माइक्रोप्लास्टिक पर सीएसआईआर-एनआईओ के अध्ययन से गोवा तट पर प्रदूषण का पता चला
रविकांत दिलीप
- 29 Sep 2024, 04:24 PM
- Updated: 04:24 PM
पणजी, 29 सितंबर (भाषा) सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान द्वारा पिछले दशक में माइक्रोप्लास्टिक पर किए गए अध्ययन ने गोवा के तट पर किस हद तक प्रदूषण है, इसे उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
डोना पाउला स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआईओ) ने राज्य और केंद्र सरकारों के आंशिक सहयोग से 2013-14 में माइक्रोप्लास्टिक पर अपना शोध शुरू किया था।
सीएसआईआर की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. महुआ साहा के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम प्लास्टिक की बोतलों और अन्य कचरे से अटे पड़े समुद्र तटों से नमूने एकत्र कर रही है, ताकि माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी और प्रभाव का अध्ययन किया जा सके।
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के निदेशक डॉ. सुनील कुमार सिंह ने कहा कि समस्या यह है कि पानी (नदियों और समुद्र) में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक भोजन में और मानव शरीर में प्रवेश करने लगे हैं।
उन्होंने कहा कि प्लास्टिक कचरा माइक्रोप्लास्टिक में टूट जाता है, जल प्रणाली में प्रवेश करता है, तथा तत्पश्चात मछलियों और अन्य समुद्री जीवों के माध्यम से मनुष्यों द्वारा खाए जाने वाले खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करता है।
एनआईओ ने माइक्रोप्लास्टिक अनुसंधान के लिए समर्पित देश की पहली प्रयोगशाला स्थापित की है।
सीएसआईआर की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. महुआ साहा ने कहा कि बोतलों और थैलों जैसे फेंके गए प्लास्टिक उत्पादों के टुकड़ों से लेकर पेंट कोटिंग के कणों तक, माइक्रोप्लास्टिक का पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव का पता लगाने के लिए गहराई से अध्ययन किया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें हर कण और उसके पॉलीमर की पहचान करनी होगी। इसलिए, पॉलीमर से हम माइक्रोप्लास्टिक के स्रोत का पता लगाते हैं। अगर माइक्रोप्लास्टिक पॉलीथीन है, तो हो सकता है कि कण पैकेजिंग सामग्री से आया हो। ’’
डॉ. साहा ने कहा कि गोवा में मछली का मुख्य रूप से सेवन किया जाता है, इसलिए यहां अनुसंधान दल का कार्य समुद्री खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की पहचान करना है।
सीएसआईआर के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी निदेशक डॉ. अंकित यादव (आईएएस) ने कहा कि उनका विभाग गोवा अपशिष्ट प्रबंधन विभाग के माध्यम से समुद्री कूड़े को कम करने तथा प्रणाली और नीतियों में सुधार लाने के लिए काम कर रहा है।
भाषा रविकांत