बढ़ते प्रदूषण के बीच त्वचा के लिए 'ब्लैक डायमंड' बेहद फायदेमंद : विशेषज्ञ
पवनेश
- 22 Oct 2024, 06:36 PM
- Updated: 06:36 PM
नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर (भाषा)राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच विशेषज्ञों ने त्वचा के छिद्रों को बंद होने से रोकने और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर रखने के लिए प्राकृतिक उपचार के रूप में सक्रिय चारकोल के उपयोग की वकालत की है।
विशेषज्ञों के मुताबिक सक्रिय चारकोल का लेप चेहरे की त्वचा से सीबम (तैलीय पदार्थ) को कम करने में उपयोगी होती है, जिससे मुंहासों के उपचार में मदद मिलती है, क्योंकि इनमें अच्छे अवशोषण गुण होते हैं।
इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (आयुष) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आर.पी. पाराशर ने कहा कि सक्रिय चारकोल को ‘ब्लैक डायमंड’ भी कहा जाता है और इसमें सीबम को अवशोषित करने के अच्छे गुण होते हैं।
डॉ.पराशर ने कहा कि प्रदूषण का स्तर बढ़ने से त्वचा को लेकर चिंता बढ़ जाती है,क्योंकि में वायुमंडल में मौजूद पीएम2.5 से पीएम 10 आकार के कण आपके त्वचा के छिद्रों को बंद कर सकते हैं और परेशानी पैदा कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ ही वायुमंडल में शीशा और नाइट्रोजन जैसे रसायनों की मौजूदगी भी बढ़ जाती है तो त्वचा को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ त्वचा छिद्रों के जरिये रक्त वाहिकाओं तक पहुंच सकते हैं जिससे लंबे समय में अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘सक्रिय चारकोल त्वचा में अवशोषित नहीं होता है, लेकिन मुंहासों में मौजूद विषैले तत्वों और रोगाणुओं को अवशोषित कर लेता है और इस तरह यह त्वचा को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है।’’
डॉ. पाराशर ने कहा कि सक्रिय चारकोल सीबम बनने की प्रक्रिया को संतुलित और नियंत्रित करने में मदद कर सकता है, जो अन्यथा मुंहासे और फुंसियों का कारण बन सकता है।
इंडोनेशिया के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन ‘‘रिव्यू ऑफ ग्रीन सिंथेसिस: एक्टिवेटेड चारकोल टू रिड्यूस सिबम लेवल इन ऑयली फेशियल स्किन’’में कहा गया है कि सक्रिय चारकोल की छिद्रपूर्ण बनावट नकारात्मक रूप से आवेशित अणुओं को सकारात्मक रूप से पकड़ती है और आकर्षित करती है।
चूंकि सक्रिय चारकोल शरीर द्वारा अवशोषित नहीं होता, इसलिए यह सतह पर उपस्थित विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देता है।
त्वचा उत्पादों के ब्रांड आयुथवेदा के निदेशक डॉ.संचित शर्मा ने कहा, ‘‘सक्रिय चारकोल बांस की कटाई के बाद इसे बेहद उच्च तापमान पर कार्बोनाइज किया जाता है जिससे इसका सतह क्षेत्र और वजन का अनुपात 1200:1 हो जाता है।
उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया से निर्मित आयुथवेदा चारकोल फेसवाश त्वचा से गंदगी और अशुद्धियों को बाहर निकाल कर त्वचा को साफ करता है। यह त्वचा को प्रदूषण से बचाता और अतिरिक्त तेल को सोख लेता है। जिम के दौरान वर्कआउट के बाद जमा हुए पसीने और विषाक्त पदार्थों को यह कुशलता से खत्म करता है।
शर्मा ने कहा कि जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ रही है, चारकोल उत्पादों की कई किस्में एशियाई और यूरोपीय बाजारों में लोकप्रिय हो रही हैं, जो प्रदूषण के कारण उत्पन्न त्वचा संबंधी अनेक समस्याओं के लिए प्राकृतिक समाधान प्रदान करती हैं।
शर्मा ने कहा कि बांस के टुकड़ों एवं जड़ों से चारकोल तैयार होता है। हालांकि चारकोल अन्य लकड़ियों से भी बनता है लेकिन वन कानूनों के चलते इसे हासिल करना आसान नहीं है। जबकि बांस पेड़ नहीं है, एक घास है, उससे हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं है।
डॉ.पराशर ने कहा कि चारकोल से बने फेशवाश आमतौर पर सुरक्षित होते हैं लेकिन अति इस्तेमाल से त्वचा में थोड़ी खुश्की की समस्या आ सकती है।
भाषा धीरज