‘अर्थ’ से पूर्व मेरा करियर खत्म मान लिया गया था,महेश भट्ट ने साझा की शुरुआती विफलताओं की कहानी"
सुमित राजकुमार
- 20 Sep 2025, 05:45 PM
- Updated: 05:45 PM
(कोमल पंचमटिया)
मुंबई, 20 सितंबर (भाषा) फिल्म निर्देशक महेश भट्ट ने कहा है कि वह आज भी खुद को एक ‘‘लड़खड़ाता और ठोकर खाता इंसान’’ मानते हैं, जिन्होंने जब फिल्म उद्योग में कदम रखा तब लगातार असफलताएं झेलीं।
महेश भट्ट ने दिवंगत राज खोसला के सहायक निर्देशक के रूप में काम किया था। उन्होंने 1974 में ‘मंजिलें और भी हैं’ से निर्देशन में कदम रखा। हालांकि कबीर बेदी और प्रेमा नारायण अभिनीत यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली। इसके बाद उन्होंने ‘विश्वासघात’, ‘नया दौर’, ‘लहू के दो रंग’ जैसी फिल्में बनाईं, जो दर्शकों पर कुछ खास असर नहीं छोड़ पाईं।
महेश भट्ट को तब सफलता मिली जब उन्होंने आत्मकथा पर आंशिक रूप से आधारित फिल्में--‘अर्थ’, ‘जन्म’, ‘जख्म’ बनायीं।
उन्होंने कहा, ‘‘20 की उम्र के बाद का एक दशक मेरे लिए बहुत खराब रहा। मेरी तीन-चार फिल्में आईं लेकिन लगातार नाकामयाब रहीं। ‘अर्थ’ फिल्म रिलीज होने के पहले समझ लिया गया कि मेरा करियर खत्म हो गया हैं।’’
उन्होंने कहा, “मैं बस एक संघर्षरत, लड़खड़ाता और हकलाता हुआ इंसान हूं। कुछ फिल्में मैंने बनाईं जो अच्छी निकलीं लेकिन वे सेट पर मौजूद सामूहिक ऊर्जा और मेरे साथियों के योगदान के वजह से थीं।’’
निर्देशक-निर्माता नानाभाई भट्ट के बेटे महेश भट्ट (76) ने बताया कि उन्होंने कभी खुद को फिल्मकार नहीं माना क्योंकि वह केवल रोजगार की तलाश में इस उद्योग में आए थे।
उन्होंने कहा, “15 साल की उम्र में मेरी मां ने मुझसे कहा, ‘‘तुम्हारे पापा मुश्किल में हैं, हमें पैसे की जरूरत है। तुम्हारी बहन ‘एयरोस्पेस इंजीनियर’ के रूप में काम करने लगी है। तुम यहां बैठे हो और मेरे सामने खा रहे हो, मुझे ये अच्छा नहीं लगता।”
उन्होंने याद करते हुए कहा, “मैंने खाना वहीं रख दिया, हाथ पोंछे और अपने दोस्त असगर अली के पास जाकर चिल्लाया: ‘‘मुझे कोई काम दिला।’’ मैंने पवई स्थित किलिक निक्सन में टर्नर और फिटर के रूप में काम शुरू किया। मेरी पहली हफ्ते की तनख्वाह 58 रुपये थी... मैंने वो पैसे अपनी मां को दिए। मैंने बस खाने के लिए काम किया।”
महेश भट्ट ने बताया कि वह अच्छे विद्यार्थी नहीं थे और कॉलेज छोड़ दिया था लेकिन उन्हें कहानियां सुनाकर जीवन में आगे बढ़ने की कला आती थी।
उन्होंने कहा, “मेरा बचपन शायद सामान्य घरों के मानकों के अनुसार कुछ हद तक त्रस्त था। मैंने खुद को संभालने के लिए कहानियों का सहारा लिया। मेरी कहानी कहने की कला वहीं से शुरू हुई लेकिन जब मैंने शुरुआत की, तब भी मैं लड़खड़ाता रहा, गिरता रहा।’’
भट्ट ने कहा, “अगर आप असफलता से डरते हैं तो इस उद्योग में मत आइए। यहां असफलता हमेशा साथ रहती है, सफलता एक संयोग मात्र है। अगर आप में सार्वजनिक रूप से असफल होने, आलोचना सहने का साहस है, तभी आइए, वरना उठिए और यहां से निकल जाइए।”
जब उनसे पूछा गया कि उनकी निजी जिंदगी और फिल्में जैसे ‘अर्थ’, ‘जख्म’ और ‘वो लम्हे’ अक्सर एक-दूसरे में कैसे जुड़ी रहीं तो भट्ट ने कहा कि उनके लिए यह सहज था क्योंकि सिनेमा ही उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम था।
भाषा सुमित