केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ ए. राजा की याचिका पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा
सुरभि मनीषा
- 26 Sep 2024, 02:54 PM
- Updated: 02:54 PM
नयी दिल्ली, 26 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता ए. राजा की केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है जिसमें उच्च न्यायालय ने राज्य के इडुक्की जिले में देवीकुलम विधानसभा सीट से राजा के चुनाव को रद्द कर दिया था।
वर्ष 2021 में हुए केरल विधानसभा चुनाव में इस सीट से दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस नेता डी. कुमार ने याचिका में आरोप लगाया है कि राजा अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के लिए आरक्षित देवीकुलम सीट से चुनाव लड़ने के योग्य नहीं हैं।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राजा एवं कुमार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील क्रमश: वी. गिरि और नरेंद्र हुड्डा की दलीलें सुनीं।
शीर्ष अदालत केरल उच्च न्यायालय के 20 मार्च, 2023 के फैसले के खिलाफ राजा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता डी. कुमार द्वारा दायर एक चुनाव याचिका पर यह आदेश पारित किया था। याचिका में कुमार ने आरोप लगाया गया था कि राजा अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के लिए आरक्षित देवीकुलम सीट से चुनाव लड़ने के योग्य नहीं हैं।
राजा ने याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि वह केरल राज्य के संदर्भ में हिंदू परायण समुदाय से आते हैं और तहसीलदार द्वारा जारी प्रमाण पत्र के अनुसार वह देवीकुलम सीट से चुनाव लड़ने के योग्य हैं।
उन्होंने यह भी दलील दी कि निर्वाचन अधिकारी ने उनके द्वारा दायर नामांकन पत्र पर कुमार की आपत्ति को खारिज कर दिया था।
माकपा नेता ने यह भी दावा किया कि उनके माता पिता ने कभी धर्मपरिवर्तन कर ईसाई धर्म को नहीं अपनाया। उनकी पत्नी एक हिंदू हैं और उनका विवाह हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार हुआ।
अपनी याचिका में कुमार ने यह भी आरोप लगाया कि राजा एक ईसाई हैं और उन्होंने इडुक्की जिले में सीएसआई गिरजाघर में ईसाई धर्म को स्वीकार किया है। कुमार ने आरोप लगाया कि राजा ने यह साबित करने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र जमा किए थे कि वह अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं।
वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में कुमार 7,848 मतों के अंतर से राजा से हार गए थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि यहां तक कि माकपा नेता की पत्नी भी ईसाई समुदाय से हैं और उनका विवाह ईसाई धर्म के रीति रिवाजों के अनुसार हुआ है।
कांग्रेस नेता की दलीलों से सहमति जताते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि राजा का अपनी शादी और समारोह के बारे में गोलमोल जवाब देने से यह स्पष्ट है कि उन्होंने ‘‘जानबूझकर’’ सच्चाई छिपाने का प्रयास किया।
अदालत ने कहा था कि विवाह के दौरान राजा और उनकी पत्नी के कपड़ों से ईसाई विवाह के संकेत मिलते हैं।
अदालत ने यह भी कहा था कि उसके समक्ष प्रस्तुत सभी दस्तावेज ‘‘पर्याप्त रूप से दर्शाते हैं कि प्रतिवादी (राजा) वास्तव में उस समय ईसाई धर्म को मानते थे जब उन्होंने अपना नामांकन प्रस्तुत किया था और नामांकन प्रस्तुत करने से बहुत पहले ही उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था।’’
अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए धर्मपरिवर्तन के बाद वह हिंदू समुदाय के सदस्य होने का दावा नहीं कर सकते हैं। इस आधार पर भी निर्वाचन अधिकारी को उनका नामांकन खारिज करना चाहिए था।’’
अदालत ने कहा, ‘‘...इसलिए वर्ष 2021 में उक्त निर्वाचन क्षेत्र के लिए निर्वाचित उम्मीदवार के रूप में प्रतिवादी (राजा) का निर्वाचन जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 98 के अंतर्गत अमान्य घोषित किया जाता है।’’
भाषा सुरभि