शोमी दास : शिक्षक और मार्गदर्शक जिन्होंने छात्रों को कक्षाओं से बाहर की दुनिया दिखाई
आशीष अविनाश
- 11 Sep 2024, 10:26 PM
- Updated: 10:26 PM
नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) यह 1986 की बात है, जब रात के दो बजे हैली धूमकेतु अंधेरे आसमान में चमक रहा था, हिमाचल प्रदेश के सनावर में लॉरेंस स्कूल के तत्कालीन प्रधानाध्यापक शोमी रंजन दास ने अपने छात्रों को एक दूरबीन के चारों ओर इकट्ठा किया और उनमें वैज्ञानिक जिज्ञासा की ऐसी भावना पैदा की जो जीवन भर बनी रहेगी।
भारत के तीन सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों मेयो कॉलेज, दून स्कूल और लॉरेंस स्कूल के पूर्व प्रमुख और देश के अग्रणी शिक्षाविदों में से एक शोमी रंजन दास का सोमवार को हैदराबाद में निधन हो गया। पिछले कुछ समय से वह बीमार थे। दास 89 वर्ष के थे।
उन्होंने एक समय ब्रिटेन के महाराजा चार्ल्स तृतीय को भी पढ़ाया था।
पाथवेज स्कूल गुरुग्राम के निदेशक रोहित एस बजाज ने कहा कि 38 साल पहले की वह रात अविस्मरणीय थी। बजाज ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘उन्होंने हमें कॉफी पिलाई और हमें अपनी दूरबीन से रात दो बजे हैली धूमकेतु देखने को कहा। उसके बाद, मेरे जैसा व्यक्ति, मैं सिर्फ वैज्ञानिक बनना चाहता था और मैं सिर्फ खगोल विज्ञान का अध्ययन करना चाहता था। शिक्षक के रूप में उन्होंने हमें सीखने, सवाल पूछने और जानने का जुनून सिखाया।’’
दास के परिवार में दो बेटे, एक बेटी और सैकड़ों छात्र हैं जो आज भी उनकी शिक्षाओं का अनुसरण कर रहे हैं।
दास का जन्म 28 अगस्त, 1935 को हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दून स्कूल में प्राप्त की, जिसकी स्थापना उनके दादा सतीश रंजन दास ने की थी। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के सेंट जेवियर्स कॉलेज और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
दास ने 1960 के दशक में स्कॉटलैंड के गॉर्डनस्टोन स्कूल में भी पढ़ाया, जहां उन्होंने, तत्कालीन ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ चार्ल्स को भौतिकी पढ़ाया। क्रांतिकारी शिक्षाविद् 1969 से 1974 तक मेयो कॉलेज, अजमेर के प्रमुख रहे, उसके बाद 1974 से 1988 तक लॉरेंस स्कूल, सनावर में प्रधानाध्यापक के पद पर रहे।
दास 1988 से 1995 तक प्रधानाध्यापक के रूप में अपने विद्यालय, दून स्कूल में वापस लौटे।
दास की हालिया जीवनी ‘‘द मैन हू सॉ टुमॉरो’’ में शिक्षा उद्यमी और लेखक नागा तुम्माला ने शिक्षाविद की जीवन यात्रा और भारत में शिक्षा प्रणाली के बारे में उनके विचारों पर करीबी नजर डाली है। लंबे समय तक सहयोगी रहे और शिष्य, तुम्माला ने बयां किया है कि दास किस प्रकार बच्चों को यथासंभव कक्षा से बाहर ले जाकर उनके समग्र विकास को प्रोत्साहित करते थे।
भाषा आशीष