जीएसवीएम के एक डॉक्टर ने कहा, “जब उसे अस्पताल से ले जाया जा रहा था तो सभी कर्मचारियों की आंखों में आंसू थे क्योंकि उन्हें बच्चों से बहुत जुड़ाव महसूस होने लगा था।”
भाषा मनीष जफर