निजाम को चुनौती देते हुए सितंबर 1947 में देवगिरी किले पर पहली बार फहराया गया था तिरंगा
वैभव रंजन
- 17 Sep 2025, 10:36 AM
- Updated: 10:36 AM
छत्रपति संभाजीनगर, 17 सितंबर (भाषा) छत्रपति संभाजीनगर के ऐतिहासिक देवगिरि किले पर दो सितंबर, 1947 को तीन स्वतंत्रता सेनानियों ने मजदूरों का वेश धारण करके राष्ट्रीय ध्वज फहराया था जिस समय हैदराबाद के निजाम का शासन था।
छत्रपति संभाजीनगर और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के सात अन्य जिले निजाम शासन का हिस्सा थे, जो 17 सितंबर, 1948 तक चला।
इतिहासकारों का कहना है कि निजाम की सेना द्वारा किले को घेर लिए जाने के बावजूद, तीनों स्वतंत्रता सेनानी किले से भाग निकले।
तत्कालीन सरकार की पुलिस कार्रवाई के बाद निजाम रियासत का भारत में विलय कर दिया गया।
इसी घटना के परिप्रेक्ष्य में 17 सितंबर को मराठवाड़ा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह मराठवाड़ा के भारत में एकीकरण और निजाम शासन के अधीन हैदराबाद राज्य के भारत संघ में विलय की वर्षगांठ का प्रतीक है।
लेखक प्रफुल्ल घाणेकर ने अपनी पुस्तक, ‘यादवंचा देवगिरि’ में हैदराबाद राज्य के स्वतंत्रता संग्राम की कहानी लिखी है।
उन्होंने किले पर तिरंगा फहराने वाले भाऊराव खैरे और लाला लक्ष्मीनारायण जायसवाल के नाम का उल्लेख किया है।
स्वतंत्रता सेनानी भाऊराव खैरे के पुत्र, पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि इस आंदोलन में बंसीलाल पटेल नाम के एक और स्वतंत्रता सेनानी भी शामिल थे।
घाणेकर के अनुसार, 2 सितंबर, 1947 को विशाल देवगिरि किले को निजाम की सेना ने घेर लिया था। कोल्टे टाकली शिविर के तीन स्वतंत्रता सेनानी निर्माण मजदूर बनकर आए थे। यह शिविर निजाम राज्य की सीमा पर स्थित था, लेकिन उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
सैनिकों से घिरे होने के बावजूद, तीनों किले की चोटी पर पहुंच गए और गुप्त रूप से वहां लाया गया राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
बाद में वे किले से भागने में भी सफल रहे, जो चारों ओर से खाई से घिरा हुआ था। फिर वे आज के छत्रपति संभाजीनगर शहर में स्थित सराफा इलाके में पहुंचे।
निजाम पुलिस को इस कार्रवाई में भाऊराव खैरे की संलिप्तता के बारे में पता चला।
जब उसकी गहन तलाश चल रही थी, तो उन्होंने फिर से अपना रूप बदला और गोदावरी नदी पार करके अहिल्यानगर में प्रवेश कर गए। घाणेकर ने किताब में लिखा है कि उनके भागने के बाद, पुलिस यहां मछली खादर इलाके में उनके घर पहुंची और उनकी मां को पकड़ लिया।
किताब के अनुसार, निजाम पुलिस ने शहर में धारा 144 (निषेधाज्ञा) लागू कर दी और ‘तिरंगा’ वाली घटना के बाद लगभग 500 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
चंद्रकांत खैरे ने कहा, ‘‘मेरी दादी ये कहानियां सुनाती थीं। मेरे पिता ने देवगिरि किले पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। वह बच निकले, लेकिन निजाम पुलिस मेरे घर आई और छत्रपति संभाजीनगर के सतारा-देवलाई और मालीवाड़ा इलाकों में स्थित हमारी सारी जमीनों पर कब्ज़ा कर लिया।’’
छत्रपति संभाजीनगर के पूर्व विधायक ने कहा, ‘‘उन्होंने मेरी दादी से इसके लिए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाए। उसके ठीक 50 साल बाद (1998 में), मैंने जिला संरक्षक मंत्री के तौर पर उसी किले पर तिरंगा फहराया।’’
भाषा वैभव