सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोते’ की धारणा से बाहर निकलना चाहिए : न्यायमूर्ति भुइयां
सुरभि सुरेश
- 13 Sep 2024, 04:15 PM
- Updated: 04:15 PM
नयी दिल्ली, 13 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां ने आबकारी नीति ‘घोटाले’ से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को शुक्रवार को अनुचित करार दिया तथा जांच एजेंसी से कहा कि उसे ‘‘पिंजरे में बंद तोता’’ की धारणा से निश्चित रूप से बाहर निकलना चाहिए।
आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक केजरीवाल को जमानत देने को लेकर न्यायमूर्ति सूयकांत के निर्णय से सहमति जताने वाले, परंतु अलग से लिखे अपने फैसले में न्यायमूर्ति भुइयां ने सीबीआई द्वारा मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी के समय को लेकर सवाल किया। न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा कि एजेंसी का उद्देश्य प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मामले में केजरीवाल को मिली जमानत में बाधा डालना था।
हालांकि न्यायमूर्ति सूर्यकांत को सीबीआई की गिरफ्तारी में कुछ अनुचित नहीं लगा।
न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, ‘‘सीबीआई देश की एक प्रमुख जांच एजेंसी है। यह जनहित में है कि सीबीआई को निश्चित रूप से न सिर्फ निष्पक्ष होना होगा, बल्कि उसे ऐसा करके दिखाना भी होगा। ऐसी धारणा को दूर करने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए कि जांच निष्पक्ष रूप से नहीं की गई थी और गिरफ्तारी दमनात्मक एवं पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कानून के शासन द्वारा संचालित एक क्रियाशील लोकतंत्र में धारणा मायने रखती है। एक जांच एजेंसी को ईमानदार होना चाहिए। कुछ समय पहले, इस अदालत ने सीबीआई की आलोचना करते हुए इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी। यह जरूरी है कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोते की धारणा को दूर करे। धारणा यह होनी चाहिए कि वह पिंजरे में बंद तोता नहीं बल्कि स्वतंत्र है।’’
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश ने कहा कि जब केजरीवाल को धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के बेहद सख्त प्रावधानों के तहत जमानत मिल जाती है तो उसी अपराध के संदर्भ में सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी समझ के परे है।
न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, ‘‘जब सीबीआई को पिछले 22 महीने से याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई तो मुझे याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने की सीबीआई की जल्दबाजी समझ नहीं आती, जबकि वह ईडी मामले में रिहाई के कगार पर थे।’’
उन्होंने कहा कि सीबीआई केजरीवाल के गोलमोल जवाबों का हवाला देकर उनकी गिरफ्तारी और लगातार हिरासत में रखे जाने को उचित नहीं ठहरा सकती। उन्होंने कहा कि सहयोग नहीं करने का मतलब स्व-दोषारोपण नहीं हो सकता।
न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, ‘‘सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता होने की धारणा को दूर करना चाहिए, यह दिखाना चाहिए कि वह पिंजरे में बंद तोता नहीं है।’’
न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा कि जब केजरीवाल को ईडी मामले में इसी आधार पर जमानत मिल गई है तो उन्हें हिरासत में रखना न्याय की दृष्टि से ठीक नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि उन्हें ईडी मामले में केजरीवाल पर लगाई गई शर्तों पर गंभीर आपत्ति है, जिनके तहत उनके मुख्यमंत्री कार्यालय में प्रवेश करने और फाइलों पर हस्ताक्षर करने पर रोक है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं न्यायिक अनुशासन के कारण, केजरीवाल पर लगाई गई शर्तों पर टिप्पणी नहीं कर रहा हूं।’’
यह मामला दिल्ली सरकार की आबकारी नीति 2021-22 के निर्माण और क्रियान्वयन में कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा है। दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा इन कथित अनियमितताओं के संबंध में सीबीआई जांच का आदेश दिए जाने के बाद इस नीति को बाद में निरस्त कर दिया गया था।
सीबीआई और ईडी के अनुसार, आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गईं और लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
भाषा सुरभि