महिला सैन्य अधिकारियों की ‘मानदंड नियुक्ति’ में ‘मनमानी’ पर उच्चतम न्यायालय ने नाखुशी जताई
शफीक सुरेश
- 17 Sep 2025, 10:25 PM
- Updated: 10:25 PM
नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को स्थायी कमीशन की मांग करने वाली ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ (एसएससी) की महिला सैन्य अधिकारियों के लिए उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में ‘मानदंड नियुक्ति’ पर विचार करने में ‘‘मनमानी’’ को लेकर नाखुशी जताई।
‘मानदंड नियुक्ति’ का अर्थ आमतौर पर किसी अधिकारी को किसी कठिन और प्रतिकूल क्षेत्र या ऑपरेशन में किसी पद की कमान सौंपना होता है।
स्थायी कमीशन देने से इनकार करने को चुनौती देने वाली 13 महिला सैन्य अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सवाल किया कि एक ही प्रशिक्षण और तैनाती से गुजरने वाले पुरुष और महिला अधिकारियों के लिए दो मानदंड कैसे हो सकते हैं।
पीठ ने सवाल किया, ‘‘लैंगिक आधार पर दो मानदंड कैसे हो सकते हैं? क्या एसएससी महिला अधिकारियों और पुरुष अधिकारियों के मूल्यांकन का कोई अलग प्रारूप है? क्या यह प्रारूप एसएससी अधिकारियों और स्थायी कमीशन वाले अधिकारियों के लिए अलग है?’’
महिला अधिकारियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि अपीलकर्ता अपने पुरुष समकक्षों के समान प्रशिक्षण और तैनाती पाने के बावजूद प्राप्त सामान्य ग्रेडिंग से व्यथित हैं।
उन्होंने दलील दी, ‘‘यह ग्रेडिंग उस समय किए गए व्यक्तिपरक मूल्यांकन के परिणामस्वरूप हुई जब वे स्थायी कमीशन (पीसी) के लिए पात्र नहीं थीं। पुरुष अधिकारियों के विपरीत, जिनके प्रदर्शन का लगातार पीसी को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन किया जाता था, इस अदालत द्वारा 2020 में महिलाओं को पीसी के लिए पात्रता प्रदान करने के फैसले से पहले अपीलकर्ताओं की एसीआर 2019 में ही रोक दी गई थी।’’
गुरुस्वामी ने बताया कि जिन 13 अधिकारियों का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया, उनमें लेफ्टिनेंट कर्नल वनिता पाधी कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में तैनात थीं, लेफ्टिनेंट कर्नल चांदनी मिश्रा 88 देशों में ‘मैनोवरेबल एक्सपेंडेबल एरियल टारगेट’ (एमईएटी) उड़ाने वाली पहली महिला पायलट थीं और लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा भी लद्दाख जैसे बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात रही हैं तथा मेजर खिम ने अखनूर (पाकिस्तान सीमा के पास) में सेवा की है।
गुरुस्वामी ने कहा कि इन अधिकारियों में, लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा, लेफ्टिनेंट कर्नल स्वाति रावत और लेफ्टिनेंट कर्नल वनिता पाधी ने ‘मानदंड नियुक्ति’ के अंतर्गत विभिन्न भूमिका में काम किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, अपने पुरुष समकक्षों के विपरीत, उनकी (महिला अधिकारियों की) वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में इसे ‘मानदंड नियुक्ति’ के रूप में नहीं दर्शाया गया है। पुरुष अधिकारियों के लिए, ऐसी नियुक्तियों के लिए एसीआर को ‘मानदंड रिपोर्ट’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें तैनाती को ‘मानदंड नियुक्ति’ के रूप में स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया गया है, जिसे स्थायी कमीशन प्रदान करने के लिए विचार किया जाता है।’’
न्यायमूर्ति सिंह ने पूछा कि क्या इसका मतलब यह है कि महिला अधिकारियों के लिए यह मायने नहीं रखता कि वे कहां तैनात हैं, लेकिन पुरुष अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती को विचारणीय माना जाता है।
गुरुस्वामी ने इसका ‘‘हां’’ में उत्तर दिया और कहा, ‘‘समान नियुक्तियों के बावजूद, महिला अधिकारियों को एसीआर जारी की गईं जो ‘गैर-मानदंड रिपोर्ट’ थीं, जिनमें तैनाती को ‘मानदंड नियुक्ति’ होने का कोई उल्लेख नहीं था, इसलिए वे स्थायी कमीशन के लिए पात्र नहीं थीं।’’
उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने स्वयं माना है कि ‘गैर-मानदंड रिपोर्ट’ की तुलना में ‘मानदंड रिपोर्ट’ को स्थायी कमीशन देने के मामले में अधिक महत्व दिया जाता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने गुरुस्वामी से पूछा कि क्या स्थायी कमीशन के लिए नियुक्ति के मानदंडों पर विचार मनमाना है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘हां। यह अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है और इसलिए मनमाना है।’’
उन्होंने कहा कि महिला अधिकारियों को सीमावर्ती, विवादास्पद या दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती दी जाती है, जिसका अर्थ है कि वे महिला अधिकारियों पर भरोसा करते हैं, लेकिन उन्हें स्थायी कमीशन नहीं देंगे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह समस्या कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की ‘‘रूढ़िवादी सोच’’ और ‘‘धारणाओं’’ के कारण प्रतीत होती है।
मामले की सुनवाई बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी।
भाषा
शफीक