‘रिश्वत’ मामले में गिरफ्तार आईटीपीओ अधिकारी बरी; सीबीआई विफल रही: अदालत
प्रशांत नरेश
- 04 Nov 2024, 05:56 PM
- Updated: 05:56 PM
नयी दिल्ली, चार नवंबर (भाषा) सीबीआई की एक विशेष अदालत ने भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) के एक उप प्रबंधक को बरी कर दिया है, जिसे सीबीआई ने चार साल पहले एक उत्सव के दौरान ‘स्टॉल’ की जगह के आवंटन के लिए रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था। अदालत ने कहा कि एजेंसी “रिश्वत लेने” के आरोप को साबित करने में विफल रही।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने आरोप लगाया कि आईटीपीओ के उप प्रबंधक अक्षय सिंह ने जालसाजी की कार्रवाई के दौरान प्राप्त फिनोलफ्थलीन-उपचारित नोटों की गिनती की थी।
छापेमारी के दौरान सिंह के हाथ सोडियम कार्बोनेट और पानी के घोल में धुलवाए गए जिससे उसका रंग गुलाबी हो गया, जिससे पता चला कि उन्होंने नोटों को छुआ था। इसके परिणामस्वरूप उनकी गिरफ्तारी हुई।
बचाव पक्ष ने सिंह और शिकायतकर्ता के बीच सीबीआई द्वारा गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत का हवाला दिया। जिसके बाद उसे बरी करने का फैसला सुनाया। बातचीत से पता चलता है कि जाल बिछाए जाने वाले दिन दोनों ने एक-दूसरे के साथ बीड़ी पी थी और एक-दूसरे से मिल-जुल रहे थे।
सिंह को 17 फरवरी, 2020 को उस वर्ष मार्च में निर्धारित आहार महोत्सव में दुकानों के आवंटन में कथित रूप से हेराफेरी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
बचाव पक्ष के वकीलों ने तर्क दिया कि यह बहुत संभव है कि निकटता के उक्त समय के दौरान, सिंह और रिश्वत देने वाले, जो शिकायतकर्ता भी था, ने एक-दूसरे से हाथ भी मिलाया हो, जिसके परिणामस्वरूप फिनोलफ्थलीन पाउडर शिकायतकर्ता के हाथों से सिंह के हाथों पर लग गया हो।
विशेष न्यायाधीश संजीव अग्रवाल ने कहा, “बचाव पक्ष द्वारा दिया गया यह स्पष्टीकरण संभावनाओं की अधिकता के आधार पर संभावित कहा जा सकता है।”
न्यायाधीश ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 के तहत रिश्वतखोरी के मामलों में अभियोजन पक्ष को जाल बिछाने के दिन रिश्वत की मांग, स्वीकृति और वसूली को साबित करना होता है।
उन्होंने कहा, “विचाराधीन मामले में अभियोजन पक्ष रिश्वत लेने को साबित करने में विफल रहा है।”
उन्होंने कहा, “अभियोजन पक्ष आरोपी के कब्जे से अवैध रिश्वत की रकम बरामद होने की बात साबित करने में भी विफल रहा है।”
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