बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के दोनों ओर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की परियोजना पूरे देश के लिए मॉडल बनेगी
सलीम पारुल
- 18 Aug 2024, 02:40 PM
- Updated: 02:40 PM
लखनऊ, 18 अगस्त (भाषा) उत्तर प्रदेश में 296 किलोमीटर लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के दोनों तरफ सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की परियोजना पूरे देश के लिए एक मॉडल साबित हो सकती है और यह न सिर्फ रोजगार, बल्कि इलेक्ट्रिक परिवहन को और सुदृढ़ करने में भी अहम भूमिका निभाएगी।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, यह भारत में इस स्तर की अपनी तरह की पहली परियोजना होगी। 'द ग्लोबल एनर्जी अलाइंस फॉर पीपुल एंड प्लैनेट (जीईएपीपी)' ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना का अध्ययन कर इसकी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) भी तैयार की है।
सूत्रों के अनुसार, इस परियोजना से 450 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। इस सिलसिले में पिछली नौ अगस्त को लखनऊ में औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी और मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने विभिन्न हितधारकों एवं सौर ऊर्जा विशेषज्ञों के साथ बात की तथा उन्हें इस परियोजना के हर पहलू से रूबरू कराया।
इस परियोजना का अध्ययन और डीपीआर तैयार करने वाले संगठन जीईएपीपी के उपाध्यक्ष एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी सौरभ कुमार ने रविवार को 'पीटीआई-भाषा' को बताया, "अध्ययन में हमने पाया कि दोनों तरफ 450 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र लगाए जा सकते हैं। हमने प्रदेश सरकार के सामने अध्ययन पेश किया और उसने इसे मंजूरी दे दी है।"
कुमार ने कहा, "हम अब परियोजना के लिए बोली लगाने में यूपीडा (उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण) की सहायता कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हम अगले 15 महीने में परियोजना शुरू करने की स्थिति में होंगे।"
उन्होंने कहा, “यूपीडा ने जीईएपीपी से राज्य के चार अन्य एक्सप्रेसवे हाईवे पर भी इसी तरह का अध्ययन करने को कहा है। एक तरह से यह भविष्य के एक्सप्रेसवे हाईवे के लिए एक मॉडल बन जाएगा।”
कुमार ने कहा, "हमारे अनुमान के अनुसार इस परियोजना की लागत लगभग 1800 करोड़ रुपये होगी और इससे पैदा होने वाली बिजली की दर चार से साढ़े चार रुपये प्रति यूनिट तक होगी। यह परियोजना भूमि उपयोग के लिहाज से भी एक मॉडल साबित होगी।”
उन्होंने बताया कि 296 किलोमीटर लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के दोनों तरफ 15 मीटर के हिस्से पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाए जाएंगे, जिससे पूरे एक्सप्रेसवे का विद्युतीकरण हो सकता है।
कुमार के मुताबिक, इससे राजमार्ग पर अतिरिक्त इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है, जिससे इलेक्ट्रिक परिवहन को अपनाने में सबसे बड़ी बाधा यानी चार्जिंग की पर्याप्त सुविधा की कमी को भी दूर करने में मदद मिलेगी।
कुमार ने दावा किया कि यह इस पैमाने पर भारत में अपनी तरह की पहली परियोजना है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना आस-पास के गांवों के लिए भी फायदेमंद होगी, क्योंकि उन्हें स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच मिलेगी। कुमार ने कहा कि इससे एक्सप्रेसवे की खूबसूरती बढ़ेगी और रोजगार के अवसर भी सृजत होंगे।
यह पूछे जाने पर कि उत्तर प्रदेश को अक्षय ऊर्जा का केंद्र बनाने के लिए किन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत है, कुमार ने कहा, "बुंदेलखंड जैसे शुष्क क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा के लिए व्यापक क्षमता है। मगर प्रदेश में मुख्य चुनौती भूमि की उपलब्धता को लेकर है, क्योंकि इसका बड़ा हिस्सा कृषि भूमि है। ऐसे अवसरों की पहचान करने की जरूरत है, जहां हम भूमि के छोटे टुकड़ों से अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।"
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, "इसके लिए हम पीएम कुसुम योजना के तहत सौर ऊर्जा के लिए कृषि भूमि के आसपास के क्षेत्रों का अधिग्रहण कर सकते हैं। इसमें भी 8,000-10,000 मेगावाट की संभावना है।"
कुमार ने बताया, "प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। (हालांकि, अब इसे बढ़ाकर 2032 तक कर दिया गया है।) वर्तमान में हम 200 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन पर हैं। साल 2023-24 के दौरान अक्षय ऊर्जा उत्पादन में सबसे तेज 18 गीगावाट का विस्तार हुआ। इस गति से हम केवल 300-350 गीगावाट के लक्ष्य तक ही पहुंच सकते हैं।"
उन्होंने कहा, "500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हमें 18 गीगावाट को 60 गीगावाट तक ले जाना होगा। हमारा प्रयास यह पता लगाने में केंद्र और राज्य सरकारों की मदद करना है कि हम 200 गीगावाट के अंतर को पाटने में उनकी और अन्य संस्थाओं की किस तरह मदद कर सकते हैं।"
भाषा
सलीम