रामपुर में आतंकी हमले मामले में आरोपियों की अपील स्वीकार की
सं राजेंद्र रंजन
- 29 Oct 2025, 11:52 PM
- Updated: 11:52 PM
प्रयागराज, 29 अक्टूबर (भाषा) उत्तर प्रदेश रामपुर जिले में दिसंबर, 2007 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के शिविर पर आतंकी हमले के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को आरोपियों की अपील स्वीकार कर ली और रामपुर के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के निर्णय और आदेश को दरकिनार कर दिया।
रामपुर की अदालत ने पारित आदेश में आरोपियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने 31 दिसंबर, 2007 को सीआरपीएफ कैंप पर हुए आतंकी हमले में मृत्युदंड की सजा से मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारुक को बरी कर दिया।
उल्लेखनीय है कि इस हमले में सीआरपीएफ के आठ जवान शहीद हो गए थे और पांच अन्य घायल हुए थे। इस संबंध में उप निरीक्षक ओम प्रकाश शर्मा द्वारा एक जनवरी, 2008 को रामपुर के सिविल लाइंस थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
सत्र न्यायालय के निर्णय को दरकिनार करते हुए अदालत ने कहा, “जांच में खामी से इस मामले की जड़ का पता चला जिससे इन आरोपियों को बरी किया गया। हम अपराध की भयावहता और व्यापकता से बहुत चिंतित हैं।”
अदालत ने आगे कहा, “साथ ही हम यह कहने को विवश हैं कि अभियोजन पक्ष, मुख्य अपराध के लिए अभियुक्तों के खिलाफ इस मामले को उचित संदेह से परे सिद्ध करने में बुरी तरह विफल रहा।”
साक्ष्यों पर गौर करने और गवाहों के बयान सुनने के बाद अदालत ने कहा, “इन परिस्थितियों में अदालत का मानना है कि निश्चित तौर पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह घटना घटी। अदालत को यह देखना है कि क्या इस मामले में आरोपी अपीलकर्ताओं ने वास्तव में वह अपराध किया था।”
अदालत ने आगे कहा, मौजूदा मामले में सरकारी गवाहों को इन अपीलकर्ताओं के नाम पहले कभी पता नहीं थे और उनसे अपीलकर्ताओं की पहचान नहीं कराई गई थी। इससे संदेह पैदा होता है कि क्या गवाहों को कभी यह पता था कि वास्तव में इन्हीं अपीलकर्ताओं ने वह अपराध किया था।
अपीलकर्ताओं के वकील की दलीलें सुनने और संपूर्ण रिकॉर्ड पढ़ने के बाद अदालत ने पाया कि सरकारी गवाहों को जांच अधिकारी के समक्ष बयान दर्ज कराते समय और प्राथमिकी लिखे जाने के समय आरोपी व्यक्तियों के नाम नहीं पता थे।
हालांकि, अदालत में अभियोजन पक्ष के गवाहों ने आरोपियों को पहचान लिया और बाकायदा उन्हें उनके नामों से पहचाना। जिरह के दौरान, वे अदालत को यह बताने में विफल रहे कि उन्हें इन आरोपियों के नाम कैसे मालूम हुए, जबकि बयान और प्राथमिकी दर्ज कराते समय उन्हें आरोपियों के नाम नहीं पता थे।
मृत्युदंड के खिलाफ शरीफ और चार अन्य की अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने हालांकि कुछ आरोपियों के पास से एके47 राइफल की बरामदगी के आधार पर इन्हें शस्त्र अधिनियम की धारा 25(1) के तहत दोषी पाया और 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके अलावा, अदालत ने प्रत्येक अपीलकर्ता- मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद, मोहम्मद फारुक और जंग बहादुर खान पर एक लाख रुपये अर्थदंड लगाया। अदालत ने जंग बहादुर खान को आजीवन कारावास से बरी कर दिया।
भाषा सं राजेंद्र