एएएसयू ने नागरिकता कानून पर अदालत के फैसले का किया स्वागत, याचिकाकर्ता ने ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया
नोमान अविनाश
- 17 Oct 2024, 05:21 PM
- Updated: 05:21 PM
नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) असम में 1979-85 तक अवैध प्रवासियों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करने वाले अखिल असम छात्र संघ (एएएसयू) ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया।
एएएसयू ने फैसले को “ऐतिहासिक” बताया, जबकि कानून के प्रावधान को चुनौती देने वाले मूल याचिकाकर्ता ने फैसले को “दुर्भाग्यपूर्ण” करार देते हुए कहा कि यह राज्य को विदेशियों के लिए “डंपिंग ग्राउंड” बना देगा।
एएएसयू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा कि नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए पर अपने आदेश के जरिए शीर्ष अदालत ने असम समझौते पर अपनी मुहर लगा दी, जिसके तहत अवैध रूप से असम में प्रवेश करने वाले सभी लोगों का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें देश से बाहर भेजा जाना चाहिए।
असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता के मामलों से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी। यह प्रावधान 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और तब प्रफुल्ल कुमार महंत की अगुवाई वाले ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शामिल किया गया था। महंत बाद में असम के दो बार मुख्यमंत्री रहे।
भट्टाचार्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का तहे दिल से स्वागत करते हैं। यह एक ऐतिहासिक फैसला है। इससे यह स्थापित हो गया है कि असम आंदोलन वास्तविक कारणों से किया गया था और असम समझौते के सभी प्रावधानों को अब उच्चतम न्यायालय ने कानूनी मान्यता दे दी है।”
उन्होंने कहा कि अब यह केंद्र और असम सरकार की जिम्मेदारी है कि वे चार दशक पुराने असम समझौते के शेष प्रावधानों को पूरी ईमानदारी से लागू करें।
वहीं, गुवाहाटी में, एएएसयू ने एक बयान में कहा, “इस फैसले ने असम आंदोलन और असम समझौते की तार्किकता को पुनः स्थापित किया है। हम इस ऐतिहासिक अवसर पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। हम पुनः मांग करते हैं कि असम समझौते के प्रत्येक प्रावधान को पूर्ण रूप से लागू किया जाए।”
इसमें कहा गया है, “उच्चतम न्यायालय का फैसला एएएसयू, अखिल असम गण संग्राम परिषद और उसके सहयोगी समूहों तथा राज्य के हित में काम करने वाले अन्य सभी संगठनों की जीत है।”
असम समझौते पर केंद्र सरकार के साथ ही एएएसयू और अखिल असम गण संग्राम परिषद ने भी हस्ताक्षर किए थे।
वहीं, नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए को शामिल किए जाने को चुनौती देने वाले एएएसयू के पूर्व नेता मती-उर-रहमान ने कहा कि उन्हें इस तरह के फैसले की उम्मीद नहीं थी।
उन्होंने असम स्थित संगठन संयुक्त महासभा की ओर से उच्चतम न्यायालय में मूल याचिका दायर की थी। वे असम में सभी अवैध प्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने के लिए ‘कट-ऑफ’ वर्ष के रूप में 1951 को निर्धारित करना चाहते थे, न कि 1971 को। दरअसल, असम समझौते में ‘कट ऑफ’ वर्ष 1971 निर्धारित किया गया है।
रहमान ने फोन पर ’पीटीआई-भाषा’ से कहा, “उच्चतम न्यायालय का फैसला असम के मूल निवासियों के अधिकारों को खतरे में डालेगा। आप असम को अवैध प्रवासियों का ‘डंपिंग ग्राउंड’ नहीं बना सकते। यह फैसला बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।”
रहमान ने कहा कि उनका संगठन फैसले का सावधानीपूर्वक अध्ययन करेगा और देखेगा कि क्या इसे बड़ी संवैधानिक पीठ में चुनौती दी जा सकती है।
असम समझौते के अनुसार, एक जनवरी 1966 से पहले असम में आए सभी व्यक्तियों को नियमित किया जाएगा। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जिनके नाम 1967 के चुनावों में प्रयुक्त मतदाता सूची में सम्मिलित थे।
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को बहुमत से फैसला सुनाते हुए नागरिकता अधिनियम की उस धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा जो एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच असम आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करती है।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है।
भाषा नोमान