मुंबई की अदालत ने भुजबल, परिजनों के खिलाफ 2021 के बेनामी संपत्ति मामले को फिर से खोलने का आदेश दिया
अमित सुरेश
- 16 Sep 2025, 09:42 PM
- Updated: 09:42 PM
मुंबई, 16 सितंबर (भाषा) मुंबई की एक विशेष अदालत ने एक बेनामी संपत्ति को लेकर 2021 के उस मामले को बहाल करने का मंगलवार को आदेश दिया, जिसमें महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल भी एक आरोपी थे। विशेष अदालत ने कहा कि मुंबई उच्च न्यायालय ने इससे पहले कार्यवाही केवल ‘‘तकनीकी आधार पर रद्द की थी, गुण-दोष के आधार पर नहीं।’’
मामला अब अपने मूल चरण में बहाल कर दिया गया है और अगली सुनवाई छह अक्टूबर को मुंबई की विशेष एमपी/एमएलए अदालत में निर्धारित है।
आयकर विभाग ने 2021 में भुजबल, उनके परिवार के सदस्यों और उनकी कंपनी- आर्मस्ट्रांग इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड, परवेश कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड और देविशा कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड - के खिलाफ कथित बेनामी संपत्ति के संबंध में कार्यवाही शुरू की थी।
केंद्रीय एजेंसी ने आरोप लगाया था कि वे वित्तीय वर्ष 2008-09 और 2010-11 के दौरान बेनामी लेनदेन में शामिल लाभकारी मालिक थे।
गौरतलब है कि बेनामी संपत्तियां वे होती हैं, जो किसी मालिक द्वारा ‘प्रॉक्सी’ के माध्यम से रखी जाती हैं।
विशेष अदालत ने शुरुआत में नवंबर 2021 में आरोपियों को समन जारी किया था।
हालांकि, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता एवं मंत्री छगन भुजबल, उनके बेटे पंकज और रिश्तेदार समीर समेत आरोपियों ने आयकर विभाग की कार्रवाई को मुंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
पिछले साल दिसंबर में उच्च न्यायालय ने भुजबल के खिलाफ उनसे जुड़ी तीन कंपनी के पास कथित बेनामी संपत्ति होने की शिकायत को खारिज कर दिया था, जिसमें मुंबई और नासिक की गिरना शुगर मिल्स की संपत्तियां शामिल थीं, जहां से राकांपा नेता विधायक हैं।
उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश द्वारा स्थापित एक मिसाल का हवाला देते हुए मामले को रद्द कर दिया था।
सांसदों/विधायकों के मामलों के विशेष न्यायाधीश सत्यनारायण नवंदर ने मंगलवार को पारित एक आदेश में कहा कि उच्च न्यायालय ने मामले को रद्द करते समय ‘‘मामले के तथ्यों या मामले के गुण-दोष पर गौर नहीं किया।’’
विशेष न्यायाधीश ने कहा, ‘‘(उच्च न्यायालय के) आदेश का केवल अवलोकन करने के बाद, यह देखा जा सकता है कि कार्यवाही को रद्द करने की राहत केवल तकनीकी आधार पर दी गई थी।’’
विशेष अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को यह छूट दी थी कि यदि उच्चतम न्यायालय द्वारा उनकी पुनर्विचार याचिका स्वीकार कर ली जाती है, तो वे कार्यवाही को फिर से शुरू कर सकती है।
उसने कहा कि इससे ही पता चलता है कि कार्यवाही केवल (उच्चतम न्यायालय के) मिसाल के आधार पर रद्द की गई थी, गुण-दोष के आधार पर नहीं।
विशेष अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए, जब उच्चतम न्यायालय ने (अभियोजन पक्ष की) पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर ली, जिससे पहले की मिसाल स्पष्ट रूप से खारिज हो जाती है और जब उच्च न्यायालय द्वारा कार्यवाही को फिर से शुरू करने का विशिष्ट निर्देश है, तो इस अदालत के पास मूल कार्यवाही को फिर से शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।’’
परिणामस्वरूप, मामला अपने मूल चरण में वापस आ गया है।
भाषा अमित