खनन कंपनियों ने निचले ग्रेड के लौह अयस्क पर निर्यात शुल्क को लेकर चेताया
राजेश राजेश अजय
- 17 Sep 2025, 05:08 PM
- Updated: 05:08 PM
नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) खनन संगठनों के संगठन एफआईएमआई ने आगाह किया है कि यदि निम्न-श्रेणी के लौह अयस्क पर 30 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया जाता है, तो कर्नाटक, गोवा और ओडिशा जैसे खनिज संपन्न राज्यों को 16,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होगा और खनन उद्योग अलाभकारी हो जाएगा।
एफआईएमआई ने कहा कि प्रस्तावित निर्यात शुल्क से उद्योग पर निर्भर लगभग पांच लाख लोगों की आजीविका पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
भारतीय खनिज उद्योग महासंघ ने बयान में कहा, ‘‘निम्न-श्रेणी के लौह अयस्क पर 30 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाने के प्रस्ताव ने लौह अयस्क खनन उद्योग में काफी बेचैनी पैदा कर दी है। अगर भारत सरकार इस प्रस्ताव को लागू करती है, तो राज्यों को 16,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुकसान होगा और खनन उद्योग का एक बड़ा हिस्सा आर्थिक रूप से अलाभकारी हो जाएगा।’’
ऐसी खबरें हैं कि सरकार निचले ग्रेड के लौह अयस्क पर निर्यात शुल्क को वर्तमान शून्य से बढ़ाकर 20 से 30 प्रतिशत करने पर विचार कर रही है।
प्रस्तावित शुल्कों का उद्देश्य घरेलू आपूर्ति बढ़ाना और पूरे लौह अयस्क उद्योग पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालना है। इसलिए इस पृष्ठभूमि में, कर्नाटक में लौह अयस्क खनन पर लगाए गए अधिकतम स्वीकार्य वार्षिक उत्पादन (एमपीएपी) प्रतिबंध के मसले की जांच करना उचित है।
बयान में कहा गया है कि इस अंतर्संबंधित मुद्दे पर एक उचित दृष्टिकोण, सभी संबंधित पक्षों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
एमपीएपी एक खदान-वार उत्पादन सीमा है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में कर्नाटक की सभी लौह अयस्क खदानों पर विशेष रूप से लगाया था। यह सीमा एक दशक से भी पहले से मौजूद नियामक और निगरानी तंत्र में खामियों के कारण लगाई गई थी।
एमपीएपी एक स्थायी बाधा नहीं थी। यह पहले से मौजूद विशिष्ट मुद्दों के समाधान के लिए एक सुधारात्मक उपाय था। भारत में किसी अन्य राज्य पर ऐसी उत्पादन सीमा लागू नहीं की गई है, जिससे कर्नाटक इस अनूठी सीमा के तहत काम करने वाला एकमात्र खनिज-समृद्ध राज्य बन गया है।
बयान के अनुसार, जब एमपीएपी लागू किया गया था, तब यह एक स्वागतयोग्य कदम था। आज लौह अयस्क उद्योग की संपूर्ण नियामकीय गतिशीलता बदल गई है, और अब समय आ गया है कि एमपीएपी की दक्षता और इसके निरंतर लागू रहने पर पुनर्विचार किया जाए। भेदभावपूर्ण होने के अलावा, इसने लौह अयस्क उत्पादन की वृद्धि को गंभीर रूप से अवरुद्ध कर दिया है और इसके समयसीमा के विस्तार के परिणामस्वरूप घरेलू इस्पात उद्योग पर भी प्रभाव पड़ा है।
एफआईएमआई (दक्षिण) के निदेशक एसएस हिरेमठ ने कहा, ‘‘एमपीएपी को पूरी तरह से हटाना, निम्न श्रेणी के लौह अयस्क पर निर्यात शुल्क लगाने के पहलू पर पुनर्विचार करने के साथ-साथ, आवश्यक प्रमुख उपायों में से एक है। यदि इन दोनों पहलुओं का अच्छी तरह से प्रबंधन नहीं किया गया, तो ये मिलकर खनन और इस्पात उद्योग को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।’’
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