नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए का फर्जी दस्तावेजों के कारण दुरुपयोग हो सकता है: न्यायमूर्ति पारदीवाला
प्रशांत मनीषा
- 17 Oct 2024, 04:50 PM
- Updated: 04:50 PM
नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला ने बृहस्पतिवार को कहा कि 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करने वाली, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए, मनमानी और संवैधानिक रूप से अवैध है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति जताते हुए कहा कि जाली दस्तावेजों के आने के कारण धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की अधिक आशंका हो गयी है।
उन्होंने अलग से 127 पन्नों के असहमति के आदेश में कहा, “समय के साथ धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की आशंका बढ़ गई है, क्योंकि इसमें अन्य बातों के अलावा, असम में प्रवेश की गलत तारीख, गलत वंशावली, भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा बनाए गए झूठे सरकारी रिकॉर्ड, अन्य रिश्तेदारों द्वारा प्रवेश की तारीख की बेईमानी से पुष्टि आदि को स्थापित करने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि उन अवैध प्रवासियों की मदद की जा सके जो 24 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने के कारण धारा 6ए के तहत पात्र नहीं हैं।”
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि धारा 6ए आवेदन की अंतिम तिथि के बिना असम में और अधिक आव्रजन को बढ़ावा देती है और आप्रवासी जाली दस्तावेजों के साथ आते हैं ताकि विदेशी के रूप में पहचाने जाने और न्यायाधिकरण के समक्ष मामला भेजे जाने पर 1966 से पहले या 1966-71 की धारा से संबंधित होने का बचाव किया जा सके।
न्यायाधीश ने कहा कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को लागू करने से जो उद्देश्य प्राप्त होना था, वह अब भी एक दूर का सपना बना हुआ है, तथा समय बीतने के साथ इसका दुरुपयोग भी बढ़ता ही जा रहा है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, “मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि समय बीतने के साथ सरकारी रिकॉर्ड क्षतिग्रस्त हो जाएंगे और नष्ट हो जाएंगे, जिससे 1971 के बाद के आप्रवासियों द्वारा किए गए झूठे दावों की जांच करना मुश्किल हो जाएगा, जो 1971 से पहले के आप्रवासियों को दिए गए लाभों का दुरुपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि धारा 6ए, इसके लागू होने की किसी अस्थायी सीमा के अभाव में, अधिनियमन के उद्देश्य के प्रतिकूल है।
उच्चतम न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बहुमत का फैसले सुनाते हुए नागरिकता अधिनियम की उस धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा जो एक जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच असम आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करती है।
पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है।
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