अदालत ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए 10,000 रुपये के भरण-पोषण की सीमा पर पुनर्विचार का आग्रह किया
आशीष नरेश
- 11 Sep 2025, 03:48 PM
- Updated: 03:48 PM
बेंगलुरु, 11 सितंबर (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 9 की समीक्षा और संशोधन करने की सिफारिश की है। यह अधिनियम न्यायाधिकरणों को बुजुर्ग माता-पिता के लिए प्रति माह 10,000 रुपये से अधिक की राशि भरण-पोषण के तौर पर देने का आदेश देने से रोकता है।
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भरण-पोषण के लिए यह राशि आज की आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती तथा इसे महंगाई के अनुरूप अद्यतन किया जाना चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा, "यह अदालत गंभीरतापूर्वक यह सिफारिश करना उचित समझती है कि केंद्र धारा नौ पर पुनर्विचार करे और जीवन-यापन सूचकांक की लागत के अनुरूप अधिकतम सीमा को संशोधित करे, ताकि यह अधिनियम एक खोखला वादा बनकर न रह जाए, बल्कि वृद्धावस्था में सम्मान की जीवंत गारंटी बना रहे।"
पीठ ने इस पर जोर दिया कि किसी राष्ट्र की सच्ची संपदा का मापदण्ड केवल भौतिक प्रगति नहीं बल्कि इस बात से भी होता है कि वह अपने बच्चों और बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार करता है।
वर्ष 2007 से जीवन-यापन की लागत में भारी वृद्धि की ओर इशारा करते हुए अदालत ने सरकार के मुद्रास्फीति सूचकांक का हवाला दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि जो चीज 2007 में 100 रुपये में खरीदी जा सकती थी, उसके लिए 2025 में लगभग 1,000 रुपये की जरूरत होगी।
पीठ ने कहा, "भोजन, आवास और स्वास्थ्य सेवा का खर्च कई गुना बढ़ गया है। फिर भी भरण-पोषण की सीमा में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जिससे बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी करना असंभव हो गया है।"
अदालत ने सवाल किया कि क्या इतनी कम राशि से कोई गरिमा से रह सकता है और चिकित्सा सेवाएं ले सकता है। अदालत ने आगाह किया कि इस वास्तविकता को नजरअंदाज करने से बुढ़ापा "मात्र एक पशुवत अस्तित्व" बनकर रह जाएगा।
वर्ष 2019 में अधिनियम में संशोधन किया गया, लेकिन धारा 9(2) के तहत 10,000 रुपये की सीमा अपरिवर्तित रही। 2019 के एक संशोधन विधेयक में इस सीमा को हटाने और न्यायाधिकरणों को वरिष्ठ नागरिकों की जरूरतों और सम्मान के अनुपात में भरण-पोषण राशि तय करने की अनुमति देने का प्रस्ताव था। हालांकि, वह प्रस्ताव कभी लागू नहीं हुआ।
अदालत ने कहा कि चूंकि केंद्रीय कानून में सीमा तय है, इसलिए राज्य 10,000 रुपये से अधिक की राशि देने के नियम नहीं बना सकते।
ये टिप्पणियां सुनील एच बोहरा और अन्य द्वारा दायर याचिका पर आईं, जिसमें सहायक आयुक्त के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें अपने माता-पिता को एकमुश्त "मुआवजे" के रूप में पांच लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण को अधिनियम या नियमों के तहत एकमुश्त मुआवजा देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि ये नियम केवल मासिक भरण-पोषण की अनुमति देते हैं। पीठ ने आदेश को रद्द करते हुए मामले को न्यायाधिकरण को वापस भेज दिया और याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे अप्रैल 2021 से अपने माता-पिता को 10,000 रुपये प्रति माह तब तक दें जब तक न्यायाधिकरण मामले पर पुनर्विचार नहीं कर लेता।
भाषा आशीष