झालावाड़ के व्यक्ति ने स्कूल की इमारत ढहने के बाद कक्षाएं संचालित करने के लिए अपना घर दे दिया
पारुल सुभाष
- 06 Sep 2025, 06:00 PM
- Updated: 06:00 PM
कोटा, छह सितंबर (भाषा) राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक अशिक्षित व्यक्ति ने दो कमरों का अपना मकान कक्षाएं संचालित करने के लिए खाली कर दिया, ताकि अधिकारी वहां जुलाई में स्कूल की इमारत ढहने की घटना से प्रभावित छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन करा सकें।
यह व्यक्ति अब परिवार के आठ सदस्यों के साथ अपने खेत में तिरपाल लगाकर रह रहा है।
मोर सिंह ने गांव में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई जारी रखने के लिए अपना एकमात्र मकान स्कूल के संचालन के लिए दे दिया। उन्होंने अपनी वर्षों की दैनिक मजदूरी में से बचाए गए चार लाख रुपये की लागत से 2011 में यह मकान बनवाया था।
जुलाई में झालावाड़ के पिपलोदी गांव में एक सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय भवन का एक कमरा ढह गया था, जिससे सात छात्रों की मौत हो गई थी और 21 अन्य घायल हो गए थे।
मोर सिंह स्कूल के संचालन के लिए अपना घर छोड़कर खेत में रहने चले गए, जिससे अधिकारियों के लिए हादसे के महज 10 दिन के भीतर वहां पढ़ाई-लिखाई फिर से शुरू कराना संभाव हो पाया।
जुलाई में स्कूल भवन ढहने के बाद कुछ शिक्षकों ने कक्षाओं के संचालन के लिए लोगों से जगह उपलब्ध कराने का आग्रह किया। हालांकि, कोई भी इस बाबत तैयार नहीं हुआ।
इसके बाद शिक्षक अपने भतीजे प्रकाश और छोटूलाल के साथ खेत से लौट रहे मोर सिंह से मिले।
मोर सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “शिक्षकों ने मुझे समस्या बताई और कक्षाएं फिर से शुरू करने के लिए मुझसे मेरा घर उपलब्ध कराने का आग्रह किया।”
उन्होंने बताया, “मेरे भतीजों ने मुझसे पूछा, काकाजी, क्या आप कक्षाओं के संचालन के लिए अपना घर खाली करेंगे? मुझे अपने दिल में ईश्वर की उपस्थिति का एहसास हुआ और मैंने तुरंत कहा, ‘हां, क्यों नहीं! मैं गांव के बच्चों के भविष्य के लिए, इस समय, यहां तक कि बारिश में भी, अपना घर खाली कर सकता हूं।”
मोर सिंह के मुताबिक, उन्होंने शिक्षकों से कहा कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के रहने का इंतजाम करने के लिए खेत में झोपड़ी बनाने के वास्ते प्लास्टिक और तिरपाल खरीदना होगा, जिस पर 500 रुपये के आसपास खर्च आएगा और उसी दिन अपने खेत में जाकर रहने लगे।
मोर सिंह के अनुसार, वह अपनी पत्नी मंगी बाई, दो बेटों (एक कक्षा 12 का छात्र, दूसरा आईटीआई से व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रशिक्षण ले रहा), दो बेटियों (स्कूली छात्रा) और अन्य के साथ खेत में बनाई गई झोपड़ी में रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्कूल के संचालन के लिए घर छोड़ने के उनके फैसले का परिवार के किसी भी सदस्य ने विरोध नहीं किया।
भाषा पारुल