न्यायालय ने सीएक्यूएम, सीपीसीबी को वायु प्रदूषण से निपटने की योजना तीन सप्ताह में पेश करने को कहा
खारी माधव
- 17 Sep 2025, 05:11 PM
- Updated: 05:11 PM
नयी दिल्ली, 17 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को बुधवार को निर्देश दिया कि वे सर्दियों की शुरुआत से पहले वायु प्रदूषण को रोकने के उपायों का ब्यौरा तीन सप्ताह के भीतर तैयार करें।
सर्दियों में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है।
उच्चतम न्यायालय सीएक्यूएम, सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण बोर्डों में रिक्त पदों को भरने से संबंधित एक स्वतः संज्ञान याचिका पर सुनवाई कर रहा था और उसने रिक्तियों को भरने में देरी पर नाखुशी जाहिर की।
सीएक्यूएम केंद्र द्वारा गठित एक वैधानिक निकाय है और इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और उसके आसपास के कुछ हिस्सों में वायु गुणवत्ता का प्रबंधन और सुधार करना है। इस क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्से भी आते हैं।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन के अगुवाई वाली पीठ ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में खाली पदों को लेकर राज्यों पर नाखुशी जाहिर की और उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब को तीन माह के भीतर इन्हें भरने का आदेश दिया।
पीठ ने सीएक्यूएम और सीपीसीबी को भी इसी तरह के निर्देश दिए।
हालांकि, इसने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग में पदोन्नति वाले पदों को भरने के लिए छह माह का समय दिया।
पीठ ने राज्यों और प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सर्दियों के मौसम को ध्यान में रखते हुए प्रतिनियुक्ति या संविदा के आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति करें।
न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में लंबित रिक्तियों को भरने में विफल रहने पर राज्यों पर गहरी नाराजगी जाहिर की और कहा कि प्रदूषण के चरम मौसम में अपर्याप्त मानव संसाधन पर्यावरणीय संकट को और बढ़ा देते हैं।
वर्तमान में, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में क्रमशः 44, 43, 166 और 259 रिक्तियां हैं।
सर्दियों में हर साल बढ़ते प्रदूषण को लेकर बार-बार आ रही समस्या पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पिछले कई वर्षों से अदालत इस पर आदेश जारी कर रही है, जिसके कारण चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्ययोजना (जीआरएपी) लागू होता है और निर्माण कार्य जैसी कई गतिविधियां रोक दी जाती हैं।
पीठ ने कहा कि जीआरएपी की वजह से कई वाहनों को दिल्ली-एनसीआर में प्रवेश करने से रोका जाता है क्योंकि वे ज्यादा वायु प्रदूषण फैलाते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘निर्माण कार्य रोकने का असर होता है और देश के अलग-अलग हिस्सों से आए मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं।’’ इसने कहा कि मजदूरों को मुआवजा देने का भी एक मुद्दा है।
इसके बाद पीठ ने सीएक्यूएम से कहा कि वह सीपीसीबी, संबंधित राज्यों और उनके प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के साथ इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करे और ‘‘प्रदूषण रोकने के लिए एक ठोस योजना तैयार करे... और यह तीन सप्ताह के भीतर किया जाए।’’
पीठ ने सीएक्यूएम से रिपोर्ट मांगी और मामले की सुनवाई आठ अक्टूबर के लिए तय की।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) में रिक्तियों को लेकर दिल्ली सरकार पर असंतोष जाहिर किया और उसे इस साल सितंबर तक सभी पदों को भरने का निर्देश दिया।
उसने कहा कि डीपीसीसी में कुल 204 रिक्तियों में से अब तक केवल 83 ही भरी गई हैं।
भाषा खारी