अस्पतालों को सुरक्षित और सुलभ बनाने के बीच संतुलन कायम करने की जरूरत : श्रीनिवास
देवेंद्र नरेश
- 05 Sep 2024, 04:16 PM
- Updated: 04:16 PM
(पायल बनर्जी)
नयी दिल्ली, पांच सितंबर (भाषा) कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक चिकित्सक के साथ कथित बलात्कार और हत्या की घटना के बाद चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों के वास्ते कामकाज का सुरक्षित माहौल बनाये जाने की मांग के बीच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)-दिल्ली के निदेशक डॉ. एम. श्रीनिवास ने कहा कि अस्पतालों को सुरक्षित तथा सुलभ बनाने के लिए बेहतर संतुलन बनाने की आवश्यकता है।
डॉ. श्रीनिवास ने कहा कि अस्पतालों को ‘‘हवाई अड्डे या किले’’ की तरह सुरक्षित बनाने तथा साथ ही मरीजों को चिकित्सकों से निर्बाध ढंग से परामर्श करने की सुविधा प्रदान करने की मांगों के बीच एक बेहतर संतुलन बनाया जाना चाहिए।
उन्होंने ‘पीटीआई’ संपादकों के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा और सुविधा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है और सारा ध्यान मरीजों की देखभाल और ‘‘उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहने’’ पर रहा है।
कोलकाता स्थित सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद अस्पताल के बुनियादी ढांचे में खामियों के साथ-साथ चिकित्सा पेशेवरों की कार्य स्थितियों और सुरक्षा पर तीखी बहस छिड़ी हुई है।
डॉ. श्रीनिवास कोलकाता की घटना के बाद चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक प्रोटोकॉल तैयार करने के वास्ते गठित राष्ट्रीय कार्यबल के सदस्य हैं।
उन्होंने कहा कि रेजिडेंट डॉक्टरों की मांगों ने सभी की आंखें खोल दी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप एम्स और पीजीआई चंडीगढ़ जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को देखें तो वे ड्यूटी रूम, बुनियादी सुविधाओं, छात्रावासों और निर्धारित कार्य घंटों के मामले में अभी भी बेहतर स्थिति में हैं।’’
उन्होंने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को सुविधा प्रदान करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को उन्नत करना होगा।
दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक ने कहा, ‘‘समय के साथ ऐसा हुआ है कि ज्यादातर चिकित्सा प्रतिष्ठानों का ध्यान अस्पताल की तरफ तो हुआ है, लेकिन छात्रावास की तरफ नहीं। इसलिए पिछले पांच से दस वर्ष में कुछ संस्थानों में असंतुलन की स्थिति बनी है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है।’’
चिकित्सकों के लिए कामकाज का सुरक्षित वातावरण बनाने की मांग पर उन्होंने कहा, ‘‘हमें एक बेहतर संतुलन बनाने की जरूरत है... आप इसे एक हवाई अड्डे या किले की तरह बनाना चाहते हैं या आप चाहते हैं कि मरीज बिना किसी रोक-टोक के आपसे खुलकर बात करे।’’
चिकित्सकों की लंबी ड्यूटी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने चिकित्सकों के काम के घंटों के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैं। उन्होंने कहा कि एम्स-दिल्ली समेत कई संस्थानों ने इसे लगभग लागू कर दिया है और वे एनएमसी की सिफारिशों से सहमत हैं।
चिकित्सकों की ड्यूटी 24 घंटे और कभी-कभी 36 घंटे तक भी हो जाती है।
डॉ. श्रीनिवास ने कहा, ‘‘दुनिया के कुछ हिस्सों में ऐसे नियम हैं जिनके तहत चिकित्सकों को एक बार में या एक सप्ताह में एक निश्चित संख्या से अधिक घंटे काम नहीं करना होता है। यदि आप मुझसे पूछें तो काम के घंटों की संख्या सीमित होनी चाहिए, चाहे वह लगातार हो या प्रति सप्ताह और ड्यूटी के बाद की छुट्टियां। हम इसके बारे में सचेत हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक गुणवत्ता (चिकित्सा सेवाओं की) का सवाल है, यदि कार्य घंटों की संख्या एक सीमा से अधिक बढ़ा दी जाती है, तो निश्चित रूप से इसका गुणवत्ता परिणामों पर भी कुछ प्रभाव पड़ेगा।’’
उन्होंने कहा कि कल्याणकारी उपायों और कार्यस्थल पर स्वास्थ्य पेशेवरों को उचित माहौल प्रदान करने के लिए बहुत प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
डॉ. श्रीनिवास ने इस बात पर जोर दिया कि संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जिससे वे सहज महसूस करें। हमने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। मुझे लगता है कि हम रोगी देखभाल सेवाओं में ही उलझे रहे और चिकित्सकों, नर्स और अस्पताल के कर्मचारियों की आवश्यकताओं पर कभी ध्यान नहीं दिया और हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा कि एम्स या बड़े संस्थानों में कल्याण और सुरक्षा उपायों से संबंधित ज्यादातर प्रणालियां मौजूद हैं।
रेजिडेंट डॉक्टरों के हाल के विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सभी मांगें ‘‘जायज’’ हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कोई व्यक्ति ड्यूटी रूम, सुरक्षित कार्यस्थल क्षेत्र, कार्य के सीमित घंटे, ड्यूटी के बाद छुट्टी, मेस सुविधा और यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मरीजों के तीमारदार आपातकालीन क्षेत्रों में उन (डॉक्टरों) पर हमला न करें।’’
उन्होंने कहा कि जब चीजें गलत हो जाती हैं, किसी मरीज की हालत खराब हो जाती है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो न केवल उस मरीज के तीमारदार, बल्कि अन्य लोग भी चिकित्सकों पर अचानक हमला कर देते हैं।
डॉ. श्रीनिवास ने कहा, ‘‘चिकित्सक भगवान नहीं हैं। जटिलताएं होंगी, मौतें होंगी लेकिन लापरवाही नहीं होनी चाहिए। जब समस्याएं आती हैं, तो मरीज और उसके तीमारदारों को यह भी समझना चाहिए कि उस विशेष बीमारी के इलाज की सामान्य प्रक्रिया और निदान क्या है।’’
भाषा
देवेंद्र