एनजीटी ने गुजरात, ओडिशा में अपशिष्ट प्रबंधन में कई कमियां गिनाईं
पारुल रंजन
- 03 Nov 2024, 08:18 PM
- Updated: 08:18 PM
नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति का जायजा लेने के दौरान गुजरात और ओडिशा की ओर से पेश की गई प्रगति रिपोर्ट के विश्लेषण के बाद दोनों राज्यों में उठाए गए कदमों में कई कमियों का जिक्र किया है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर कुमार अग्रवाल और विशेषज्ञ ए सेंथिल वेल की पीठ ने कहा कि दोनों राज्यों ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों और पर्याप्त सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) की स्थापना के संबंध में उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों का ब्योरा देते हुए अलग-अलग प्रगति रिपोर्ट दायर की है।
पिछले साल अधिकरण ने अपशिष्ट प्रबंधन में कमियों के लिए विभिन्न राज्यों पर पर्यावरणीय जुर्माना (ईसी) लगाया था, जिसकी धनराशि ‘रिंग-फेंस्ड’ खाते में रखी जानी थी।
‘रिंग-फेंस्ड’ खाता ऐसा बैंक खाता होता है, जिसमें किसी व्यक्ति या संस्थान की वित्तीय परिसंपत्तियों के एक हिस्से को बाकी हिस्सों से अलग रखा जाता है। इसका मकसद किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए धन आरक्षित करना, व्यक्ति या कंपनी पर करों का बोझ घटाना या परिसंपत्तियों को जोखिम भरे कार्यों से होने वाले नुकसान से बचाना होता है।
एनजीटी ने गुजरात पर 2,100 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया था। वहीं, ओडिशा सरकार की ओर से यह शपथपत्र दिए जाने के बाद कि वह कमियों को दूर करने के लिए 1,138 करोड़ रुपये अलग रखेगी, एनजीटी ने राज्य पर जुर्माना लगाने की योजना टाल दी थी।
गुजरात में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में पीठ ने कहा, “अपशिष्ट प्रसंस्करण में पाया गया अंतर लगभग उसी स्तर पर है, जैसा कि पहले बताया गया था। इसकी वजह यह है कि राज्य में पैदा होने वाले कुल अपशिष्ट के प्रसंस्करण के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।”
उसने कहा, “मौजूदा समय में (गुजरात में) रोजाना 10,317 टन अपशिष्ट पैदा होने का अनुमान है, जबकि महज 1,445 टन के प्रसंस्करण की सुविधा उपलब्ध है। इसका मतलब यह है कि अपशिष्ट उत्पादन और प्रसंस्करण में प्रतिदिन 8,872 टन का अंतर है।”
पीठ ने कहा कि सात शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में 1.24 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) पुराने कचरे का निपटान किया जाना बाकी है।
एनजीटी ने कहा कि गुजरात में सीवेज प्रबंधन में 531 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) का अंतर है।
पर्यावरणीय जुर्माना राशि के बारे में अधिकरण ने कहा, “रिंग-फेंस्ड खाते के विवरण का खुलासा नहीं किया गया है। अगली रिपोर्ट में सीवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में अंतर को पाटने के लिए प्रत्येक यूएलबी को आवंटित धन का भी जिक्र किया जाना चाहिए।”
एनजीटी ने कहा कि ओडिशा में सीवेज प्रबंधन में 146.90 एमएलडी का अंतर है। उसने कहा, “भुवनेश्वर, कटक, संबलपुर और राउरकेला में स्थापित सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) का संतोषजनक इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इन शहरों में एसटीपी की पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूर है।”
अधिकरण ने कहा कि राज्य में 33 यूएलबी द्वारा लगभग 26.58 लाख मीट्रिक टन पुराने कचरे का निपटान किया जाना बाकी है।
उसने यह भी कहा कि रिंग-फेंस्ड खाते में स्थानांतरित की जा रही पर्यावरणीय जुर्माना राशि के विवरण के संबंध में कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं था।
एनजीटी ने दोनों राज्यों से ताजा स्थिति रिपोर्ट मांगी। साथ ही ओडिशा और गुजरात की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए अगले साल क्रमश: 28 अप्रैल और 22 जुलाई की तारीख तय की।
भाषा पारुल