‘द टेलीग्राफ’ के संपादक संकर्षण ठाकुर का गुरुग्राम के अस्पताल में निधन
सुभाष मनीषा
- 08 Sep 2025, 05:17 PM
- Updated: 05:17 PM
नयी दिल्ली, आठ सितंबर (भाषा) वरिष्ठ पत्रकार और अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द टेलीग्राफ’ के संपादक संकर्षण ठाकुर का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 63 वर्ष के थे।
उनके परिवार में पत्नी सोना, बेटी जहान और बेटा आयुष्मान हैं।
ठाकुर ने 1984 में ‘संडे’ पत्रिका से अपना पत्रकारिता करियर शुरू किया था।
उन्होंने कई मीडिया संस्थानों में काम किया, जिनमें ‘द इंडियन एक्सप्रेस’, ‘तहलका’ और ‘द टेलीग्राफ’ शामिल हैं। शब्दों का चयन ठाकुर के विश्लेषणों एवं ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ को और भी धारदार बना देता था।
उन्हें अपनी तीक्ष्ण राजनीतिक टिप्पणियों और संवेदनापूर्ण लेखनी के लिए जाना जाता है। ठाकुर देश की राजनीति, खासकर बिहार, के एक गहन इतिहासकार थे। उनका गृह राज्य न केवल उनकी पत्रकारिता का केंद्र था, बल्कि इसने एक लेखक के रूप में भी उन्हें स्थापित किया।
ठाकुर ने राज्य के प्रमुख राजनीतिक हस्तियों की बहुचर्चित और सर्वाधिक बिकने वाली जीवनी लिखी हैं। उनकी पुस्तकों में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की राजनीतिक जीवनी ‘‘सबाल्टर्न साहब’’, ‘‘सिंगल मैन: द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ नीतीश कुमार ऑफ बिहार’’ तथा लालू और नीतीश पर आधारित पुस्तक ‘‘द ब्रदर्स बिहारी’’ शामिल हैं।
‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने ठाकुर के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी एक पत्रकार और लेखक, दोनों रूप में एक जबरदस्त प्रतिष्ठा थी।
गिल्ड ने एक बयान में कहा कि एक निडर ग्राउंड रिपोर्टर के रूप में, उन्होंने भारत की कुछ सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं -- कारगिल युद्ध के मोर्चे से लेकर भोपाल (गैस) त्रासदी, 1984 के सिख विरोधी दंगे और इंदिरा गांधी की हत्या, कश्मीर की समस्याओं, श्रीलंका का गृहयुद्ध और बिहार तथा पाकिस्तान की सामाजिक-राजनीतिक समस्याओं -- पर लिखा।
ठाकुर की असामयिक मृत्यु होने पर सोशल मीडिया पर कई हस्तियों ने दुख व्यक्त किया।
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस नेता जयराम रमेश और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज कुमार झा सहित कई नेताओं ने ठाकुर को उनके लेखन के लिए याद किया।
अब्दुल्ला ने कहा कि ठाकुर उन गिने-चुने पत्रकारों में से एक थे जिन्होंने जम्मू कश्मीर में व्यापक रूप से यात्रा करने का प्रयास किया और यात्रा के दौरान, निष्पक्षता के साथ लोगों की बातें सुनीं।
उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘वह एक उत्कृष्ट पत्रकार थे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। उनके परिवार के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं हैं।’’
राज्यसभा सदस्य रमेश ने अपने पोस्ट में कहा, ‘‘वह भारतीय राजनीति के एक बहुत ही प्रभावशाली विश्लेषक थे और बिहार तथा जम्मू कश्मीर पर उनके कई लेखों ने उनकी प्रतिष्ठा स्थापित की।’’
राजद सांसद मनोज झा ने एक पोस्ट में कहा कि बिहार और जम्मू कश्मीर पर ठाकुर के विचारों से कोई सहमत या असहमत हो सकता है, लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी अंतर्दृष्टि के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि ठाकुर को ‘‘धारा के विपरीत तैरना’’ पसंद था।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ठाकुर अपने लेखन में बेहद वस्तुनिष्ठ थे और अपनी व्यक्तिगत पसंद या नापसंद को कभी भी अपनी रिपोर्टिंग पर हावी नहीं होने देते थे। असल में, 10-15 दिन पहले ही मेरी उनसे बात हुई थी और हमेशा की तरह, वह जीवंत लग रहे थे - कहानियां सुना रहे थे, हंस रहे थे। वह ऐसे व्यक्ति नहीं थे जो अपनी बीमारी को बड़ा मुद्दा बनाते।’’
ठाकुर के विशिष्ट योगदान को लेकर उन्हें राजनीतिक पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए प्रेम भाटिया पुरस्कार (2001) और अप्पन मेनन फेलोशिप (2003) से सम्मानित किया गया था।
बिहार पर अपनी गहन रिपोर्टिंग के अलावा, ठाकुर ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर लेख प्रकाशित किए, जिनमें कारगिल युद्ध, पाकिस्तान तथा उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित ‘ऑनर किलिंग’ (झूठी शान की खातिर हत्याएं) शामिल हैं।
वरिष्ठ पत्रकार ए जे फिलिप ने ‘‘संकर्षण ठाकुर: एक पत्रकार, जिसने कवि की कलम से लिखा’’ शीर्षक से अपनी श्रद्धांजलि में, कारगिल युद्ध के दौरान के ठाकुर के ‘‘सूक्ष्म और रोचक’’ संदेशों को याद किया।
लेखिका नीलांजना रॉय ने उन्हें ‘‘एक संपादक का प्रकाश स्तंभ’’ बताया।
वर्ष 1962 में पटना में जन्मे ठाकुर वरिष्ठ पत्रकार जनार्दन ठाकुर के पुत्र थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पटना के सेंट जेवियर्स स्कूल और बाद में दिल्ली में प्राप्त की तथा फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई की।
भाषा सुभाष