वक्फ (संशोधन) कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने पर मुस्लिम संगठनों की मिली-जुली प्रतिक्रिया
अरूनव जफर सलीम नोमान रंजन नेत्रपाल
- 15 Sep 2025, 08:31 PM
- Updated: 08:31 PM
लखनऊ, 15 सितंबर (भाषा) वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के कुछ अहम प्रावधानों पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अंतरिम रोक लगाए जाने पर मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एएम) और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) समेत कई संगठनों तथा धर्मगुरुओं ने सोमवार को मिली-जुली प्रतिक्रिया दी।
शीर्ष अदालत में इस विवादित अधिनियम को चुनौती देने वाली जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि उनका संगठन इस ‘‘काले कानून’’ के ख़त्म होने तक ‘‘अपनी क़ानूनी और लोकतांत्रिक जद्दोजहद को जारी रखेगा।”
वहीं, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि उसे अदालतों पर पूरा भरोसा है और इंसाफ मिलने की उम्मीद है।
शीर्ष अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए, एआईएमपीएलबी के कार्यकारी सदस्य खालिद रशीद फरंगी महली ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि मुसलमान और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर रोक चाहता था, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है, जो एक स्वागतयोग्य कदम है।
उन्होंने कहा, “हमें इससे काफी राहत मिली है। हमें उम्मीद है कि जब अंतिम फैसला आएगा, तो हमें पूरी राहत मिलेगी।’’
मदनी ने ‘एक्स’ पर कहा, “जमीयत उलेमा-ए-हिंद वक़्फ़ कानून की तीन अहम विवादित धाराओं पर मिली अंतरिम राहत के फैसले का स्वागत करती है। जमीयत इस काले कानून के ख़त्म होने तक अपनी क़ानूनी और लोकतांत्रिक जद्दोजहद जारी रखेगी।”
उन्होंने कहा, “हमें यक़ीन है कि उच्चतम न्यायालय इस काले कानून को समाप्त करके हमें पूर्ण संवैधानिक न्याय देगा, इंशा अल्लाह।”
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव यासूब अब्बास ने कहा, ‘‘हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं। हमें अपनी अदालतों पर पूरा भरोसा है और हमें न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है।’’
केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित करने के शीर्ष अदालत के फैसले पर खालिद रशीद ने कहा कि अदालत ने बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय से ही करने का निर्देश दिया है जो राहत की बात है, लेकिन “गैर-मुस्लिम सदस्यों का मुद्दा अब भी बना हुआ है।“
रशीद ने कहा कि अन्य धर्मों और समुदायों के ट्रस्टों तथा धार्मिक संस्थाओं में यह प्रावधान है कि केवल उसी धर्म का व्यक्ति ही इसका सदस्य बन सकता है और यही कानून वक्फ अधिनियम में भी था, लेकिन संशोधिन कानून में इस प्रावधान को हटा दिया गया।
इस मुद्दे पर अब्बास ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की सदस्य के रूप में उपस्थिति के बारे में “हम न्यायालय से इस पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हैं।”
इस बीच, उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ और हज राज्य मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी ने शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया।
उन्होंने “पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मोदी सरकार अल्पसंख्यक मुसलमानों और पसमांदा समुदाय के उत्थान और विकास के लिए ईमानदारी एवं गंभीरता से काम कर रही है। उच्चतम न्यायालय के फैसले के आलोक में, हमारी सरकार मुसलमानों के लिए हरसंभव प्रयास करेगी।’’
उन्होंने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम मुसलमानों के विकास के नए रास्ते खोलेगा।
उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है।
मत्स्य मंत्री निषाद ने कहा, '‘‘हम उच्चतम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं। सबको करना भी चाहिए। यह उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो कहते थे कि मोदी जी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) की नीति और नीयत खराब है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ही कहती है कि मुसलमान कुछ पार्टियों के गिरवी हैं। वक्फ बोर्ड के नए कानून से मुस्लिम समाज के वंचित वर्ग का विकास होगा। वक्फ संपत्ति का सामाजिक विकास के लिए बेहतर उपयोग होगा।’’
इस बीच, उत्तर प्रदेश के पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। याचिकाकर्ता कभी नहीं चाहते थे कि यह कानून (वक्फ संशोधन अधिनियम) लागू हो। यह याचिकाकर्ताओं की हार है। जहां तक वक्फ बोर्ड के तीन सदस्यों के गैर-मुस्लिम होने का सवाल है तो यह याद रखना चाहिये कि यह बोर्ड एक संवैधानिक संस्था है।’’
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन तलाक विरोधी कानून, अनुच्छेद 370 को हटाना और वक्फ (संशोधन) अधिनियम सभी को न्यायालय ने सही माना है।
संभल से समाजवादी पार्टी के विधायक इकबाल महमूद ने वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैंने अभी तक इसे (फैसले को) पूरी तरह से नहीं पढ़ा है। मैंने समाचार चैनलों पर जो सुना है उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि मुसलमानों ने हमेशा न्यायालय के आदेशों का पालन किया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि कुछ बातें हमारी समझ से परे हैं, जैसे कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य की मौजूदगी। क्या हम राम मंदिर ट्रस्ट में किसी मुस्लिम को सदस्य बना सकते हैं? किसी को भी सदस्य बनाना उनका अधिकार है।’’
वहीं, मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने शीर्ष अदालत के फैसले को ‘‘बहुत अच्छा’’ और ‘‘संतुलित’’ बताया।
रज़वी ने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा ‘‘मैं फैसले का स्वागत करता हूं। इससे उम्मीद जगी है कि वक्फ की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा हटेगा और उस ज़मीन पर स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, मस्जिद, मदरसे और अनाथालय बनाए जाएंगे।’’
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगा दी जिनमें यह प्रावधान भी शामिल है कि पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ के लिए संपत्ति दे सकता है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूरे कानून पर स्थगन से इनकार कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा, ‘‘हमने कहा है कि हमेशा पूर्व धारणा कानून की संवैधानिकता के पक्ष में होती है और हस्तक्षेप केवल दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में किया जा सकता है।’’
न्यायालय ने वक्फ संपत्तियों की स्थिति पर निर्णय करने के लिए जिलाधिकारी को दी गई शक्तियों पर भी रोक लगा दी और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम भागीदारी के विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 20 में से चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हों, और राज्य वक्फ बोर्डों में 11 में से तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हों।
भाषा अरूनव जफर सलीम नोमान रंजन