मराठा आरक्षण के खिलाफ याचिका खारिज; मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा- याचिकाकर्ता पीड़ित व्यक्ति नहीं है
संतोष सुरेश
- 18 Sep 2025, 06:50 PM
- Updated: 06:50 PM
मुंबई, 18 सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने मराठा समुदाय के सदस्यों को आरक्षण के लिए कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी और कहा कि याचिकाकर्ता पीड़ित व्यक्ति नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड़ की पीठ ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति (ओबीसी श्रेणी के लोग) पहले ही उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर कर चुके हैं, जिस पर 22 सितंबर को एक अन्य पीठ सुनवाई करेगी।
अदालत ने कहा, ‘‘इस स्तर पर ये जनहित याचिकाएं ठीक नहीं हैं। यह विकल्प (सरकारी फैसले को चुनौती देने का) पीड़ित पक्ष के लिए है, हर किसी के लिए नहीं।’’
पीठ ने कहा कि ‘‘कानून में दुर्भावना का मुद्दा केवल पीड़ित पक्ष ही उठा सकता है’’ और यह याचिकाकर्ता पीड़ित पक्ष नहीं हैं।
पीठ ने कहा कि शासनादेश (जीआर) के गुण-दोष पर विचार किए बिना, हम यह टिप्पणी करेंगे कि उच्च न्यायालय को उन मामलों में जनहित याचिकाएं दायर करने को हतोत्साहित करना चाहिए, जिसमें सरकारी निर्णय से प्रभावित व्यक्ति न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं।
अदालत ने कहा कि यह जनहित में है कि मुकदमों की बहुलता न हो। इसने यह भी कहा कि जनहित याचिकाएं केवल इसलिए दायर की जाती हैं ताकि समाज के एक विशेष वर्ग की बात अनसुनी न रहे और उनके मामले को न्यायालय में उठाया जा सके।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यह विशेष जनहित याचिका ऐसी नहीं है, जिसमें हमें कोई रियायत देनी चाहिए। इसलिए, हम इस जनहित याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं और इसे खारिज किया जाता है।’’
पीठ ने कहा कि अधिवक्ता विनीत विनोद धोत्रे को पीड़ित व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं में हस्तक्षेप करने के लिए आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता है।
अदालत ने कहा, ‘‘अगर दूसरी पीठ को लगता है कि उसे इन याचिकाकर्ताओं की सहायता की आवश्यकता है, तो वह उनकी सुनवाई का फैसला कर सकती है।’’
धोत्रे के वकील ने अदालत को बताया कि जनहित याचिका विचार करने योग्य है, क्योंकि याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित हैं।
हालांकि, महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने इसका विरोध किया और कहा कि शासनादेश का अनुसूचित जाति समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है।
धोत्रे ने अपनी जनहित याचिका में मराठा समुदाय के सदस्यों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र जारी करने के शासनादेश को चुनौती दी थी।
याचिका में दावा किया गया था कि सरकार का निर्णय मनमाना, असंवैधानिक और कानून की दृष्टि से गलत है, और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
इसके बाद अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के लोगों ने सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए चार याचिकाएं दायर कीं। इन याचिकाओं पर सोमवार को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी।
मराठा समुदाय के पात्र लोगों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र जारी करने का सरकार का यह फैसला आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे द्वारा 29 अगस्त से दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान में पांच दिनों की अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के बाद आया है।
राज्य के सामाजिक न्याय एवं विशेष सहायता विभाग द्वारा हैदराबाद गजेटियर को लागू करने के लिए जारी किए गए शासनादेश के बाद ओबीसी वर्ग में बेचैनी है।
इस शासनादेश के तहत मराठा समुदाय के पात्र सदस्य कुनबी जाति के प्रमाण-पत्र के लिए आवेदन कर सकेंगे। इससे उन्हें प्रमाण पत्र जारी होने के बाद ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का दावा करने में मदद मिलेगी। कुनबी (एक कृषि प्रधान समुदाय) महाराष्ट्र में ओबीसी वर्ग का हिस्सा है।
भाषा संतोष