सक्सेना ने मेधा पाटकर की अपील पर जवाब दाखिल किया, कहा- फर्जी हलफनामा दाखिल किया गया
सुरेश माधव
- 04 Sep 2024, 09:08 PM
- Updated: 09:08 PM
नयी दिल्ली, चार सितंबर (भाषा) दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने बुधवार को दिल्ली की एक अदालत के समक्ष दावा किया कि ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ (एनबीए) की नेता मेधा पाटकर ने एक ‘फर्जी’ और ‘पहले की तारीख’ में तैयार हलफनामा दाखिल किया है। इसके साथ ही उन्होंने मानहानि के एक मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ पाटकर की अपील खारिज करने का भी अनुरोध किया।
पाटकर की अपील के जवाब में सक्सेना ने कहा है, ‘‘अभियुक्त या अपीलकर्ता (पाटकर) के हस्ताक्षर के बिना और पहले की तारीख में झूठे हलफनामे के साथ अपील दायर करने का यह तरीका न केवल इस अदालत की अवमानना और मिथ्या शपथ का कृत्य है, बल्कि यह अपीलकर्ता की ओर से अपनी सुविधा के अनुसार किसी एक या पूरे तथ्य एवं रिकॉर्ड को नकारने की एक चतुर रणनीति है।’’
उन्होंने अपने जवाब में आरोप लगाया गया है कि अदालतों को गुमराह करने की पाटकर की आदत रही है। इसमें कहा गया है कि पकड़े जाने के बाद अज्ञानता एवं अनजाने में हुई गलतियों का हवाला देकर उन्होंने अपने वकीलों पर इसकी जिम्मेदारी थोपने की कोशिश की थी।
साकेत अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने 29 जुलाई को मानहानि के मामले में पाटकर की सजा निलंबित कर दी थी और सक्सेना से जवाब दाखिल करने को कहा था।
सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ 23 साल पहले आपराधिक मानहानि का मामला दायर कराया था। उस वक्त सक्सेना गुजरात में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) का नेतृत्व कर रहे थे।
मजिस्ट्रेट अदालत ने 24 मई को पाटकर को दोषी ठहराया था और एक जुलाई को पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी तथा 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। पाटकर ने इस फैसले को सत्र अदालत में चुनौती दी थी।
सक्सेना के वकील गजिंदर कुमार और किरण जय ने बुधवार को सुनवाई के दौरान पाटकर की अपील पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह विचार करने योग्य नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि पाटकर ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
उन्होंने कहा कि 24 जुलाई की तारीख वाली अपील पर केवल पाटकर के वकील के हस्ताक्षर हैं।
सक्सेना के वकीलों ने दलील दी कि इसके अलावा, पाटकर ने एक ‘फर्जी हलफनामा’ दायर किया था, जो 17 जुलाई की तारीख का बना था एवं यह हस्ताक्षरित और सत्यापित था, जबकि उस तारीख को अपील का वजूद ही नहीं था।
उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान अपील को 27 जुलाई को दायर नहीं माना जा सकता है और इसे लंबित अपील नहीं माना जा सकता है, इसलिए अपीलकर्ता (पाटकर) इस अदालत के 29 जुलाई के उस आदेश का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं है, जिसके तहत इस अदालत ने सजा के विवादित आदेश के संचालन को निलंबित कर दिया था।’’
वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश हुईं पाटकर ने कहा कि अपील उनके वकीलों द्वारा उनके निर्देश पर तैयार की गई थी और 17 जुलाई को हलफनामा देने के समय उनके पास अपील का अंतिम मसौदा उपलब्ध था।
पाटकर ने कहा कि उन्होंने ई-फाइलिंग के जरिये 24 जुलाई को अपील दायर की थी और फिर तीन दिन बाद अदालत के समक्ष इसे भौतिक रूप से उपस्थित होकर दायर किया था।
अदालत ने एक संक्षिप्त आदेश पारित करते हुए कहा, ‘‘वास्तव में अदालत में दायर अपील की विषय-वस्तु तथा 17 जुलाई के शपथ-पत्र के बारे में अपीलकर्ता की जानकारी के बारे में किसी भी भ्रम की स्थिति से बचने के लिए वह (अदालत) इस स्तर पर यह उचित समझती है कि अपीलकर्ता को अपील की ई-प्रति अपने व्यक्तिगत ई-मेल खाते से ई-मेल के माध्यम से इस अदालत के आधिकारिक ई-मेल खाते पर सात दिनों के भीतर भेजने के लिए कहा जाए।’’
अदालत ने कहा, ‘‘वर्तमान अपील की वैधता/वास्तविकता का मुद्दा कानूनी दलीलों के अधीन लंबित रखा जाता है।’’
मामले की आगे की कार्यवाही के लिए 18 अक्टूबर की तारीख तय की गयी है।
मजिस्ट्रेट अदालत ने पाटकर को यह कहते हुए दोषी ठहराया था कि सक्सेना को ‘कायर’ कहना तथा हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाना न केवल अपने आप में मानहानिकारक था, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा को भड़काने के लिए भी गढ़ा गया था।
भाषा सुरेश