गाज़ा में मानवीय संकट की अनदेखी के बाद अब इज़राइली मीडिया में फलस्तीनियों की कवरेज शुरू
एपी मनीषा शोभना
- 08 Sep 2025, 11:25 AM
- Updated: 11:25 AM
तेल अवीव, आठ सितंबर (एपी) गाज़ा पट्टी में जारी युद्ध को लेकर इज़राइली समाचार चैनलों की कवरेज में हाल के दिनों में बदलाव देखने को मिला है।
पिछले लगभग दो वर्षों से जहां टेलीविजन चैनल मुख्यतः इज़राइली बहादुरी, बंधकों के परिजनों की पीड़ा और युद्ध में मारे गए सैनिकों पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, वहीं अब कुछ चैनलों ने फलस्तीनियों की कठिनाइयों को दिखाना शुरू किया है।
हाल के महीनों में इज़राइली मीडिया ने कुपोषित बच्चों की तस्वीरें और गाज़ा में दैनिक जीवन की परेशानियों पर आधारित विस्तृत खबरें दी हैं। यह परिवर्तन ऐसे समय में आया है जब इज़राइल को गाज़ा युद्ध को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
हिब्रू विश्वविद्यालय में संचार के प्राध्यापक एरन अमसालेम ने बताया, ‘‘यह केवल गाज़ा की स्थिति के प्रति चिंता नहीं है, बल्कि यह भी सवाल है कि क्या हम इस युद्ध के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए सही तरीके से काम कर रहे हैं।’’
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अब तक युद्ध समाप्ति की मांग कर रहे आंदोलनों की अनदेखी करते आए हैं।
सात अक्टूबर, 2023 को हमास द्वारा किए गए हमले और उसके बाद दो वर्षों से जारी क्षेत्रीय संघर्ष के कारण फलस्तीनियों के समर्थन में उठ रही आवाज़ों का असर कम होता दिखाई दे रहा है।
सात अक्टूबर को हमास समर्थित उग्रवादियों ने इज़राइली सीमा पर हमला किया, जिसमें लगभग 1,200 लोगों की मौत हुई और 251 लोगों को बंधक बना लिया गया। इनमें से अब 48 लोग अभी भी गाज़ा में हैं, जिनमें लगभग 20 के जीवित होने की संभावना है। यह हमला इज़राइल के घरेलू मोर्चे पर सबसे बड़ा बताया गया और आज भी स्थानीय मीडिया में इसकी व्यापक कवरेज होती है।
प्रसिद्ध इज़राइली एंकर रवीव ड्रकर ने कहा, ‘‘युद्ध के समय में इज़राइली मीडिया ने गाज़ा में पीड़ा, भूख या तबाही की रिपोर्टिंग बहुत कम की। और अगर की भी, तो केवल इस दृष्टिकोण से कि वह हमास को खत्म करने में कितनी प्रभावी रही।’’
इज़राइल ने युद्ध की शुरुआत से ही गाज़ा में अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों की स्वतंत्र रिपोर्टिंग पर रोक लगा रखी है। अमेरिका स्थित ‘‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’’ के अनुसार, यह पत्रकारों के लिए अब तक का सबसे घातक संघर्ष रहा है, जिसमें कम से कम 189 फलस्तीनी पत्रकार मारे गए हैं।
जिन पत्रकारों ने गाज़ा में मानवीय संकट की रिपोर्टिंग की, उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा। प्रमुख एंकर योनित लेवी ने जुलाई में रिपोर्टिंग के दौरान कहा, “शायद यह समझने का समय आ गया है कि यह कूटनीति की असफलता नहीं, बल्कि नैतिक विफलता है।”
इसके बाद उन्हें दक्षिणपंथी चैनल 14 पर “हमास की प्रवक्ता” कहा गया, और एक कार्यकर्ता ने उन पर “इज़राइली सैनिकों का अपमान” करने का आरोप लगाया।
इसी चैनल के कुछ टिप्पणीकारों ने फलस्तीनियों की हत्या और घरों को ध्वस्त किए जाने का यह कहते हुए समर्थन किया है कि गाज़ा में कोई निर्दोष नागरिक नहीं है।
गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अब तक 64,000 से अधिक फलस्तीनी मारे जा चुके हैं। हालांकि मंत्रालय हमास के अधीन है, लेकिन उसके आंकड़ों को संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा विश्वसनीय माना गया है।
इज़राइल का कहना है कि वह इन आंकड़ों से सहमत नहीं है, लेकिन उसने अपने आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए हैं।
हाल के हफ्तों में मीडिया ने फलस्तीनियों से संबंधित लंबी खबरें प्रकाशित की हैं। इनमें गाज़ा में भोजन और दवा पर लगी ढाई महीने की रोक के कारण उत्पन्न भुखमरी की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
कुछ प्रमुख टेलीविजन चैनलों ने गाज़ा में रहने वाले फलस्तीनियों के साक्षात्कार भी दिखाए हैं, हालांकि उनकी पहचान छिपाने के लिए वीडियो संपादित किए गए हैं, जिससे उन्हें हमास या अन्य पक्षों से खतरा न हो। लेकिन ऐसे प्रयास अभी भी घरेलू मुद्दों की तुलना में बहुत कम हैं।
वाम रुझान वाले अखबार हारेट्ज़ के पत्रकार नीर हसन का कहना है कि “सात अक्टूबर के बाद ‘दूसरी ओर के दर्द’ को समझना लगभग असंभव हो गया है, लेकिन मुझे लगता है कि इज़राइली जनता मीडिया से ज्यादा समझदार है। मीडिया स्वयं पर जरूरत से ज़्यादा सेंसरशिप लगा रहा है।”
एपी मनीषा