मैसुरु दशहरा में बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने के खिलाफ याचिका न्यायालय ने खारिज की
खारी नरेश
- 19 Sep 2025, 03:00 PM
- Updated: 03:00 PM
नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक को इस साल मैसुरु दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए आमंत्रित करने के कर्नाटक सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी और सवाल किया कि राज्य ‘‘ कैसे भेदभाव कर सकता है।’’
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायामूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील से पूछा, ‘‘इस देश की प्रस्तावना क्या है?’’।
याचिकाकर्ता के वकील ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 15 सितंबर के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें राज्य के फैसले के खिलाफ याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था।
यह उत्सव 22 सितंबर से शुरू होगा।
याचिकाकर्ता एच.एस. गौरव के वकील ने कार्यक्रम के उद्घाटन पर कोई आपत्ति नहीं जताई और इसे एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि बताया, लेकिन उन्होंने पीठ का ध्यान मंदिर परिसर के रीति-रिवाजों की ओर आकर्षित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह (रीति-रिवाज) पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष नहीं है। ये एक आध्यात्मिक या धार्मिक क्रियाएं रूप ले लेते हैं।’’
पीठ ने हालांकि इसे राज्य स्तरीय कार्यक्रम बताया और उनसे सवाल किया, ‘‘यह कोई निजी कार्यक्रम नहीं है। राज्य सरकार इसका आयोजन कर रही है। राज्य सरकार कैसे अंतर कर सकती है?’’
उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस आदेश का हवाला दिया, जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने वालों में से एक ने 2017 में आयोजित समारोह के उद्घाटन में आमंत्रित डॉ. निसार अहमद के साथ मंच साझा किया था।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, ‘‘क्या यह सच है या नहीं?’’
वकील ने कहा कि कार्यक्रम के दो पहलू हैं, एक उद्घाटन और दूसरा पूजा।
पीठ ने पूछा, ‘‘आपने याचिका क्यों दायर की? याचिका में क्या आधार लिया गया है?’’
वकील ने कहा कि राज्य का फैसला अनुच्छेद 25 के तहत दिए गए उनके अधिकारों को प्रभावित करता है।
संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार-प्रसार से संबंधित है।
पीठ ने पूछा कि क्या 2017 में याचिकाकर्ता के अधिकार प्रभावित नहीं हुए थे।
वकील ने कहा, ‘‘वे मेरी धार्मिक गतिविधियों में दखल नहीं दे सकते।’’ उन्होंने शीर्ष अदालत के कुछ फैसलों का हवाला दिया।
मंदिर परिसर के अंदर की गतिविधियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में, जब मंदिर परिसर के अंदर एक समारोह और पूजा हो रही हो और लोगों को उस समारोह का हिस्सा बनाया जाए, तो वह बिल्कुल अलग बात होती है।’’
उन्होंने दावा किया कि राज्य का फैसला ‘‘पूरी तरह से राजनीतिक’’ है।
जब वकील ने धार्मिक उत्सव के उद्देश्य से मुश्ताक को मंदिर परिसर में प्रवेश देने के राज्य सरकार के निर्णय पर सवाल उठाया, तो पीठ ने कहा, ‘‘अर्जी खारिज की जाती है।’’
इसके बाद वकील ने दावा किया कि 2017 से धर्म के खिलाफ बयान दिए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘आप ऐसे व्यक्ति को आमंत्रित नहीं कर सकते। इसमें दो बातें हैं — एक व्यक्ति जो खुद को धर्मनिरपेक्ष बताता है, और दूसरा जो हमारे खिलाफ बिल्कुल विपरीत रुख अपनाता है।’’
उन्होंने कहा कि बानू को समारोह का उद्घाटन करने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन उन्हें मंदिर परिसर के अंदर होने वाले अनुष्ठानों का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता।
न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, ‘‘हमने तीन बार कहा है, खारिज, खारिज, खारिज।’
इससे पहले, उच्च न्यायालय ने मैसुरु से भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा द्वारा दायर एक याचिका सहित चार जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ता किसी भी संवैधानिक या कानूनी उल्लंघन को साबित करने में विफल रहे।
इसके खिलाफ अदालत में अपील दायर कर उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें 22 सितंबर 2025 को होने वाले दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए एक गणमान्य मुस्लिम महिला बानू मुश्ताक को आमंत्रित करने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया था।
इस याचिका में कहा गया कि चामुंडेश्वरी मंदिर में होने वाले दशहरे के अनुष्ठान के रीति-रिवाज प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित आवश्यक धार्मिक प्रथा हैं।
इस परंपरा के तहत देवी चामुंडेश्वरी के गर्भगृह के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है, हल्दी व कुमकुम लगाया जाता है, फल और फूल चढ़ाए जाते हैं।
याचिका के अनुसार, ये हिंदू पूजा के कार्य हैं जो आगमिक परंपराओं द्वारा निर्धारित होते हैं, और इन्हें कोई गैर-हिंदू नहीं कर सकता।
मैसुरु जिला प्रशासन ने तीन सितंबर को, विपक्षी भाजपा सहित कुछ वर्गों की आपत्तियों के बावजूद, मुश्ताक को औपचारिक रूप से आमंत्रित किया था।
यह विवाद बानू मुश्ताक द्वारा अतीत में दिए गए कुछ बयानों को लेकर खड़ा हुआ है, जिन्हें कुछ लोग ‘हिंदू विरोधी’ और ‘कन्नड़ विरोधी’ मानते हैं।
प्रताप सिम्हा और अन्य आलोचकों का तर्क है कि यह उत्सव परंपरागत रूप से वैदिक अनुष्ठानों और देवी चामुंडेश्वरी को पुष्पांजलि अर्पित करके शुरू होता है, ऐसे में मुश्ताक का चयन, धार्मिक भावनाओं और लंबे समय से चली आ रही परंपराओं का अनादर है।
मैसुरु में दशहरा उत्सव 22 सितंबर से शुरू होकर दो अक्टूबर को विजयादशमी पर समाप्त होगा।
भाषा
खारी