बागेश्वर के गांवों में भी भूधंसाव की समस्या
सं दीप्ति रंजन
- 06 Sep 2024, 04:18 PM
- Updated: 04:18 PM
पिथौरागढ़, छह सितंबर (भाषा) उत्तराखंड के कुमांउ क्षेत्र के बागेश्वर जिले में दो दर्जन से अधिक मकानों की छतों और दीवारों में आई दरारों से वहां के निवासी चिंता में हैं। इस घटना ने लगभग डेढ़ साल पहले जोशीमठ में हुए भूधंसाव की याद ताजा कर दी है ।
स्थानीय लोग समय के साथ बढ़ते जा रहे भूधंसाव का कारण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सोपस्टोन खनन और ठेकेदारों द्वारा खनन के लिए खोदे गए गड्ढों को ऐसे ही छोड़ दिए जाने को मानते हैं। ये ठेकेदार भी अक्सर ब्लास्टिंग और जेसीबी जैसी भारी खुदाई मशीनों का उपयोग करके खनन नियमों का उल्लंघन करते हैं।
बागेश्वर की जिला खनन अधिकारी जिज्ञासा बिष्ट ने कुछ मकानें में दरारें आने की शिकायत मिलने के बाद तीन सितंबर को एक भूगर्भ विज्ञानी और कुछ राजस्व अधिकारियों ने गांव का दौरा किया था।
बिष्ट ने कहा, ‘‘क्षेत्र में दो साल पहले खनन रोक दिया गया था, लेकिन कांडा गांव में हमें कम से कम सात—आठ मकान मिले जिनकी दीवारों और छतों पर अब भी दरारें आ रही हैं ।'
इस खतरे की तरफ प्रशासन का ध्यान तब गया जब स्थानीय लोगों ने बागेश्वर कलेक्ट्रेट में आयोजित जनता दरबार में यह मामला उठाया ।
हांलांकि, उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अभी तक जिले में ऐसी किसी घटना का संज्ञान नहीं लिया है ।
खनन अधिकारी ने बताया कि जिले में अभी जिस क्षेत्र में खनन चल रहा है, उससे सटे हुए 25 से अधिक गांवों के मकानों में भी दरारें दिखाई दे रही हैं।
यहां ज्यादातर गांव ऐसे हैं, जिनके निवासियों ने खनन किए जाने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र दिया था।
एक स्थानीय व्यक्ति घनश्याम जोशी ने बताया कि जिले के कुल 402 गांवों में से 100 से अधिक धीरे—धीरे हो रहे भूधंसाव का खतरा झेल रहे हैं ।
बागेश्वर की जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी शिखा सुयाल के मुताबिक, बागेश्वर के 11 गाांवों के 131 से ज्यादा परिवारों को चिन्हित किया गया है, जिन्हें पुनर्वास की जरूरत है क्योंकि उनकी बसावट पर खतरा बना हुआ है। उनहोंने कहा, 'ऐसे गांवों के और सर्वेंक्षण भी किए जा रहे हैं।'
संबंधित विभागों के अधिकारियों ने स्थानीय लोगों से मिली शिकायतों के बाद कपकोट प्रखंड के कालिका मंदिर का भी दौरा किया। हांलांकि, उन्हें वहां खनन नियमों के उल्लंघन का कोई मामला नहीं मिला।
जिज्ञासा ने बताया, ‘‘कपकोट के कालिका मंदिर क्षेत्र की खानों को दो साल पहले बंद कर दिया गया था लेकिन वहां मकानों में अभी भी दरारें आ रही हैं ।'
कपकोट के विधायक और वरिष्ठ भाजपा नेता बलवंत भौर्याल ने कहा कि क्षेत्र में सोपस्टोन खनन ग्रामीणों द्वारा खनन के उद्देश्य से दिए गए खेतों में ही की जाती हैं।
बागेश्वर के सनेती क्षेत्र में स्थित एक खान के मालिक भौर्याल ने कहा, 'ग्रामीणों की इच्छा के खिलाफ खनन करने का सवाल ही नहीं पैदा होता। एक समय जिले में सोपस्टोन की 121 खानें थीं जबकि वर्तमान में उनमें से केवल 50 खानें अस्तित्व में हैं।'
बागेश्वर के गांवों में सोपस्टोन खनन के प्रभाव पर अध्ययन कर रहे चंद्रशेखर द्विवेदी ने कहा, 'जिले के कपकोट और कांडा ब्लॉक में सबसे ज्यादा खाने हैं और अपने निकटवर्ती क्षेत्रों में खनन होने से हर साल मानसून के महीनों में गांवों में भूधंसाव होता है और मकानों में दरारे आती हैं।'
उन्होंने कहा, ‘‘जब ठेकेदारों द्वारा विस्फोट और जेसीबी मशीनों का उपयोग करके खनन के नियमों का उल्लंघन किया जाता है तो उस समय विरोध को शांत करने के लिए गांव वालों को नौकरी या कई अन्य तरीकों से मुआवजा दे दिया जाता है। यह भी भूधंसाव की समस्या को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।'
बिष्ट ने कहा कि कांडेकन्याल गांव में ज्यादातर मकान खाली हैं और अब केवल पांच परिवार वहां रह रहे हैं ।
उन्होंने बताया कि एनजीटी ने अभी तक मुददे का संज्ञान नहीं लिया है और न ही हमें निर्देश जारी किए हैं।
भाषा सं दीप्ति