उच्चतम न्यायालय ने वांगचुक की हिरासत के खिलाफ याचिका पर केंद्र, लद्दाख से जवाब मांगा
आशीष पवनेश
- 29 Oct 2025, 08:07 PM
- Updated: 08:07 PM
नयी दिल्ली, 29 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को सोनम वांगचुक की पत्नी की संशोधित याचिका पर केंद्र और लद्दाख प्रशासन से जवाब मांगा, जिसमें जलवायु कार्यकर्ता की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत हिरासत को अवैध, मनमाना कृत्य बताया गया है।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से गीतांजलि जे अंगमो की संशोधित याचिका पर 10 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर के लिए निर्धारित की।
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को भी प्रतिउत्तर, यदि कोई हो तो, दाखिल करने की अनुमति दी।
संशोधित याचिका में कहा गया है, "हिरासत आदेश पुरानी प्राथमिकी, अस्पष्ट आरोपों और काल्पनिक दावों पर आधारित है। इसमें हिरासत के कथित आधारों से कोई जीवंत या निकट संबंध नहीं है। इस प्रकार इसमें कोई कानूनी आधार नहीं है।’’
याचिका में कहा गया, "ऐहतियाती शक्तियों का ऐसा मनमाना प्रयोग सत्ता का घोर दुरुपयोग है, जो संवैधानिक स्वतंत्रता और उचित प्रक्रिया की बुनियाद पर प्रहार करता है, जिसके कारण हिरासत आदेश को इस न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जाना चाहिए।"
याचिका में कहा गया है कि यह पूरी तरह से हास्यास्पद है कि लद्दाख और पूरे भारत में जमीनी स्तर पर शिक्षा, नवाचार और पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान के लिए राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीन दशकों से अधिक समय तक सराहे जाने के बाद वांगचुक को अचानक निशाना बनाया गया।
अंगमो ने अपनी याचिका में कहा, "चुनावों से मात्र दो महीने पहले और एबीएल (एपेक्स बॉडी ऑफ लेह), केडीए (कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस) तथा गृह मंत्रालय के बीच बातचीत के अंतिम दौर से पहले, उन्हें भूमि पट्टा रद्द करने, एफसीआरए रद्द करने, सीबीआई जांच शुरू करने तथा आयकर विभाग से नोटिस भेजे गए।
याचिका में कहा गया, "ऐन समय पर इन समन्वित कार्रवाइयों से प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट होता है कि हिरासत का आदेश सार्वजनिक व्यवस्था या सुरक्षा की वास्तविक चिंताओं पर आधारित नहीं है, बल्कि यह असहमति के लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने वाले एक सम्मानित नागरिक को चुप कराने सोचा-समझा प्रयास है।"
उन्होंने कहा कि 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए किसी भी तरह से वांगचुक के कार्यों या बयानों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
याचिका में कहा गया, "वास्तव में, 24 सितंबर, 2025 से पहले के दिनों/सप्ताहों में सोनम वांगचुक द्वारा कोई भड़काऊ बयान नहीं दिया गया, जिसे 24 सितंबर, 2025 की हिंसा से दूर से भी जोड़ा जा सके। रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत या सामग्री नहीं है जो दिखाए कि सोनम वांगचुक द्वारा दिए गए किसी भी बयान से कोई हिंसक घटना, विशेष रूप से 24 सितंबर, 2025 की घटना, हुई हो।"
उन्होंने कहा कि वांगचुक ने अपने सोशल मीडिया हैंडल के माध्यम से हिंसा की निंदा की और स्पष्ट रूप से कहा कि हिंसा से लद्दाख की "तपस्या" और पांच वर्षों का शांतिपूर्ण प्रयास विफल हो जाएगा।
याचिका में यह भी कहा गया कि हिरासत के पूरे आधार वांगचुक को 28 दिनों की बहुत देरी के बाद बताए गए, जो कि रासुका की धारा 8 के तहत निर्धारित वैधानिक समयसीमा का स्पष्ट उल्लंघन है।
वांगचुक को 26 सितंबर को कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत हिरासत में लिया गया था। यह घटना केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची का दर्जा देने की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों के दो दिन बाद हुई थी। इस प्रदर्शन में चार लोगों की मौत हो गई थी और 90 लोग घायल हो गए थे। सरकार ने वांगचुक पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया था।
रासुका केंद्र और राज्यों को व्यक्तियों को हिरासत में लेने का अधिकार देता है ताकि उन्हें ‘‘देश की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाले’’ कार्य करने से रोका जा सके। हिरासत की अधिकतम अवधि 12 महीने है, हालांकि इसे पहले भी रद्द किया जा सकता है।
भाषा आशीष