एक 'चिरस्थायी भाषा' - 'ते विकी ओ ते रिओ माओरी' ने 52 साल में असाधारण प्रगति की
शुभम पारुल
- 16 Sep 2024, 07:05 PM
- Updated: 07:05 PM
(जेनेट किंग, कैंटरबरी विश्वविद्यालय)
क्राइस्टचर्च (न्यूजीलैंड), 16 सितंबर (द कन्वरसेशन) को तेनेई ते विकी ओ ते रिओ माओरी -यह माओरी भाषा सप्ताह है।
चौदह सितंबर 1972 के उस ऐतिहासिक क्षण को 52 वर्ष बीत चुके हैं, जब हाना ते हेमारा और नगा तामातोआ, ते रिओ माओरी सोसाइटी तथा ते हुइंगा ताउइरा के उनके साथी कार्यकर्ताओं ने संसद तक मार्च किया था और सावधानीपूर्वक इसकी सीढ़ियों पर एक सूटकेस रखा था।
सूटकेस के अंदर एक याचिका थी, जिस पर 30,000 लोगों के हस्ताक्षर थे। इस याचिका को ते पेटिहाना रिओ माओरी (माओरी भाषा याचिका) के नाम से जाना गया।
हालांकि, न्यूजीलैंड नेशनल पार्टी अभी भी सत्ता में थी, लेकिन आम चुनाव होने वाले थे और याचिका सांसद मातिउ राता को सौंपी गई, जिन्हें आगे चलकर नॉर्मन किर्क के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी की सरकार में माओरी मामलों का मंत्री बनाया गया।
यह माओरी भाषा पुनरोद्धार आंदोलन को गति देने वाले सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में से एक था और इसके फलस्वरूप स्कूलों में वैकल्पिक ते रिओ कक्षाएं और शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए।
बाद के वर्षों में कई और ऐतिहासिक क्षण आए, क्योंकि ते रिओ माओरी ने लोगों के जीवन और संस्कृति में अपना स्थान पुनः प्राप्त कर लिया, जिसमें 1987 में इसका आधिकारिक भाषा बनना भी शामिल है, जो डब्ल्यूएआई11 वेटांगी ट्रिब्यूनल के दावे का प्रत्यक्ष परिणाम था।
वर्ष 1982 में कोहांगा रिओ (प्रीस्कूल भाषा) प्रणाली शुरू की गई थी, जब एक शोध से सामने आया कि माओरी समुदाय में जन्मे बहुत कम बच्चों को यह भाषा सिखाई जा रही है।
कुरा कौपापा माओरी (द्विभाषी माध्यम के स्कूल) और वानंगा (उच्च माध्यमिक संस्थान) की स्थापना के साथ इस भाषा को नया जीवन मिला और राष्ट्रीय स्तर पर एक नये वाक्यांश ‘कोहांगा रिओ पीढ़ी’ के इस्तेमाल का चलन बढ़ गया।
बेहतर भविष्य की आस
हालांकि, कोहांगा रिओ स्नातकों की कई पीढ़ियां रही हैं, लेकिन 35 साल से कम उम्र के बुद्धिमान और मुखर रिओ वक्ताओं का मौजूदा समूह ज्यादा हलचल मचा रहा है। इनमें हाना-राव्हिटी मैपी-क्लार्क जैसे नेता और कुइनी माओरी नगा वाई होनो आई ते पो जैसे शाही वंशज शामिल हैं। ये लोग कोहांगा रिओ पीढ़ी की ऊर्जा, दृष्टिकोण और जुनून को प्रतिबिंबित करते हैं, जो रिओ माओरी वक्ता के रूप में उनकी पहचान पर आधारित है।
वर्ष 1972 के इस पड़ाव की तरफ मुड़कर देखने से यह स्पष्ट होता है कि एओटेरोआ न्यूजीलैंड ने बहुत लंबा सफर तय किया है। उस ऐतिहासिक याचिका के पीछे के लोग मुख्य रूप से शहरी इलाकों में पले-बढ़े थे और अपनी माओरी जड़ों से कटे हुए थे। लेकिन वे माओरी बच्चों के लिए बेहतर भविष्य चाहते थे और ते रिओ माओरी तक पहुंच सुनिश्चित करना उनकी प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक था।
याचिका के केंद्र में एक मामूली अनुरोध
हम हस्ताक्षरकर्ता विनम्रतापूर्वक आग्रह करते हैं कि माओरी भाषा और माओरी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर आधारित पाठ्यक्रम उन सभी स्कूल में उपलब्ध कराए जाएं, जहां बड़ी संख्या में माओरी समुदाय के छात्र पढ़ते हैं। हमारा यह भी आग्रह है कि उक्त पाठ्यक्रम को न्यूजीलैंड के अन्य सभी स्कूल में माओरी समुदाय की तरफ से पाकेहा लोगों (न्यूजीलैंड के श्वेत निवासी) को उपहार के रूप में उपलब्ध कराए जाएं, ताकि समावेशिता की अधिक सार्थक अवधारणा को बढ़ावा मिले।
हस्ताक्षरकर्ताओं की मुख्यत: यह मांग थी कि ते रिओ माओरी भाषा कुछ स्कूलों में तो पढ़ाई जाए। देखने में यह कोई बहुत बड़ा अनुरोध नहीं लगता, लेकिन इसके उल्लेखनीय परिणाम सामने आए।
और याचिका की प्रासंगिकता और प्रभाव यहीं नहीं खत्म हुआ। 14 सितंबर को जल्द माओरी भाषा दिवस के रूप में घोषित किया गया, जिसने बाद में माओरी भाषा सप्ताह की शुरुआत की, जिसे हम तब से मनाते आ रहे हैं।
अके, अके, अके
हाना ते हेमारा तब सिर्फ 22 साल की थीं, जब उन्होंने संसद की सीढ़ियों पर यह याचिका रखी थी। लेकिन उन्हें पता था कि यह एक ऐतिहासिक पल था, जो एक ऐसे भविष्य की ओर ले जाएगा, जिसकी उस समय कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक ऐसा भविष्य, जहां धाराप्रवाह ते रिओ भाषा बोलने वाले माओरी युवाओं की एक मजबूत पीढ़ी होगी, जो देश का नेतृत्व करेगी।
बेशक यह यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। 2018 में तत्कालीन लेबर सरकार ने 2040 तक दस लाख ऐसे लोग तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया था, जो ते रिओ माओरी बोलने में सक्षम हों।
कल शोधकर्ता 2018 की जनगणना पर आधारित डेटा विश्लेषण जारी करेंगे, जिससे पता चलेगा कि भाषा किस प्रकार आगे बढ़ रही है, और इसका दीर्घकालिक पुनरोद्धार एवं अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए अब किन संसाधनों तथा रणनीतियों की जरूरत हो सकती है।
इसलिए यह विशेष रूप से उचित है कि इस वर्ष के माओरी भाषा सप्ताह का विषय “अके अके अके : एक चिरस्थायी भाषा” है। इस वाक्यांश का एक राजनीतिक संदर्भ भी है। बताया जाता है कि 1864 में ओराकाऊ की घेराबंदी के दौरान रेवी मानियापोटो ने कहा था : का व्हाव्हाई टोनु मातौ, अके, अके, अके (हम लड़ते रहेंगे, लड़ाई चाहे जितनी लंबी हो)।
एक चिरस्थायी भाषा के लिए अभी भी संघर्ष करने की आवश्यकता है, विशेषकर वर्तमान परिदृश्य में जहां सरकार ने ते रिओ के आधिकारिक इस्तेमाल में कमी लाने का प्रयास किया है।
आइए हम हाना ते हेमारा सहित अन्य लोगों के उस दृष्टिकोण और कार्यों को याद करें तथा उनका जश्न मनाएं, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि ते रिओ माओरी ‘आओटेरोआ की चिरस्थायी भाषा’ बने।
(द कन्वरसेशन)
शुभम