न्यायालय ने राज्यों से ‘आनंद कारज’ विवाह पंजीकरण के लिए नियम अधिसूचित करने को कहा
नेत्रपाल अविनाश
- 18 Sep 2025, 03:41 PM
- Updated: 03:41 PM
नयी दिल्ली, 18 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे चार महीने के भीतर ‘आनंद कारज’ या सिख विवाह के पंजीकरण नियम अधिसूचित करें।
शीर्ष अदालत ने कहा कि धार्मिक पहचान का सम्मान और नागरिक समानता सुनिश्चित करने वाले धर्मनिरपेक्ष ढांचे में कानून को एक तटस्थ और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करना चाहिए और ‘‘आनंद कारज’’ के माध्यम से होने वाले विवाहों को अन्य विवाहों के समान ही दर्ज और प्रमाणित किया जाए।
न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा, ‘‘किसी संवैधानिक वादे की सत्यनिष्ठा न केवल उसके द्वारा घोषित अधिकारों से मापी जाती है, बल्कि उन संस्थाओं से भी मापी जाती है जो उन अधिकारों को उपयोगी बनाती हैं। एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में, राज्य को किसी नागरिक की आस्था को विशेषाधिकार या बाधा में नहीं बदलना चाहिए।’’
पीठ ने चार सितंबर के अपने आदेश में कहा कि जब कानून ‘‘आनंद कारज’’ को विवाह के वैध प्रकार के रूप में मान्यता देता है, फिर भी इसे पंजीकृत करने के लिए कोई तंत्र प्रदान नहीं करता, तो ‘‘वादा केवल आधा ही निभाया गया’’ माना जाएगा।
इसमें कहा गया, ‘‘अब यह सुनिश्चित करना बाकी है कि रस्म से लेकर रिकॉर्ड तक का मार्ग खुला, एकरूप और निष्पक्ष हो।’’
शीर्ष अदालत ने यह आदेश एक याचिका पर पारित किया, जिसमें विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आनंद विवाह अधिनियम, 1909 (2012 में संशोधित) की धारा 6 के तहत नियम बनाने और अधिसूचित करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था, ताकि सिख रीति-रिवाज से होने वाले विवाहों के पंजीकरण की सुविधा मिल सके, जिसे आमतौर पर ‘‘आनंद कारज’’ के रूप में जाना जाता है।
पीठ ने कहा कि 1909 का अधिनियम सिख रीति-रिवाज ‘‘आनंद कारज’’ द्वारा संपन्न विवाहों की वैधता को मान्यता देने के लिए बनाया गया था।
इसने कहा कि 2012 में संशोधन के जरिए संसद ने धारा 6 को शामिल किया, जिसमें राज्यों को ऐसे विवाहों के पंजीकरण को सुगम बनाने के लिए नियम बनाने, विवाह रजिस्टर बनाए रखने और प्रमाणित उद्धरण उपलब्ध कराने का दायित्व सौंपा गया, साथ ही यह स्पष्ट किया गया कि पंजीकरण में चूक से विवाह की वैधता प्रभावित नहीं होगी।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के अनुसार, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने विवाह के पंजीकरण से संबंधित धारा 6 के अनुसार नियमों को अधिसूचित कर दिया है, जबकि कई अन्य ने अभी तक ऐसा नहीं किया है।
धारा 6 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि यह प्रत्येक राज्य के वास्ते ‘‘आनंद कारज’’ विवाहों के लिए एक व्यावहारिक पंजीकरण तंत्र बनाने के सकारात्मक कर्तव्य की बात करती है।
इसने कहा, ‘‘यह कर्तव्य किसी भी क्षेत्राधिकार में लाभार्थी समूह के आकार पर निर्भर नहीं है, न ही इसे इस आधार पर टाला जा सकता है कि अन्य विवाह कानून समानांतर रूप से मौजूद हैं।’’
पीठ ने कहा कि पंजीकरण की उपलब्धता सीधे तौर पर समान व्यवहार और व्यवस्थित नागरिक प्रशासन पर निर्भर करती है।
इसने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वैधानिक सुविधा तक असमान पहुंच के कारण समान स्थिति वाले नागरिकों के लिए असमान परिणाम सामने आते हैं तथा मौजूदा पंजीकरण व्यवस्था के साथ सामंजस्य ‘‘व्यावहारिक और आवश्यक’’ है।
पीठ ने कहा, ‘‘जहां सामान्य सिविल विवाह पंजीकरण ढांचा मौजूद है, वहां उसे अन्य विवाहों की तरह ही आनंद कारज द्वारा संपन्न विवाहों के पंजीकरण के लिए आवेदन प्राप्त करने चाहिए और यदि पक्षकार ऐसा अनुरोध करते हैं तो उसे यह दर्ज करना चाहिए कि समारोह आनंद संस्कार द्वारा हुआ था।’’
इसने कहा, ‘‘इसलिए प्रत्येक प्रतिवादी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश, जिसने अभी तक धारा 6 के तहत नियमों को अधिसूचित नहीं किया है, को चार महीने के भीतर ऐसा करने का निर्देश दिया जाता है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘तत्काल प्रभाव से और जब तक ऐसे नियम अधिसूचित नहीं हो जाते, प्रत्येक प्रतिवादी को यह सुनिश्चित करना होगा कि आनंद कारज द्वारा संपन्न विवाह, बिना किसी भेदभाव के प्रचलित विवाह-पंजीकरण ढांचे के तहत पंजीकरण के लिए प्राप्त किए जाएं।’’
भाषा
नेत्रपाल