वैवाहिक बलात्कार: पति को छूट देने वाले कानूनों के खिलाफ याचिकाओं पर न्यायालय करेगा सुनवाई
सिम्मी नरेश
- 23 Sep 2024, 01:08 PM
- Updated: 01:08 PM
नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय इस जटिल कानूनी प्रश्न संबंधी याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करेगा कि क्या अपनी बालिग पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने वाले पति को बलात्कार के अपराध वाले मुकदमे से छूट मिलनी चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने सोमवार को कहा कि ये याचिकाएं पहले ही ‘‘कल के लिए सूचीबद्ध’’ हैं।
मामले में एक वादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने मामले को शीघ्र सूचीबद्ध करने संबंधी अपील का उल्लेख किया।
इससे पहले, 18 सितंबर को एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है।
न्यायालय इस विवादास्पद कानूनी प्रश्न से संबंधित याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर 16 जुलाई को सहमत हो गया था। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने संकेत दिया था कि इन याचिकाओं पर 18 जुलाई को सुनवाई हो सकती है।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी बालिग पत्नी के साथ यौन संसर्ग या यौन कृत्य बलात्कार नहीं है।
भारतीय दंड संहिता को निरस्त कर दिया गया है और अब उसकी जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) ने ले ली है।
बीएनएस की धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद-दो में कहा गया है कि ‘‘किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौनाचार बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है, यदि पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम नहीं है।’’
शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी, 2023 को भारतीय दंड संहिता के संबंधित प्रावधान पर आपत्ति जताने वाली कई याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था, जिसके तहत बालिग पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाने के मामले में पति को अभियोजन से छूट प्राप्त है।
शीर्ष अदालत ने 17 मई को इस मुद्दे पर बीएनएस के प्रावधान को चुनौती देने वाली एक समान याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था।
नये आपराधिक कानून, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, एक जुलाई से प्रभावी हुए हैं, जिन्होंने पुराने आपराधिक कानूनों का स्थान लिया है।
पीठ ने कहा था, ‘‘हमें वैवाहिक बलात्कार से संबंधित मामलों को सुलझाना है।’’
इससे पहले, केंद्र ने कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं और सरकार इन याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करना चाहेगी।
इनमें से एक याचिका इस मुद्दे पर 11 मई, 2022 को दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले से संबंधित है। यह अपील एक महिला द्वारा दायर की गई है जो दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक थी।
भाषा
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