अल्जाइमर और डिमेंशिया की रोकथाम में कारगर ‘शील्ड’ पद्धति
(द कन्वरसेशन) पारुल नरेश
- 18 Sep 2025, 05:19 PM
- Updated: 05:19 PM
(डोनाल्ड वीवर, टोरंटो विश्वविद्यालय)
टोरंटो, 18 सितंबर (द कन्वरसेशन) अल्जाइमर के आने वाले दिनों में एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभरकर सामने आने की आशंका है। दुनिया में औसतन हर तीन सेकेंड में डिमेंशिया का कम से कम एक मामला सामने आता है और जांच में आम तौर पर मरीज के अल्जाइमर से ग्रस्त होने की पुष्टि होती है।
मौजूदा समय में दुनिया भर में अल्जाइमर के पांच करोड़ मरीज होने का अनुमान है। साल 2050 तक यह संख्या बढ़कर 13 करोड़ हो सकती है। अल्जाइमर के मामलों में वृद्धि के मानव स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के लिहाज से गंभीर निहितार्थ हैं। हालांकि, कुछ जोखिम कारकों पर ध्यान देकर इसका शिकार होने से बचा जा सकता है।
------बीमारी से बचाव------
लांसेट कमीशन की साल 2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ जोखिम कारकों पर ध्यान देकर अल्जाइमर के एक-तिहाई मामलों को रोका जा सकता है। इन जोखिम कारकों में मस्तिष्कीय चोट, उच्च रक्तचाप, अवसाद, मधुमेह, धूम्रपान, मोटापा, उच्च कोलेस्ट्रॉल, शारीरिक सक्रियता में कमी, दिमागी कसरत का स्तर, शराब का अत्यधिक सेवन, दृष्टि हानि, सुनने की क्षमता में कमी, सामाजिक अलगाव और वायु प्रदूषण शामिल हैं।
ये कारक विज्ञान समर्थित हैं, लेकिन आम लोगों के लिए इन पर नजर रखना और इनका प्रबंधन करना आसान नहीं होता, खासकर इस बात को ध्यान में रखते हुए कि बचाव के प्रयास अल्जाइमर के लक्षण उभरने के दशकों पहले शुरू कर दिए जाने चाहिए। इस समस्या से निपटने के लिए एक बचाव मॉडल की जरूरत है, जो अपनाने में और अमल में लाने में आसान हो।
ऐसी कई सफल पद्धतियां हैं, जो एक आदर्श उदाहरण के रूप में काम कर सकती हैं। मिसाल के तौर पर, स्ट्रोक की रोकथाम की दिशा में काम करने वाले संगठनों ने स्ट्रोक के खतरे के प्रति आगाह करने वाले कारकों के बारे में जागरूक करने के लिए ‘फास्ट’ यानी ‘फेस’ (चेहरा), ‘आर्म’ (हाथ), ‘स्पीच’ (वाणी), ‘टाइम’ (समय) पद्धति का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है।
अल्जाइमर की रोकथाम के लिए भी ‘फास्ट’ से मिलती-जुलती पद्धति की जरूरत है। ‘शील्ड’ यानी ‘स्लीप’ (नींद), ‘हेड इंजरी’ (सिर में चोट), ‘एक्सरसाइज’ (व्यायाम), ‘लर्निंग’ (दिमागी कसरत), ‘डाइट’ (खानपान) पद्धति इस मामले में मददगार साबित हो सकती है।
‘शील्ड’ पद्धति डिमेंशिया के प्रमुख जोखिम कारकों को पांच मुख्य स्तंभों के जरिये एक साथ लाती है, तथा रोकथाम के लिए एक स्पष्ट एवं प्रभावी रणनीति उपलब्ध कराती है।
* स्लीप (नींद)
-नींद ‘शील्ड’ पद्धति का बुनियादी तत्व है। मीठी नींद याददाश्त एवं तर्क शक्ति बनाए रखने, मिजाज सुधारने और नयी चीजें सीखने की क्षमता बढ़ाने में कारगर है, डिमेंशिया से बचाव के लिए जरूरी है।
अपर्याप्त नींद (रात में पांच घंटे से कम सोना) या खराब गुणवत्ता की नींद (बार-बार जगना), खासतौर पर अधेड़ उम्र में, न सिर्फ संज्ञानात्मक शक्ति में गिरावट का कारण बनती है, बल्कि डिमेंशिया के जोखिम को भी बढ़ाती है।
लंबे समय तक अपर्याप्त और खराब गुणवत्ता वाली नींद की शिकायत बनी रहने पर मस्तिष्क में ‘एमिलॉयड बीटा-प्रोटीन’ के थक्के जमने का खतरा होता है, जिसे विभिन्न अध्ययनों में अल्जाइमर के विकास के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
खराब नींद से मोटापे, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अवसाद का शिकार होने का भी खतरा रहता है, जिन्हें अल्जाइमर को दावत देने वाले जोखिम कारकों में शामिल किया गया है।
* हेड इंजरी (सिर में चोट)
-डिमेंशिया से बचाव के उपायों के बारे में चर्चा के दौरान सिर की चोट की रोकथाम को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। आघातजन्य मस्तिष्कीय चोटों (जिनमें मस्तिष्काघात भी शामिल है) और डिमेंशिया के उच्च जोखिम के बीच गहरा संबंध है।
व्यापक सुरक्षा उपाय (जैसे कि बेहतर हेलमेट डिजाइन, खेलों में मस्तिष्कीय चोटों से बचाव के लिए मजबूत प्रोटोकॉल और सभी क्षेत्रों में सिर की चोटों को रोकने के प्रयास) मस्तिष्कीय चोटों और अल्जाइमर से बचाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
* एक्सरसाइज (व्यायाम)
-व्यायाम संभवत: अल्जाइमर के जोखिम में कमी लाने वाला सबसे प्रभावी जीवनशैली हस्तक्षेप है। यह मोटापे, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल और अवसाद सहित कई प्रमुख जोखिम कारकों को सीधे तौर पर संबोधित करता है। इससे मस्तिष्कीय कोशिकाओं के विकास, याददाश्त और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा मिलता है।
हालांकि, शारीरिक असक्रियता काफी आम है, खासकर उच्च-आय वाले देशों में, जहां अल्जाइमर के हर पांच में से एक मामले के लिए इसे जिम्मेदार ठहराया जाता है।
व्यायाम न सिर्फ “दिल के लिए”, बल्कि “दिमाग के लिए” भी “प्रभावी दवा” है। नियमित रूप से व्यायाम करके व्यक्ति न सिर्फ दिमाग को समय से पहले बूढ़ा होने से रोक सकता है, बल्कि अल्जाइमर के खतरे को भी दूर रख सकता है।
* लर्निंग (दिमागी कसरत)
-स्कूल और उसके बाहर, दोनों ही जगहों पर सीखते रहने की आदत डिमेंशिया से बचाव में खासी मददगार है। सीखते रहने से दिमाग की कसरत होती है और उसकी “संज्ञात्मक क्षमता” यानी मस्तिष्कीय चोट, आघात या क्षरण से निपटने की ताकत बढ़ती है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े जागरूकता कार्यकमों में जीवनभर कुछ न कुछ सीखते रहने की आदत को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाना चाहिए, फिर चाहे वह किताबें पढ़ना हो, भाषा सीखना हो या मस्तिष्क को सक्रिय करने वाली गतिविधियां करना हो।
* डाइट (खानपान)
-मस्तिष्क की सेहत बनाए रखने और डिमेंशिया का खतरा घटाने में खानपान भी अहम भूमिका निभाता है। फल, सब्जी, अंकुरित अनाज, मोटा अनाज, मेवे और मछली से भरपूर खानपान अपनाकर तथा फास्टफूड, मीठे, शीतल पेय पदार्थ एवं लाल मांस के सेवन से परहेज करके व्यक्ति अपने मस्तिष्क को स्वस्थ बनाए रख सकता है।
(द कन्वरसेशन) पारुल