धनखड़ ने ‘‘पड़ोस में हिंदुओं के मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर वैश्विक चुप्पी’’ पर सवाल उठाया
सिम्मी माधव
- 18 Oct 2024, 05:21 PM
- Updated: 05:21 PM
(परिवर्तित स्लग के साथ)
(तस्वीर सहित)
नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारत के पड़ोस में हिंदुओं के मानवाधिकार उल्लंघन का जिक्र करते हुए इस मुद्दे को लेकर दुनिया की चुप्पी पर शुक्रवार को सवाल उठाया और कहा कि इस तरह के उल्लंघन के प्रति ‘‘अत्यधिक सहिष्णु’’ होना उचित नहीं है।
धनखड़ ने ‘‘तथाकथित नैतिक उपदेशकों, मानवाधिकारों के संरक्षकों की गहरी चुप्पी’’ पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनकी असलियत सामने आ गई है।
उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘वे ऐसी चीज के भाड़े के टट्टू हैं जो पूरी तरह से मानवाधिकारों के प्रतिकूल है।’’
उन्होंने कहा कि ‘‘हम बहुत सहिष्णु’’ हैं और इस तरह के अपराधों के प्रति अत्यधिक सहिष्णु होना उचित नहीं है।
धनखड़ ने लोगों से आत्मचिंतन करने की अपील करते हुए कहा, ‘‘सोचिए कि क्या आप भी उनमें से एक हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लड़के, लड़कियों और महिलाओं को किस तरह की बर्बरता एवं यातना और मानसिक आघात झेलना पड़ता है, उस पर गौर कीजिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘देखिए कि हमारे धार्मिक स्थलों को अपवित्र किया जा रहा है।’’
बहरहाल, उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने साथ ही कहा कि कुछ हानिकारक ताकतें भारत की ‘‘खराब छवि’’ पेश करने की कोशिश कर रही हैं और उन्होंने ऐसे प्रयासों को बेअसर करने के लिए ‘‘प्रतिघात’’ करने का आह्वान किया।
धनखड़ ने साथ ही कहा कि भारत को दूसरों से मानवाधिकारों पर उपदेश या व्याख्यान सुनना पसंद नहीं है।
उन्होंने विभाजन, आपातकाल लागू किए जाने और 1984 के सिख विरोधी दंगों को ऐसी दर्दनाक घटनाएं बताया, जो ‘‘याद दिलाती हैं कि आजादी कितनी नाजुक होती है।’’
धनखड़ ने कहा, ‘‘कुछ ऐसी हानिकारक ताकतें हैं जो एक सुनियोजित रूप से हमें अनुचित तरीके से कलंकित करना चाहती हैं।’’
उन्होंने कहा कि इन ताकतों का अंतरराष्ट्रीय मंचों का इस्तेमाल कर ‘‘हमारे मानवाधिकार रिकॉर्ड पर सवाल उठाने’’ का ‘‘दुष्ट इरादा’’ है।
उन्होंने कहा कि ऐसी ताकतों को बेअसर करने की जरूरत है और उन्हें ‘‘ऐसी कार्रवाइयों के जरिए बेअसर किया जाना चाहिए जो, अगर मैं भारतीय संदर्भ में कहूं तो ‘प्रतिघात’ का उदाहरण हों।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन ताकतों ने सूचकांक तैयार किए हैं और ये दुनिया में हर किसी को ‘रैंक’ दे रही हैं ताकि ‘‘हमारे देश की खराब छवि’’ पेश की जा सके।
उन्होंने भुखमरी सूचकांक पर भी निशाना साधा, जिसकी सूची में भारत की रैंकिंग खराब है। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान सरकार ने जाति और पंथ की परवाह किए बिना 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘दुष्ट ताकतें’’ एक ऐसे एजेंडे से प्रेरित हैं, जिसे वे लोग ‘‘वित्तीय रूप से बढ़ावा’’ देते हैं जो प्रसिद्धि हासिल करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘उन्हें शर्मसार करने का समय आ गया है। वे देश की आर्थिक व्यवस्था में तबाही मचाने की कोशिश करते है।‘’’
उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को रेखांकित करते हुए कहा कि खासकर अल्पसंख्यकों, समाज में हाशिए पर पड़े और कमजोर वर्गों के मानवाधिकारों के संरक्षण के मामले में भारत दूसरों से बहुत आगे हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग घरेलू मोर्चे पर अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मानवाधिकारों का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं।
धनखड़ ने कहा, ‘‘एक के बाद एक प्रकरणों में सबूत मिल रहे हैं’’ कि ‘‘डीप स्टेट’’ (सरकारी नीतियों को नियंत्रित करने वाली परोक्ष ताकतें) उभरती ताकतों के खिलाफ प्रयासों में शामिल है।
धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि मानवाधिकारों का इस्तेमाल दूसरों पर शक्ति और प्रभाव डालने के लिए विदेश नीति के उपकरण के रूप में नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘सार्वजनिक रूप से किसी का नाम लेना और उसे शर्मिंदा करना कूटनीति का एक घटिया रूप है। आपको केवल वही उपदेश देना चाहिए जिस पर आप स्वयं अमल करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी स्कूल प्रणाली को देखिए- हमारे यहां गोलीबारी की उस तरह की घटनाएं नहीं होतीं जो विकसित होने का दावा करने वाले कुछ देशों में नियमित रूप से होती हैं।’’
धनखड़ ने कहा कि ‘‘जब उच्चतम न्यायालय में मामले दर्ज किए जाते है, तो भी आर्श्यजनक रूप से, मानवाधिकारों के नाम पर’’ अन्य गैर-हिंदू शरणार्थियों के अधिकारों का बार-बार जिक्र किया जाता है।
उन्होंने कहा कि इससे देश के जनसांख्यिकीय संतुलन को बिगाड़ने के उद्देश्य से चलाए जा रहे राजनीतिक एजेंडे का खुलासा होता है और इस एजेंडे के वैश्विक परिणाम हो सकते हैं।
धनखड़ ने कहा कि इतिहास गवाह है कि इस समस्या से नहीं निपटने वाले राष्ट्रों ने अपनी पहचान पूरी तरह खो दी है। उन्होंने सचेत किया कि मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से इसके वैश्विक परिणाम होंगे।
भाषा सिम्मी