मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिका परमाणु करार से स्थापित किया कि वह राजनीति जानते थे: अहलूवालिया
शोभना प्रशांत
- 14 Nov 2025, 12:03 AM
- Updated: 12:03 AM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बृहस्पतिवार को कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिका परमाणु करार के जरिये यह स्थापित किया कि उन्हें पता था कि जरूरत पड़ने पर राजनीति कैसे करनी है। उन्होंने कहा कि हालांकि, इस समझौते की अब भी ‘‘उपयुक्त रूप से सराहना नहीं की गई है।’’
योजना आयोग को अब राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (नीति आयोग) के नाम से जाना जाता है।
प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय के ‘सेंटर फॉर कंटेम्पररी स्टडीज’ द्वारा आयोजित प्रधानमंत्री व्याख्यान शृंखला के तहत 'डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एवं विरासत' विषय पर व्याख्यान देते हुए अहलूवालिया ने कहा कि यदि परमाणु करार पर हस्ताक्षर नहीं किये गए होते तो रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में मौजूदा सहयोग संभव नहीं होता।
उन्होंने अमेरिका के साथ शुल्क के मुद्दे से निपटने के मौजूदा सरकार के तरीके की भी सराहना की और कहा कि अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर करना "सही कदम" होगा।
अहलूवालिया ने सुधारों का समर्थन किया और कहा कि मनमोहन सिंह ने 1971 में ही अपने एक पेपर में सुधारों को लागू करने का समर्थन किया था, लेकिन ये सुधार 1991 में ही लागू किए गए।
उन्होंने निजी क्षेत्र से युवाओं को शासन में पार्श्व प्रवेश देने का भी समर्थन किया और आधार के संबंध में नंदन नीलेकणि का उदाहरण दिया।
उन्होंने कहा कि 'विकसित भारत' का विचार तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक मानव संसाधनों का उचित ढंग से प्रबंधन नहीं किया जाता।
इस कार्यक्रम में, दिवंगत मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर तथा प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा भी उपस्थित थे।
मिश्रा ने सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल में "उदारीकरण का अग्रदूत" करार दिया।
मिश्रा ने कहा कि उनकी ईमानदारी और विनम्र व्यवहार उनका व्यक्तिगत गुण था, जिससे कम सरकारी नियंत्रण और निजी क्षेत्र की अधिक भूमिका वाली नीतियां बनाने में भी मदद मिली।
भारत-अमेरिका परमाणु करार को पूर्व प्रधानमंत्री सिंह का 'कुशलतापूर्ण कार्य' बताते हुए अहलूवालिया ने कहा कि कांग्रेस, वाम दल और यहां तक कि भाजपा का एक बड़ा वर्ग नहीं चाहता था कि परमाणु करार पर हस्ताक्षर हो तथा इसे पारित कराने के लिए काफी ‘‘राजनीतिक जोड़-तोड़’’ करनी पड़ी।
सिंह के करीबी सहयोगी अहलूवालिया ने कहा, ‘‘यह उनका (सिंह का) एक बहुत ही कुशलतापूर्ण कार्य था। अंततः, इसी वजह से उन्होंने श्रीमती (सोनिया) गांधी को अपना इस्तीफा देने की पेशकश की थी, क्योंकि उन पर (गांधी पर) बहुत दबाव था। वाम दलों ने असल में कहा था कि 'हम सरकार से बाहर निकल जाएंगे', हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि किस आधार पर।’’
अहलूवालिया ने अपने व्याख्यान में कहा, ‘‘लेकिन मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी को मना लिया, जिन्होंने उन्हें ऐसा करने की अनुमति दे दी। वाम दलों ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दी, लेकिन उन्होंने (सिंह ने) परमाणु करार पर विश्वास मत हासिल करके उसे भी मात दे दी।’’
अहलूवालिया ने कहा, ‘‘(इसमें) एक ऐसे व्यक्ति द्वारा बहुत अधिक राजनीतिक जोड़-तोड़ किया गया, जिसे राजनेता के रूप में नहीं देखा जाता था। मुझे लगता है कि भारत-अमेरिका परमाणु करार ने यह स्थापित कर दिया कि वह (सिंह) जानते थे कि जब उन्हें लगता था कि राजनीति वास्तव में जरूरी है, तब कैसे राजनीति की जाए। और, मुझे लगता है कि अब भी इसकी उपयुक्त रूप से सराहना नहीं की जाती है।’’
उन्होंने कहा कि यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि समूची कांग्रेस असैन्य परमाणु करार के खिलाफ थी, ‘‘लेकिन मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि उनमें से एक बहुत बड़ी संख्या इसके बिल्कुल खिलाफ थी।’’
अहलूवालिया ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि वे इसका मतलब समझते हैं। इसे सरकार की एक चूक कहा जा सकता था।’’
अहलूवालिया ने कहा कि एक अर्थशास्त्री के रूप में सिंह को उनके विचारों को चुनौती दिए जाने में मज़ा आता था।
भाषा शोभना