‘विभाजन की बढ़ती प्रवृत्ति’ के बीच समाज को एकजुट रख सकने वाला सूत्र है वंदे मातरम : होसबाले
सुभाष पवनेश
- 01 Nov 2025, 06:38 PM
- Updated: 06:38 PM
नयी दिल्ली, एक नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने राष्ट्र गीत 'वंदे मातरम' की रचना की 150वीं वर्षगांठ पर इसके रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को शनिवार को याद किया और लोगों से इसकी भावना को आत्मसात करने का आह्वान किया, क्योंकि समाज में ‘‘विभाजन की प्रवृत्ति बढ़ रही’’ है।
संघ सरकार्यवाह ने कहा कि वंदे मातरम राष्ट्र की आत्मा का गीत है, जो अपने ‘‘दिव्य प्रभाव’’ के कारण 150 वर्षों के बाद भी संपूर्ण समाज को राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना से ओत-प्रोत करने का सामर्थ्य रखता है।
उन्होंने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘आज जब क्षेत्र, भाषा, जाति आदि संकीर्णता के आधार पर विभाजन की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ऐसे में वंदे मातरम वह सूत्र है, जो समाज को एकता के सूत्र में बांधकर रख सकता है।’’
होसबाले ने कहा कि राष्ट्र गीत को भारत के सभी क्षेत्रों और भाषाओं में सार्वभौम स्वीकृति मिली है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह आज भी समाज की राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक पहचान और एकात्म भाव का सशक्त आधार है।’’
उन्होंने कहा कि 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा इसे गाये जाने के बाद से यह गीत देशभक्ति का मंत्र और राष्ट्र की आत्मा बन गया।
होसबाले ने कहा कि इस मंत्र की व्यापकता को इस बात से समझा जा सकता है कि देश के अनेक विद्वानों और महापुरुषों -- महर्षि अरविंद, मैडम भीकाजी कामा, महाकवि सुब्रमण्यम भारती, लाला हरदयाल, लाला लाजपत राय आदि ने अपने पत्र पत्रिकाओं के नाम में वंदे मातरम जोड़ा था।
उन्होंने उल्लेख किया कि महात्मा गांधी भी अनेक वर्षों तक अपने पत्रों में समापन वंदे मातरम के साथ करते रहे।
होसबाले ने एक वक्तव्य में कहा ‘‘वंदे मातरम की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र गीत के रचयिता श्रद्धेय बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।’’
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1875 में रचित इस गीत को 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।
होसबाले ने कहा, ‘‘उस वक्त से, यह गीत देशभक्ति का मंत्र ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय उद्घोष, राष्ट्रीय चेतना तथा राष्ट्र की आत्मा की ध्वनि बन गया।’’
उन्होंने कहा कि इसके बाद, ‘बंग-भंग’ आंदोलन सहित भारत के स्वाधीनता संग्राम के सभी सेनानियों का नारा ‘वंदे मातरम’ ही बन गया था।
उन्होंने कहा, ‘‘वंदे मातरम गीत की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी स्वयंसेवकों सहित सम्पूर्ण समाज से आह्वान करता है कि वंदे मातरम की प्रेरणा को प्रत्येक हृदय में जागृत करते हुए ‘‘स्व’’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण कार्य के लिए सक्रिय हों और इस अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को उत्साहपूर्वक भागीदारी करें।’’
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