पुराने नेताओं के सक्रिय होने से प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी में शुरू हुआ गुटीय संघर्ष
आशीष सुरेश
- 07 Sep 2025, 06:55 PM
- Updated: 06:55 PM
(सुमीर कौल)
श्रीनगर, सात सितंबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) संगठन में आंतरिक मतभेद बढ़ रहे हैं, जिसमें संगठन के पुराने नेता गुलाम मोहम्मद भट के नेतृत्व वाला एक समूह इस पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
कभी सैयद अली शाह गिलानी जैसे कट्टरपंथियों को हाशिये पर रखने के लिए ज़िम्मेदार रहा भट अब संगठन की 40-सदस्यीय प्रभावशाली 'शूरा' (सलाहकार परिषद) के 35 सदस्यों के समर्थन से फिर से सक्रिय हो रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम गुप्त रूप से काम कर रहे प्रतिबंधित संगठन की एक रणनीतिक चाल है और सरकार के साथ गंभीर बातचीत करके पांच साल के प्रतिबंध को हटाने की कोशिश कर रहा है, जिसे हाल ही में और बढ़ा दिया गया था।
भट के सक्रिय होने से सीमा पार के निहित स्वार्थ वाले लोगों को परेशानी हो रही है, क्योंकि वह पहले भी जमात को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन से अलग कर चुका है। हिजबुल मुजाहिदीन एक ऐसा संगठन है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को स्थानीय स्तर का बताने के लिए करती है।
सरकार का आरोप है कि जमात देश की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ गतिविधियों में शामिल है और इसका आतंकवादी संगठनों और अलगाववादी गतिविधियों से संबंध है।
भट पहली बार 1999 में उस वक्त सुर्खियों में आया, जब जेईआई के प्रमुख के रूप में उसने आधिकारिक तौर पर संगठन को आतंकवाद से अलग कर दिया था।
हालांकि, इस कदम से संगठन में गहरी फूट पड़ गई, जिसके परिणामस्वरूप 2003 में सैयद अली गिलानी और मोहम्मद अशरफ सेहराई जैसे कट्टरपंथी नेताओं ने जमात-ए-इस्लामी छोड़कर तहरीक-ए-हुर्रियत (टीईएच) की स्थापना की।
माना जाता है कि मौजूदा आंतरिक संघर्ष तब शुरू हुआ, जब गुलाम क़ादिर वानी और गुलाम क़ादिर वार के नेतृत्व वाले एक समूह ने जस्टिस एंड डेवलपमेंट फ्रंट (जेडीएफ) के टिकट पर संसदीय चुनाव लड़ने का फैसला किया।
हार के बाद उन पर इस्तीफे का दबाव बनाया गया और शूरा के ज़्यादातर सदस्यों ने उनका विरोध किया। इसके बाद भट, मोहम्मद अब्दुल्ला वानी और शेख हसन ने जेडीएफ गुट से खुद को अलग कर लिया और शूरा के बहुमत के समर्थन से एक अंतरिम व्यवस्था बनाई। साथ ही, वानी के नेतृत्व वाले गुट का समर्थन करने वाले 10 जिला प्रमुखों को पद से हटा दिया गया।
सूत्रों के अनुसार, इस गुट ने प्रतिबंधित संगठन के भीतर एक नया शक्ति केंद्र स्थापित किया है और यह अधिकारियों के साथ बातचीत करके प्रतिबंध हटाने का अनुरोध कर रहा है।
जून में पीपुल कॉन्फ्रेंस के नेता और विधायक सज्जाद लोन द्वारा पीडीएफ और जेडीएफ के साथ बनाया गया पीपुल्स अलायंस फॉर चेंज (पीएसी), एक कमजोर बुनियाद पर खड़ा प्रतीत होता है। आलोचकों को इस बात पर भी संदेह है कि यह राजनीतिक परिदृश्य में कोई सार्थक बदलाव ला पाएगा या नहीं।
लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, हाकिम यासीन की पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) और जेडीएफ से बना यह गठबंधन जम्मू-कश्मीर के लोगों में 'बदलाव लाने' के लिए एक मजबूत मोर्चा बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
फिर भी, जेडीएफ की कथित कमजोरी के कारण पीएसी की वैधता खतरे में है। सूत्रों के अनुसार, जमात के मुख्य सदस्यों के विरोध के कारण जेडीएफ को अपना नाम बदलना पड़ा। यह पार्टी के अंदर गहरे मतभेदों और व्यापक समर्थन की कमी का संकेत है।
जम्मू-कश्मीर में 2024 के विधानसभा चुनाव लड़ने का जमात के कुछ सदस्यों का यह फैसला इस सामाजिक-राजनीतिक-धार्मिक संगठन की विचारधारा की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा गया। इस संगठन को राज्य में अतीत में हुई बर्बादी का एक कारण माना जाता है।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावी महत्वाकांक्षाओं का यह प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि यह संगठन 2019 से ही संकट का सामना कर रहा है, जब केंद्र सरकार ने अलगाववादी समूहों और उनके समर्थकों पर सख्ती की थी, जिनमें जमात भी शामिल है।
कश्मीर में कुछ लोगों का मानना था कि तीन दशक से अधिक समय तक राजनीति से दूर रहने के बाद, जमात के कुछ सदस्यों के चुनाव लड़ने के फैसले से संघर्ष की स्थिति बदल सकती है, लेकिन वे चुनावी राजनीति में कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाए और उनमें से कई लोगों की जमानत भी जब्त हो गई।
नेतृत्व में बदलाव के बाद संभावना है कि अगर जमात केंद्र शासित प्रदेश में एक बार फिर चुनाव लड़ने का फैसला करता है, तो एक व्यापक खाका अपनाया जाएगा।
पिछले समय में, जब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 2002 में कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी, तब जमात को कुछ राजनीतिक जगह मिली थी।
सैयद के नेतृत्व में, इस संगठन ने अपने कार्यालय, स्कूल, पुस्तकालय और परोपकार संगठन फिर से खोल दिए, जो फरवरी 2019 तक चलते रहे, जब केंद्र सरकार ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून के तहत इसे प्रतिबंधित कर दिया।
भाषा आशीष