दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच केंद्र ने राज्यों से पराली प्रबंधन में तेजी लाने का आग्रह किया
पारुल शफीक
- 26 Oct 2024, 09:22 PM
- Updated: 09:22 PM
नयी दिल्ली, 26 अक्टूबर (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के स्तर में कमी लाने की कोशिशों के बीच केंद्र सरकार ने राज्यों से पराली प्रबंधन की मौजूदा सूक्ष्म-स्तरीय कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन में तेजी लाने का शनिवार को आग्रह किया।
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हुई उच्च स्तरीय बैठक में राज्यों से उन 3,00,000 से अधिक फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों को इस्तेमाल के लिहाज से अधिक अनुकूल बनाने के लिए कहा गया, जिन्हें सरकारी सब्सिडी पर किसानों को वितरित किया गया था।
बैठक में शिवराज ने कहा कि पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन “इस पर लगातार ध्यान दिए जाने की जरूरत है।”
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल के मुकाबले 35 फीसदी और हरियाणा में 21 फीसदी की कमी आई है। वहीं, 2017 से तुलना करें तो पराली जलाने के कुल मामलों में 51 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
आधिकारिक बयान के मुताबिक, बैठक में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री तथा दिल्ली के पर्यावरण मंत्री शामिल हुए। इसमें पराली जलाने की घटनाओं से निपटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति की रूपरेखा तैयार की गई।
बयान के अनुसार, रणनीति में संवेदनशील इलाकों में जिलाधिकारियों द्वारा गहन निगरानी, कृषि अपशिष्ट को जैव ईंधन में परिवर्तित करने के लिए बुनियादी ढांचे का विकास, यांत्रिक प्रबंधन के साथ जैव-अपघटक (बायो-डीकंपोजर) के इस्तेमाल को बढ़ावा देना और छोटे किसानों के लिए उपकरणों तक पहुंच बढ़ाना शामिल है।
सरकार फसल अवशेषों का खेतों में ही इस्तेमाल करने पर जोर दे रही है। वह इन्हें बायोगैस और अन्य उत्पादों में बदलकर किसानों के लिए आय के संभावित स्रोत के रूप में प्रचारित कर रही है।
बैठक में शामिल अधिकारियों ने स्वीकार किया कि सब्सिडी वाली मशीनों के वितरण के बावजूद छोटे किसानों की उपकरणों तक पहुंच सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
उत्तर भारत में सर्दियों में पराली जलाने की घटनाओं से दिल्ली और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण के स्तर में भारी इजाफा दर्ज किया जाता है। अधिकारियों ने आगाह किया है कि कृषि अपशिष्ट जलाने से हवा की गुणवत्ता खराब होने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचता है और पर्यावरण के लिए फायदेमंद माने जाने वाले कीट भी नष्ट होते हैं।
बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जिन्होंने इस मुद्दे के समाधान के लिए अपनाए जा रहे समन्वित दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला।
भाषा पारुल