महिला की ननद के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से अदालत का इनकार
अमित अविनाश
- 04 Nov 2024, 09:05 PM
- Updated: 09:05 PM
नयी दिल्ली, चार नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस महिला की ननद के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया है, जिसने आरोप लगाया था कि उसके पति और उसके परिवार ने उसके साथ क्रूरता की। अदालत ने कहा कि प्राथमिकी केवल इस आधार पर रद्द नहीं की जा सकती कि घटनाओं की सटीक तारीखें नहीं हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि आमतौर पर वैवाहिक रिश्ते में महिला का प्रयास यह सुनिश्चित करना होता है कि विवाह टूटे नहीं।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘‘यह अदालत इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान ले सकती है कि आम तौर पर वैवाहिक रिश्ते में किसी भी महिला का प्रयास यह सुनिश्चित करना होता है कि विवाह टूटे नहीं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह तथ्य कि वैवाहिक रिश्ते के पहले हिस्से के बारे में कोई आरोप नहीं हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप अस्पष्ट हैं और प्राथमिकी को केवल इस आधार पर रद्द किया जाना चाहिए कि प्राथमिकी में सटीक तारीखें नहीं दी गई हैं।’’
अदालत ने कहा कि प्राथमिकी के अवलोकन से पता चलता है कि महिला की ननद के खिलाफ उत्पीड़न के संबंध में विशेष आरोप थे। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता की शादी 2015 में हुई थी और प्राथमिकी 2022 में दर्ज की गई।
अदालत ने कहा, ‘‘यह अच्छी तरह स्थापित है कि प्राथमिकी कोई विश्वकोश नहीं है और यह नहीं कहा जा सकता कि शादी के छह साल बाद शिकायतकर्ता लगाए गए आरोपों के बारे में सटीक समय और तारीख बता पाएगी।’’
अदालत महिला की ननद की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें महिला द्वारा उसके खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। प्राथमिकी में महिला ने उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा विवाहिता के साथ कथित तौर पर क्रूरता करने, भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक धमकी और विश्वासघात का आरोप लगाया गया था।
महिला के पति और सास के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई है। शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा कि वह तीनों आरोपियों की ओर से लगातार मानसिक यातना और क्रूर कृत्यों से व्यथित है।
प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध करते हुए विवाहिता की ननद ने दावा किया कि वह शायद ही कभी अपने पैतृक घर जाती थी, जहां शिकायतकर्ता रहती थी और उसके खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार और झूठे हैं। उसके वकील ने कहा कि पति के रिश्तेदारों को केवल बयानों के आधार पर नहीं फंसाया जाना चाहिए, जब तक कि अपराध के बारे में विशिष्ट कथन न दिए गए हों।
हालांकि, अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा विशिष्ट आरोप लगाये गए हैं और तारीखें उल्लेखित की गई हैं जो शिकायत दर्ज करने से ठीक पहले की हैं।
अदालत ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अदालतें जांच में हस्तक्षेप नहीं करती हैं और यदि प्राथमिकी में अपराध की बात कही गई है, तो अदालतों को प्राथमिकी को रद्द करने में बहुत धीमी गति से काम करना चाहिए।
उसने कहा कि मामले में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है और शिकायतकर्ता का बयान पहले ही अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किया जा चुका है और अदालत प्राथमिकी को रद्द करने या आरोपपत्र पर संज्ञान लेने के आदेश में हस्तक्षेप करने की इच्छुक नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोप तय करते समय आरोपी संबंधित अदालत के समक्ष इस तरह की दलीलें रख सकती है।
भाषा अमित