छात्र आत्महत्या के बढ़ते मामलों से चिंतित अदालत ने प्रभावी रैगिंग विरोधी हेल्पलाइन की वकालत की
पारुल नरेश
- 11 Sep 2025, 07:42 PM
- Updated: 07:42 PM
नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने छात्र आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर पर “गहरी चिंता” जताते हुए एक प्रभावी रैगिंग विरोधी हेल्पलाइन की स्थापना को एक “मजबूत एवं कारगर” उपाय के रूप में रेखांकित किया है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ ने उच्च शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य और छात्र आत्महत्या के मुद्दों पर उच्चतम न्यायालय के एक आदेश का भी हवाला दिया और तत्काल कदम उठाने का आह्वान किया।
पीठ ने कहा, “अदालत पहले ही कह चुकी है कि वह छात्र आत्महत्या के मुद्दे को लेकर बहुत चिंतित है, जो लगातार बढ़ रही है और इसकी रोकथाम के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, जैसा कि शीर्ष अदालत ने अमित कुमार एवं अन्य बनाम भारत संघ (सुप्रा) मामले में रेखांकित किया है।”
पीठ ने 10 सितंबर के अपने आदेश में कहा, “इस समस्या से निपटने के लिए मजबूत, कुशल और प्रभावी प्रक्रियाएं एवं कार्यक्रम शुरू करने के वास्ते कम से कम एक उचित कार्यात्मक एवं प्रभावी रैगिंग विरोधी हेल्पलाइन की तत्काल स्थापना निश्चित रूप से बेहद जरूरी है। इसमें कोई देरी नहीं की जा सकती, वरना हम इस संकट के कारण और अधिक युवाओं की जान गंवा देंगे।”
उच्च न्यायालय ने अमन सत्य काचरू ट्रस्ट की ओर से दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया, जिनमें राष्ट्रीय रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम के प्रबंधन के सिलसिले में कई राहत देने का अनुरोध किया गया था।
अमन सत्य काचरू ट्रस्ट 2012 से राष्ट्रीय रैगिंग रोकथाम कार्यक्रम का संचालन कर रहा था। अप्रैल 2022 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने एक निविदा जारी की, जिसके बाद कार्यक्रम का संचालन सेंटर फॉर यूथ सोसाइटी (सी4वाई) को सौंप दिया गया।
ट्रस्ट ने अपनी एक याचिका में रैगिंग विरोधी कार्यक्रम के प्रबंधन और निगरानी के लिए सोसायटी को दिए गए ठेके को रद्द करने का अनुरोध किया। दूसरी याचिका में यूजीसी को उसका नोटिस, विज्ञापन और ठेका रद्द करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है।
राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो (एनसीआरबी) और विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल छात्र आत्महत्या के औसतन 13 हजार से अधिक मामले सामने आते हैं। आंकड़ों के अनुसार, देश में छात्र आत्महत्या के मामलों में हर साल औसतन चार फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
भाषा पारुल