थानों से वर्चुअल साक्ष्य पेश करने की अनुमति निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा से समझौता: उच्च न्यायालय
सुरेश माधव
- 10 Sep 2025, 08:38 PM
- Updated: 08:38 PM
नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उपराज्यपाल द्वारा जारी वह अधिसूचना ‘‘प्रथम दृष्टया निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा से समझौता’’ करती है, जिसमें पुलिस अधिकारियों को थानों से अदालतों में वर्चुअल साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दी गई है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि उपराज्यपाल को निर्दिष्ट स्थानों की पहचान करने का अधिकार है और अदालत उनकी शक्तियों पर सवाल नहीं उठा रही है, बल्कि विशिष्ट तौर पर पुलिस थानों के चयन पर सवाल उठा रही है।
पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा से कहा, ‘‘निष्पक्ष सुनवाई क्या है? क्या अभियोजन पक्ष के गवाहों को अपने स्थानों से गवाही देने की अनुमति देकर किसी अभियुक्त के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से समझौता नहीं किया जा रहा है? हम समझ सकते हैं कि औपचारिक गवाहों, जांच अधिकारियों आदि में कुछ कठिनाई है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘आपको निर्दिष्ट स्थान की पहचान करने का अधिकार है, इसमें कोई कठिनाई नहीं है। हम स्थान निर्धारित करने की आपकी शक्तियों को चुनौती नहीं दे रहे हैं, लेकिन पुलिस थानों को क्यों? यही एकमात्र प्रश्न है।’’
अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल एक तटस्थ स्थान निर्धारित कर सकते हैं और अभियोजन पक्ष के गवाह की गवाही अभियुक्त की उपस्थिति में दर्ज करने का प्रावधान निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘आपको तटस्थता बनाए रखनी होगी और मुकदमा चलाना भी आपकी ज़िम्मेदारी है। आपको ऐसा माहौल बनाना होगा जहां किसी भी अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई का सामना करने का अवसर मिले। यह शायद प्रथम दृष्टया निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा से समझौता करता है। यही चिंताएं हैं।’’
शर्मा ने अगली सुनवाई की तारीख तक निर्देश लेने का पीठ से अनुरोध किया, इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई 10 दिसंबर के लिए ऐसी ही एक अन्य याचिका के साथ तय कर दी।
पीठ वकील राज गौरव की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इस अधिसूचना को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह ‘‘कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित परिसरों में’’ गवाहों से पूछताछ और जिरह की अनुमति देकर आपराधिक मुकदमों की निष्पक्षता और तटस्थता को कमजोर करती है।
अदालत ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि क्या 13 अगस्त की अधिसूचना पर अमल किया जा रहा है।
वकील ने कहा कि अधिसूचना पर ‘‘आंशिक रूप से अमल’’ किया गया है और इस मुद्दे पर दिल्ली पुलिस द्वारा बार-बार विभिन्न परिपत्र जारी किए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उनकी एक प्रार्थना तभी पूरी हो सकती है, जब यह रिकॉर्ड में आ जाए कि अधिसूचना लागू नहीं होगी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि जनहित याचिका में उठाया गया बड़ा मुद्दा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) का वह प्रावधान है, जिसके कारण यह अधिसूचना तैयार की गयी है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह अधिसूचना के बारे में नहीं है। यह वास्तव में धारा 266 की उपधारा-तीन के प्रावधान-दो के बारे में है।’’
पीठ ने किसी भी विचार को स्वीकार करने या कोई अवधारणा बनाने से इनकार कर दिया।
अदालत ने कहा, ‘‘आपने जिस प्रावधान को चुनौती दी है, वह सही हो या गलत, उसकी वैधता को कानूनों की कसौटी पर परखा जाना चाहिए।’’
याचिकाकर्ता ने कहा कि पुलिसकर्मियों की गवाही तो पुलिस थानों में होगी, लेकिन अन्य आरोपियों और गवाहों से पूछताछ अदालत में होगी- यह एक असमान स्थिति है।
अधिसूचना में राजधानी के सभी पुलिस थानों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पुलिस अधिकारियों/कर्मियों की गवाही के लिए "निर्दिष्ट स्थान" घोषित किया गया है।
भाषा सुरेश