लू, वायु गुणवत्ता, बीमा लागत में वृद्धि : जलवायु परिवर्तन का हमारे घरों और सेहत पर गहराता असर
द कन्वरसेशन मनीषा नरेश
- 18 Sep 2025, 05:35 PM
- Updated: 05:35 PM
(एंज ली- मेलबर्न स्कूल ऑफ पॉपुलेशन एंड ग्लोबल हेल्थ, द यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न)
मेलबर्न, 18 सितम्बर (द कन्वरसेशन) यूरोप में इस साल दस दिनों की भीषण गर्मी से लगभग 2,300 लोगों की जान चली गई, ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में बाढ़ की वजह से 48,000 से अधिक लोग फंस गए और लॉस एंजलिस में जंगल की आग से कम से कम 16,000 घर और इमारतें नष्ट हो गईं।
जलवायु वैज्ञानिकों की चेतावनियों के अनुरूप अब जलवायु से जुड़ी चरम घटनाएं अधिक तीव्र हो रही हैं और उनकी आवृत्ति भी बढ़ रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, कमजोर और खराब गुणवत्ता वाले घर हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति और अधिक संवेदनशील बनाते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि हमारे घर जलवायु-प्रतिरोधी हों — यानी वे लू, बाढ़, आग और प्रदूषण से सुरक्षा देने में सक्षम हों, और साथ ही सस्ती व सुरक्षित आवास प्रणाली सुनिश्चित करें।
राष्ट्रीय जलवायु जोखिम मूल्यांकन के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया में वर्तमान में 8.7 फीसदी आवासीय इमारतें अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में हैं। यदि वैश्विक तापमान उच्च स्तर पर बढ़ता है तो 2090 तक यह आंकड़ा 13.5 फीसदी तक पहुंच सकता है।
कैसे प्रभावित हो रहे हैं घर और स्वास्थ्य?
जलवायु परिवर्तन से घरों के अंदर की स्थिति बिगड़ सकती है। अत्यधिक गर्मी से भवन सामग्री टूटने लगती है, जिससे हवा की गुणवत्ता खराब होती है। जंगल की आग से निकलने वाला धुआं और कण भी घरों के भीतर पहुंच सकते हैं, जिससे सांस संबंधी बीमारियां और एलर्जी हो सकती हैं।
वहीं, बाढ़ और तूफानों से घरों में जलभराव, ढांचागत क्षति और गंदे पानी से विषाक्तता फैल सकती है, जिससे संक्रामक रोगों का खतरा भी बढ़ता है।
अत्यधिक तापमान निर्माण सामग्री के खराब होने और प्रदूषकों के निर्माण की संभावना को बढ़ाकर वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। जंगल की आग के धुएँ से निकलने वाले कण और अन्य खतरनाक वायु प्रदूषक घर के अंदर के वातावरण में प्रवेश कर सकते हैं। ये दोनों प्रक्रियाएँ घर के अंदर की वायु गुणवत्ता को खराब कर सकती हैं। बाहर की अत्यधिक गर्मी घर के अंदर असहनीय तापमान पैदा कर सकती है।
इस बीच, बाढ़, तूफ़ान और चक्रवात घरों को संरचनात्मक और जल क्षति पहुँचा सकते हैं। इससे निवासियों को दूषित पानी जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना पड़ सकता है, और एलर्जी, श्वसन संबंधी समस्याओं और संक्रामक रोगों (जैसे जलजनित और मच्छर जनित रोग) का खतरा बढ़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन और आवास सुरक्षा
जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिम आवास सुरक्षा और सामर्थ्य को भी प्रभावित कर सकते हैं। आवास संकट हमें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील बना देता है।
जलवायु संबंधी आपदाएँ आवास की लागत और सामान्य जीवन-यापन की लागत पर दबाव डालती हैं। निवासियों को अपने किराये के भुगतान के साथ-साथ रखरखाव और मरम्मत के लिए भी भुगतान करना पड़ सकता है। इस बीच, बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं के कारण बीमा प्रीमियम बढ़ जाता है। यह सब आवास की सामर्थ्य पर दबाव डालता है।
आवासीय असुरक्षा और बढ़ते खर्च
जलवायु आपदाओं से खर्च भी बढ़ता है यानी स्वास्थ्य के अलावा रख-रखाव, मरम्मत और बीमा प्रीमियम में वृद्धि होती है, जिससे आवासीय लागत पर दबाव बढ़ता है। साथ ही, अत्यधिक तापमान के कारण ऊर्जा गरीबी की स्थिति उत्पन्न होती है, जब लोग न तो घर को ठंडा रख सकते हैं और न गर्म। इससे मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
जलवायु आपदाएं लोगों को जबरन स्थानांतरित होने पर मजबूर करती हैं, जिससे रोजगार, सामाजिक संबंध और सेवाओं तक पहुंच प्रभावित होती है। गरीब और किराए पर रहने वाले परिवारों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है।
कैसा होना चाहिए जलवायु-प्रतिरोधी घर?
जलवायु-प्रतिरोधी घरों में कुछ विशेषताएं होनी चाहिए जैसे मजबूत नींव, दीवारें और छत, हवा के लिए खिड़की और रोशनदान की सुविधा, तापमान के लिए इन्सुलेशन की व्यवस्था, ऊर्जा कुशल ताप और शीतलन प्रणाली, बाहरी छायांकन और परावर्तक छत तथा आग और गर्मी प्रतिरोधी निर्माण सामग्री का इस्तेमाल आदि।
हालांकि नयी भवन संहिता में कुछ बदलाव किए जा रहे हैं, लेकिन पुराने घरों को उन्नत करना और किरायेदारों के लिए न्यूनतम जलवायु-मानक तय करना जरूरी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि केवल घरों की संख्या बढ़ाने से काम नहीं चलेगा, लोगों को अच्छे, सुरक्षित और जलवायु-तैयार घरों में बसाना भी उतना ही जरूरी है, ताकि उनका स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित हो सके।
द कन्वरसेशन मनीषा